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Sakhi ,Kabir / Prashnottar

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प्रश्नोत्तर-साखी

प्रश्नोत्तर-साखी

                                                                    साखी 

प्रश्नोत्तर-साखी
प्रश्नोत्तर-साखी

 

                                                                   कबीर

विडीओ – साखी

प्रश्न अभ्यास

(क ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए  

प्रश्न 1 –  मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है ?

उत्तर – मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता प्राप्त होती है क्योंकि मीठी वाणी बोलने वालों के मन में अहंकार नहीं होता । इससे बोलने वाले की विनम्रता सहज ही झलकने लगती है । अहंकार का त्याग करने से बोलने वालों के मन को शीतलता मिलती है और अपनत्व एवं प्रेम भरे वचन सुनकर, सुनने वाले को सुख प्राप्त होता है।

 

प्रश्न 2 – दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है ? साखी के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -: दीपक दिखाई देने पर अँधियारा मिट जाता है क्योंकि दीपक में प्रकाश होता है। यहाँ दीपक से तात्पर्य ज्ञान से है तथा अँधियारा से तात्पर्य अज्ञान से है । मन में ज्ञान रूपी दीपक का प्रकाश फैलते ही छाया ,भ्रम, संदेह और भय रूपी अंधकार समाप्त हो जाते हैं ।

ईश्वर के ज्ञान को सर्वोच्च ज्ञान कहा गया है अर्थात जब किसी को सर्वोच्च ज्ञान के दर्शन हो जाते हैं तो उसका सारा अज्ञान दूर होना सम्भव है।

प्रश्न 3 – ईश्वर कण – कण में व्याप्त है , पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ?

उत्तर – मनुष्य ने यह धारणा बना ली है कि ईश्वर तीर्थ स्थलों और धार्मिक स्थलों पर ही रहते हैं । कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर कण- कण में व्याप्त है ,पर अपने अज्ञान और अहंकार के कारण मनुष्य प्रभु को नहीं देख पाता  क्योंकि  हम ईश्वर को अपने मन में खोजने की बजाय मंदिरों और तीर्थ स्थलों में खोजते हैं।

 

प्रश्न 4 – संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन ? यहाँ सोनाऔर जागनाकिसके प्रतीक हैं ? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर संसार में सुखी व्यक्ति वह है जो प्रभु प्राप्ति के लिए प्रयास नहीं करता अपितु सांसारिक विषयों में डूबकर आनंदपूर्वक सोता है, इसके विपरीत वह व्यक्ति जो प्रभु को पाने के लिए तड़प रहा है, उनके वियोग में दुखी है और जाग रहा है। कबीरदास जी के अनुसार संसार के वे सभी व्यक्ति जो बिना किसी चिंता के जी रहे हैं वे सुखी हैं तथा जो ईश्वर वियोग में जी रहे हैं वे दुखी हैं।

यहाँ ‘सोना ‘ ‘अज्ञान ‘ का और ‘जागना ‘ ईश्वर – प्रेम ‘ का प्रतीक है।  इसका प्रयोग  मानव को, जीवन में सांसारिक विषय वासनाओं से दूर रहने तथा सचेत करने के लिए किया गया है ।

 

प्रश्न 5 – अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है ?

उत्तर अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने यह उपाय सुझाया है कि निंदा करने वाले व्यक्तियों को अपने आस- पास रखना चाहिए। उनके अनुसार निंदा करने वाला व्यक्ति जब आपकी गलतियाँ निकालेगा तो आप उन गलतियाँ को सुधार कर अपना स्वभाव निर्मल बना सकते हैं और दुर्गुणों को  सदगुणों  में बदल सकते हैं।

 

प्रश्न 6 – ‘ ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ ‘ – इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ?

उत्तर ‘ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ ‘ – इस पंक्ति के माध्यम से  कवि यह कहना चाहता है कि संसार में पीव अर्थात ब्रह्म ही सत्य है। इन पंक्तियों में कबीर ईश्वर प्रेम को महत्त्व देते हुए कहते हैं कि ईश्वर प्रेम का एक अक्षर ही किसी व्यक्ति को पंडित बनाने के लिए काफी है, उसे पढ़े या जाने बिना कोई भी पंडित अर्थात ज्ञानी नहीं बन सकता।

 

