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कविताएँ – जब मैं छोटी थी, पहचान, माँ, मनुष्य , प्यार

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कविता – जब मैं छोटी थी

 

जब मैं छोटी थी

तब मेरी दुनिया

बहुत बड़ी हुआ करती थी।

मेरे रिश्तों का दायरा बहुत बड़ा था।

प्यार का, मुस्कुराहट का

हॅंसी का, खिलखिलाहट का

एक जाल सा बिछा था।

घर से स्कूल और

स्कूल से घर के रास्ते में

न जाने कितने चाचा-चाची,

मामा-मामी, दादा- दादी,

दीदी-भईया, भईया- भाभी

टकराते थे और मैं भी

उनसे बात किए बिना

आगे कहाँ बढ़ पाती थी।

मेरा घर पहली मंज़िल पर था

सामने वाला घर काकी मासी का था

और ना जाने क्यों उनके पति को मैं,

मैं ही नहीं शायद सभी पड़ोसी

शर्मा जी कहा करते थे।

उनके साथ एक पाईया जी भी

रहा करते थे।

सीढ़ियों से नीचे आने पर

दाईं तरफ निम्मों आंटी

रहा करती थीं और

बाईं ओर वाला घर

मुर्शिद भईया का हुआ करता था।

ना जाने क्यों ?

मुर्शिद भईया की पत्नी को

मैं दुल्हन कहा करती थी।

सभी पड़ोसियों से

कोई ना कोई रिश्ता था

और सभी का प्यार

मुझ पर बरसता था।

शामें बहुत लंबी हुआ करती थीं

और कभी – कभी तो

हम बच्चों की शाम

दोपहर से ही शुरू हो जाती थी

जो रात होने पर भी नहीं सिमटती थी।

आज भी याद है

नीरु, रजनी, सलमा, गोगी, चीना

स्वीटी, सीमा, कौसर

के साथ छुपन- छुपाई,

लंगड़ी टांग, टिप्पी टिप्पी टैप,

स्टापू, हरा समंदर…, पिट्ठू

जैसे अजीबो – गरीब खेल खेलना

नीरु के घर खाना खा लेना

टी.वी. देखना, लड़ना- झगड़ना

रुठना मनाना।

जब मैं छोटी थी

तब मेरी दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी

पर अब दुनिया बदल गई है

सिमट गई है

दोस्त तो बहुत हैं पर

दोस्ती कहीं खो गई है और

मोबाइल आने के बाद तो

जैसे जादू की छोटी-सी

डिब्बी में सिमट गई है।

अब एस.एम.एस से बात होती है।

एफ.बी. पर मैसेज डालकर

स्नेह का इज़हार होता है

समय बहुत कम है सबके पास

सभी भाग रहे हैं

मैसेज करने का भी कष्ट नहीं करते

फ़ॉरवर्ड का बटन दबा रहे हैं

ये हम कहाँ  जा रहे हैं ?

ये हम कहाँ जा रहे हैं ?

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विडीओ – कविता ‘तुम’

 

               माँ

 

मैंने जब भी माँ को देखा

हर बार

एक नए रुप में देखा

मैंने जब जब माँ को देखा

उसमें लोहा देखा

गर्मी की ,गर्म दोपहर में

घर के आँगन में या

खेतों में देखा

गर्म लोहे-सा तपता देखा

गर्म लोहे-सा गलता देखा

परिस्थिति अनुसार

अलग-अलग रुप में ढलते देखा

मैंने जब भी माँ को देखा

हर बार

एक नए रुप में देखा ।

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विडीओ – कविता ‘उड़ान’

 

       पहचान

पूर्णिमा का चाँद हो तुम ,
या हो उसकी चाँदनी
मेरे जीवन की आशा हो ,
इक सुनहरा ख्वाब हो ।
मेरे सूने जीवन में तुम,
इक चमकता दीप हो ।

मेरे घर की फुलवारी का,
सबसे सुंदर फूल हो तुम,
तुम मधुर संगीत हो,
प्यार का प्रतिबिम्ब हो तुम,
सुख की ठंडी छाँव हो ।

तुम नीलम के मेघ हो,
तुम ही अनंत ऋतुराज हो,
वरदानो की वर्षा हो तुम ,
आशाओं का हार हो ।

इंद्रधनुष के रंग हैं तुममे ,
खिलती कलियों सी मुस्कान ,
नयनों में उजले सपनें हैं ,
तुमसे है मेरी पहचान ।

