Sansmaran – जब मैं पहली बार अकेली ट्रिप पर गई (केरल ट्रिप)
1 min readजब मैं पहली बार अकेली ट्रिप पर गई (केरल ट्रिप)
लेखिका -मधु त्यागी
मुझे घूमने का , नई-नई जगह देखने शौक है पर अकेले कहीं जाने से डर लगता था । घूमने के अपने इस शौक को मैं चाहकर भी नहीं दबा प रही थी । साहस करके मैंने डी पॉल टूर्ज़ एंड ट्रेवल्ज़ के साथ केरल जाने का निर्णय लिया और अप्रैल १४ में मैं डी पॉल के साथ केरल गई । एयर पोर्ट पर पहुँची, मेरी फ़्लाइट जा चुकी थी , समझ नहीं आ रहा था क्या करुँ ?
पहली बार अकेली घूमने जा रही थी और फ़्लाइट ही छूट गई थी । निर्णय नहीं ले पा रही थी कि वापिस घर जाऊँ या हिम्मत करके अगली फ़्लाइट ले लूँ । दस मिनट बाद बहुत सोच-समझकर मैंने साहस करके अगली फ़्लाइट से कोची जाने का निर्णय लिया ।
उस समय मुझे यह भी नहीं पता था कि अगली फ़्लाइट लेने के लिए मुझे करना क्या है ? हेल्प डेस्क से पता किया ,अगली फ़्लाइट एक घंटे बाद की थी और आठ हज़ार रूपये और देने थे मुझे । मैं अगली फ़्लाइट से कोच्ची पहुँची।अब आगे क्या करना है, मुन्नार तक कैसे जाना है ?
मुझे नहीं पता था ,पाँच मिनट तक सोचने के बाद मैंने डी पॉल टूर्ज़ एंड ट्रेवल्ज़ के ऑफिस में कॉल की और आगे के बारे में पूछकर, मैंने मुन्नार के लिए प्रीपेड टैक्सी ली । डरते-डरते टैक्सी में बैठी ,तीन घंटे का लम्बा सफ़र मुझे टैक्सी में अकेले ही तय करना था ।
मन में बुरे-बुरे ख़्याल आ रहे थे , टैक्सी घने जंगलों से गुज़र रही थी, अदभुत प्राकृतिक सौंदर्य देखकर भूल चुकी थी कि मैं टैक्सी में अकेले सफ़र कर रही हूँ । अभी थोड़ी देर पहले मैं इसी विचार से डरी हुई थी । तभी ड्राइवर ने मेरी तन्द्रा भंग करते हुए पूछा – “मैडम लंच होटल में करेंगी या किसी ढाबे पर खाना पसंद करेंगी ?”
मैंने बिना कुछ सोचे जवाब दिया , “अगर कोई अच्छा ढाबा हो तो मैं ढाबे में भी लंच कर सकती हूँ । ” एक छोटे से झरने के पास कार रुकी , मैंने उतरकर देखा, बहुत छोटा-सा ढाबा था , खाने में भी सिर्फ डोसा ,इडली और वड़ा ही था पर जगह बहुत अच्छी थी
। मैंने डोसे का ऑडर दिया और एक ब्रिज पर रखी कुर्सी पर बैठ गई , नीचे साफ पानी बह रहा था , झरने की मीठी आवाज़ , हरे-भरे पेड़ , ऐसे में डोसे का स्वाद दुगुना हो गया । डोसा बहुत स्वादिष्ट था , एक और मँगवाया और खाने के बाद कार में बैठते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला , आँख तब खुली जब कार होटल के बाहर रुकी । अपने कमरे में जाकर फ़्रेश हुई , बस यही चिंता सता रही थी कि अकेले ट्रिप पर आकर शायद मैंने सही नहीं किया ।
अब अकेले डिनर करुँगी , सब अपने परिवार के साथ होंगे और मैं अकेले , अपने अकेलेपन से भागकर ट्रिप पर आई पर फिर वही अकेलापन । क्या करुँ ? कुछ समझ नहीं आ रहा था । डिनर के लिए जाने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी पर डिनर तो करना ही था ।
डाइनिंग रूम में गई , वहाँ सब अपने-अपने परिवार के साथ टेबल्स पर बैठे थे , मैं कोने में खाली पड़ी एक टेबल पर बैठ गई , कई जोड़ी आँखे मुझे घूर- घूरकर देख रही थीं , जैसे सब जानना चाहते थे कि मैं अकेली घूमने क्यों आई हूँ ? मैंने चुपचाप खाना खाया और अपने कमरे में आकर खुश होने की नाकाम कोशिश करने लगी , निराशा और अकेलेपन का दुःख कहीं भी पीछा नहीं छोड़ते , शायद मेरी किस्मत में किसी तरह की ख़ुशी थी ही नहीं ।
ट्रिप के रूप में खुशियाँ खरीदने की कोशिश की थी मैंने पर खुशियाँ पैसों से नहीं खरीदी जा सकती, इस बात का एहसास मुझे ट्रिप पर आकर हो रहा था।सुबह क्या होगा ? बस में अकेले ही बैठना होगा मुझे, अकेले ही घूमना होगा , यही सब सोचते-सोचते न जाने कब नींद आ गई ।