प्रश्न 7 – कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता प्रकट कीजिए।

उत्तर कबीर अनपढ़ थे परंतु बहुत अनुभवी एवं ज्ञानी थे । कबीर की साखियों में नीति संदेश हैं ,इनकी साखियों की भाषा में अनेक विशेषताएँ हैं –

(क) कबीर की साखियाँ सधुक्कड़ी भाषा में लिखी गईं हैं ।

(ख) इनकी भाषा में राजस्थानी ,ब्रज, हिंदी ,अवधि और पंजाबी शब्दों का प्रयोग हुआ है ।

(ग) इनकी भाषा को खिचड़ी भाषा भी कहा जाता है ।

(घ) कबीरदास जी की साखियों की भाषा सहज और सुबोध हैं ।

(ड़) इनकी भाषा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है ।

(च) इन्होंने अपनी सखियीं में  बोलचाल  के शब्दों का भी प्रयोग किया है ।

(छ) इनकी भाषा में लयबद्धता, उपदेशात्मकता प्रवाह तथा सरल शैली का प्रयोग किया

गया है।

(ज) कबीर की साखियों में  भावना की अनुभूति ,रहस्यवादिता तथा जीवन का संवेदनशील संस्पर्श तथा सहजता को प्रमुख स्थान दिया गया है।

 

( ख ) निम्नलिखित पंक्तियों के भाव स्पष्ट कीजिए –

(1 )  ‘ बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ।

भाव – प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि जिस व्यक्ति में ईश्वर से दूर रहने पर उन्हें पाने की तड़प जाग उठती है उस व्यक्ति की दशा साँप के काटे हुए व्यक्ति की तरह हो जाती है, उस पर किसी भी प्रकार के उपाय या मंत्र का प्रभाव नहीं पड़ता। वह जी नहीं पाता और जीता भी है तो उसकी दशा पागलों जैसी होती है क्योंकि वह ना तो सांसारिक विषयों में मन लगा पाता है और न ही ईश्वर से मिल पाता है ।

 

(2 ) ‘ कस्तूरी कुंडलि बसै ,मृग ढूँढ़ै बन माँहि।

भाव – प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि  कस्तूरी मृग की नाभि में ही होती है परन्तु उसे अपनी नाभि में स्थित कस्तूरी का ज्ञान नहीं होता और उसकी सुगंध से मोहित होकर,वह उसे ढूँढता हुआ जंगल -जंगल खोजता भटकता फिरता है परंतु  उसके हाथ निराशा ही लगती है ।

 

( 3 ) ‘ जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि हैं मैं नहीं।

भाव –  प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि अहंकार और ईश्वर एक दूसरे के विपरीत हैं, दोनों एक जगह नहीं रह सकते । कबीर का कहना है कि जब तक उनके मन में अहंकार था तब तक ईश्वर के दर्शन नहीं हो सके परन्तु जब मन में ईश्वर का वास हुआ तब अहंकार के लिए कोई जगह नहीं बची । जहाँ अहंकार है वहाँ ईश्वर नहीं ,जहाँ ईश्वर है वहाँ अहंकार का वास नहीं होता । मन में प्रभु का वास होने से मन में बसा भ्रम रूपी अंधकार और अज्ञान नष्ट हो गया।

 

( 4 ) ‘ पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ। ‘

भाव –  प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि किताबी ज्ञान किसी को पंडित नहीं बना सकता , पंडित बनने के लिए ईश्वर – प्रेम का एक अक्षर ही काफी है। कबीर ईश्वर प्राप्ति पर बल देते हुए कहते हैं कि ईश्वर को पाने के लिए लोग पोथियाँ पढ़ते हैं लेकिन उन्हें ज्ञान नहीं मिल पाता वे पंडित नहीं बन पाते ।                      जिसने प्रेम के एक अक्षर को पढ़ लिया वहीं पंडित बन गया और जिसने ब्रह्म के बारे में जान लिया वही ज्ञानी हो गया, ब्रह्म के बारे में जाने बिना ज्ञानी कहलाने की बात निरर्थक है ।

 

                      अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

(1) कस्तूरी क्या होती है और कहाँ रहती है?

उत्तर – कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ है, जो मृग की नाभि में रहता है|

 

(2) कबीर निंदक को कहाँ रखने को कहते हैं?

उत्तर – कबीर निंदक को अपने आँगन में कुटिया बनवाकर रखने के लिए  कहते हैं |

 

(3) व्यक्ति को ईश्वर की प्राप्ति कब तक नहीं होती?