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         माॅं

तुम्हारा आँचल इतना बड़ा हो,
कि हम सब उसमें समा जाएँ।
हमारे प्यार का सागर,
इतना गहरा हो कि –
तुम उसमें डूबकर निकल ना पाओ।
तुम फूल हो, तो –
हम तुम्हारी सुगंध फैलाएँ।
तुम सागर हो तो,
हम लहरें बनकर –
भटके हुओं को राह दिखलाएँ।
तुम आकाश हो तो हम
तारे बनकर बिखर जाएँ।
तुम चाॅंद हो तो –
हम चाॅंदनी बनकर ,
तुम्हारी चाॅंदनी फैलाएँ।
तुम बादल हो तो –
हम बारिश बनकर
तुम्हारा प्यार बरसाएँ।
तुम वीणा हो तो –
हम उसके तार बनकर,
मधुर संगीत बन जाएँ।
तुम्हारा आँचल इतना बड़ा हो,
कि हम सब उसमें समा जाएँ।
हमारे प्यार का सागर,
इतना गहरा हो कि –
तुम उसमें डूबकर निकल ना पाओ।

 

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       मनुष्य 

ईश्वर  की –
सर्वश्रेष्ठ  कृति है मनुष्य ।
प्रकृति का अद्भुत, अनुपम –
उपहार है मनुष्य  ।
सफलता का साकार रूप है मनुष्य ।
साहस है, उत्साह है,
वास्तव में शक्तिपुॅंज है मनुष्य ।
प्रभु की अपरिमित संपदा का –
अंश है मनुष्य ।
दुर्बलता, संदेह, दुर्भाग्य,
अवनति, अयोग्यता,
पतन, पराजय, निराशा 
ये सब मनुष्य  के लिए नहीं है
क्योकि मनुष्य  का अंतिम लक्ष्य है सफलता।
सफलता का साकार रूप है मनुष्य ।
प्रभु की सर्वोत्कृष्ट रचना है मनुष्य ,
संसार के सर्वोत्कृष्ट –
गुणों से नवाज़ा है ईश्वर ने मनुष्य  को ,
ईश्वर की सबसे अद्भुत, सुंदर,
रचना है  मनुष्य ।
प्रभु की सर्वोत्कृष्ट कृति है मनुष्य  ।

 

    प्यार

लेखिका -मधु त्यागी   

प्यार बंधन है, विश्वास है
कभी सिर्फ अहसास है।
जिसके लिए ये बंधन
वह जीते जी मर जाता है,
जिसके लिए विश्वास है
वह मरकर भी जी जाता है,
और जिसके लिए अहसास है
वह अधमरा ही रह जाता है।

ज़िंदगी पूर्ण रूप से जीनी हो तो
बंधन, विश्वास और अहसास
तीनों को अपनाना होगा,
बंधन, विश्वास और अहसास
यही प्यार की परिभाषा है
प्यार रिश्तों का नाम नहीं है
प्यार रिश्तों से नहीं
रिश्ते प्यार से हैं।

प्यार को समझो तो
ये एक समंदर
जिसमें डूबकर ही आनंद आता है
और इसका अहसास ना हो तो
रेगिस्तान बन आता है
रिश्ते ना होते हुए भी प्यार हो
तो जीवन सार्थक हो जाता है।

कुछ पाना, प्यार नहीं
प्यार तो देने का नाम है
प्यार कोई शर्त नहीं कि
आप प्यार के बदले प्यार ही पाएँ।
प्यार के बदले प्यार ही मिले
ये ज़रूरी भी नहीं।

जब भी –
किसी को प्यार दें तो
बिना किसी शर्त के
इस आशा के बिना
कि बदलें में प्यार ही मिलेगा
प्यार लिया नहीं जाता
दिया जाता है
प्यार समेटा नहीं जाता
बाँट दिया जाता है
प्यार वह बंधन है
जिसमें बँधकर –
दिल को सुकुन आता है।

प्यार विश्वास है
जिसमें –
सब कुछ लुटाकर भी
बहुत कुछ मिल जाता है
प्यार अहसास है
जो अपने साथ
औरों के दिलों को भी धड़काता है।

You May Like – कविता – जब मैं छोटी थी

 

       प्रेरणा
प्रेरणा एक शक्ति है,
एक ऐसी शक्ति
जो देती है आभास
उन्नति का, सफलता का
खोलती है हज़ारों बंद दरवाज़े
जीवन में आगे बढ़ने के
प्रेरणा जहाँ से भी मिले
जिस रूप में मिले
ले लेनी चाहिए।

प्रेरणा मिलती है –
कभी किसी के प्यार से
कभी किसी के साथ से
रूप से, सौंदर्य से, गंध से
जहाँ से मिले
चुपचाप ले लेनी चाहिए।

बस शर्त इतनी है कि
शुद्ध मन हो
शांत वातावरण हो
न क्रोध हो
न आक्रोश
न ईष्र्या हो, न द्वेष
बस इच्छा हो
जीवन में आगे बढ़ने की।

कुछ पाने की
ऊँचाईयों को छूने की
सफलता के उन्मुक्त
स्वच्छंद गगन में
विचरण करने की।

प्रेरणा एक शक्ति है,
एक ऐसी शक्ति
जो देती है आभास
उन्नति का, सफलता का।

 

 

 

 

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