उत्तर -व्यक्ति को ईश्वर की प्राप्ति तब तक नहीं होती, जब तक उसके मन में अहंकार रहता है |

(4) अज्ञानी व्यक्ति ईश्वर को कहाँ -कहाँ ढूँढता है?

उत्तर – अज्ञानी व्यक्ति ईश्वर को मंदिर – मस्जिद तथा अन्य धार्मिक स्थलों पर ढूँढता है |

 

(5) ‘ऐसी बाँणी बोलिए’ के माध्यम से कबीर कैसी वाणी बोलने की सीख दे रहे हैं और क्यों ?

उत्तर – ‘ऐसी बाँणी बोलिये’ के माध्यम से कबीर मनुष्य को अपने मन का अहंकार छोड़कर मधुर वाणी से विनम्रता भरी वाणी बोलने की सीख दे रहे हैं क्योंकि मीठी बोली बोलने से अपने मन को शांति मिलती है , हमारा अपना तन मन भी स्वस्थ रहता है और दूसरों को भी सुख प्राप्त होता है अर्थात दूसरों को भी कोई कष्ट नहीं होता । मीठी वाणी से सुनने वाले तथा बोलने वाले दोनों को ही सुख मिलता है इसलिए सदा मीठी वाणी बोलनी चाहिए |

 

(6) कबीर की दृष्टि में संसार सुखी और वह स्वयं दुखी है, ऐसा क्यों ?

उत्तर – संसार के लोगों को देखकर कबीर को लगता है कि पूरा संसार विषय -वासनाओं में लिप्त है और मस्ती में लगा हुआ है । संसार के लोग स्वयं को सुखी मानते हैं, वे केवल खाते है, सोते हैं और चिंतारहित हैं । कबीरदास जी अज्ञान रूपी अंधकार में सोये हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे है ।

 

(7) निंदक के समीप रहने से क्या लाभ होता है?

उत्तर – कबीरदास जी निंदा करने वाले व्यक्तियों को हमेशा आस – पास  रखने की सलाह देते हैं ताकि आपके स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन आ सके क्योंकि इससे हमारा स्वभाव बिना साबुन और पानी की मदद के ही निर्मल हो जाएगा ।

 

(8) राम वियोगी की दशा कैसी हो जाती है ? स्पष्ट कीजिए I

उत्तर – राम योगी की दशा दयनीय हो जाती है । विरह एक सर्प के सामान है , ईश्वर के विरह का सर्प वियोगी को जीवित नहीं रहने देता और अगर वह जीवित रह भी जाता है तो वह पागल हो जाता है।  

 

(9) मुराड़ा से क्या तात्पर्य है, मुराड़ा किसका प्रतीक है ?

उत्तर – मुराड़ा से तात्पर्य मशाल से है, मुराड़ा आत्म ज्ञान का प्रतीक है ।

 

(10) कबीर की साखियों से क्या शिक्षा मिलती है ?

उत्तर –  कबीर की साखियों में नीति संदेश हैं, यह  साखियाँ हमें जहाँ व्यावहारिक ज्ञान देती हैं, वहीं हमें जीवन मूल्यों से भी परिचित करवाती हैं | कबीर की साखियों में ईश्वर प्रेम के महत्त्व को दर्शाया गया हैं। बताया गया है कि मीठी वाणी दूसरों को सुख और और अपने तन को शीतलता पहुँचती है। ईश्वर को मंदिरों और तीर्थों में ढूँढने की आवश्यकता नहीं है उसे अपने मन में ढूँढना चाहिए, ईश्वर का वास तो मनुष्य के हृदय में है।

अज्ञान रूपी अहंकार के मिटने पर ईश्वर प्राप्ति के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। संसार को सुखी और स्वयं को दुखी बताते हुए कबीर कहते हैं कि प्रभु को पाने की आशा उन्हें संसार के लोगो से अलग करती है। ईश्वर के वियोग में व्याकुल व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता, अगर रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है।

कबीरदास जी ने निंदक के महत्त्व को प्रतिपादित किया है और कहा है क़ि निंदा करने वालों के सामीप्य से मनुष्य के स्वभाव परिवर्तन में आ जाता हैं। कबीर ने विद्या के साथ -साथ व्यावहारिकता की आवश्यकता पर भी बल दिया है ।  सांसारिक मोहमया को त्यागने पर बल देते हुए कहते हैं कि यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो मोह – माया का त्याग करना पड़ेगा |

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