सुबह फिर अकेले ही ब्रेकफास्ट किया और रिसेप्शन एरिया में रखे सोफे पर बैठकर ग्रुप के अन्य सदस्यों का इंतज़ार करने लगी । वहाँ पहले से ही एक महिला अपनी दो बेटियों के साथ बैठी थी और बीच-बीच में अपनी बेटियों की तस्वीरें भी खींच रही थी । तभी मैंने उस महिला से पूछा कि क्या वो भी डी पॉल ग्रुप के साथ हैं ।
पता चला ,वह भी ग्रुप के साथ ही है , मैं खुश थी कि वह अपनी दो बेटियों के साथ ट्रिप पर आई है , मुझे लगा मुझे साथ मिल गया पर थोड़ी ही देर में उनके साथ एक पुरुष भी दिखाई दिया, पता चला वह उस महिला का पति है , मैं फिर अकेली हो गई थी । बस आ चुकी थी , सब बस में जा चढ़ रहे थे , मेरा मन बिलकुल नहीं था बस में बैठने का , पर आई थी तो बस में बैठना ही था ।
भारी मन से बस की तरफ कदम बढ़ाए क्योंकि बस में अकेले बैठना था , बस में चढ़ी तो देखा पाँच नवविवाहित जोड़े बैठे थे और वह महिला भी अपने पति के साथ बैठी थी , उसकी एक बेटी अभी बस में नहीं चढ़ी थी और एक सीट पर बैठी थी , मैं बुझे मन से एक खाली सीट की तरफ़ बढ़ी,तभी एक मधुर आवाज़ सुनाई दी ,आंटी आप मेरे साथ बैठ जाइए , मैंने उस तरफ नज़र उठाकर देखा जहाँ से आवाज़ आई थी, एक प्यारा सा मुस्कराता चेहरा , दो बड़ी-बड़ी मुस्कराती आँखे , अपने साथ, अपने पास बैठने का निमंत्रण दे रही थी मुझे ।
ये उसी महिला की बड़ी बेटी थी – नाहिद । जितना प्यारा नाम था , उतनी ही प्यारी थी नाहिद । मैं नाहिद के साथ बैठ गई , नाहिद की छोटी बहन इशी , ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठी क्योंकि उसे विडियो बनानी थी ।
नाहिद ने बात शुरू की, आंटी आप अकेली आई हैं ट्रिप पर , घर में और कौन-कौन हैं ? उसके सवालों के जवाब देने के बाद मैंने उसे थैंक्स कहा और बताया कि मैं कितनी परेशान थी ये सोचकर कि पूरे ट्रिप में अकेली रहूँगी । नाहिद और ईशी ,दोनों ने मेरा केरल ट्रिप यादगार बना दिया, पूरा दिन हम तीनों साथ रहते , ढेर सारी बातें करते और एक होटल में तो हमने मिलकर पेड़ से आम भी चुराया , आम चुराते हुए डर भी लगा पर मज़ा भी आया ।
बाद में पता चला कि आम नकली था । नाहिद और मैं साथ बैठते ,अगर ईशी को पीछे बैठना होता तो वह अकेली बैठती , शायद इसलिए कि मुझे अकेले न बैठना पड़े । जिस दिन कोवल्लम जाना था,नाहिद और ईशी मेरे साथ ही गई , उनके मम्मी -पापा साथ नहीं गए।
केरल ट्रिप के बाद मैंने भूटान,हम्पी,बनारस,कुन्नर,एंडड्रेटा,पोंडेचेरी,विएतनाम, अरुणाचल प्रदेश के ट्रिप किए , अगर केरल ट्रिप का अनुभव अच्छा ना होता तो शायद मैं ज़िन्दगी में किसी और ट्रिप पर ना जा पाती और मेरा घूमने का शौक़ कभी पूरा ना होता।घूमने का मेरा ये शौक सिर्फ़ और सिर्फ़ नाहिद व इशी के कारण पूरा हो रहा है । उन दोनों को तो इस बात का एहसास भी नहीं होगा कि उन्होंने अनजाने में मेरे लिए क्या किया है ?
नाहिद और इशी, जब मेरा ये यात्रा वृतांत पढ़ेंगी तब उन्हें पता चलेगा कि अनजाने में उन दोनों ने मेरे लिए एक नई दुनिया के द्वार खोल दिए , मेरे पंखों को उड़ान भरने का, नई – नई जगह जाने का , अपने हिस्से की खुशियाँ बटोरने का साहस दिया है उन्होंने मुझे ।अगर मेरी बेटियाँ होती तो मैं ऐसा ही महसूस करती जैसा मैंने नाहिद और इशी के साथ महसूस किया।
उन दोनों ने मुझे ये आशा दी कि हर सफ़र पर मुझे उनके जैसा कोई ज़रूर मिलेगा,जो मेरी अकेली यात्रा में मेरे साथ होगा,मेरे हिस्से की खुशियाँ भी मुझे ज़रूर मिलेंगी।भूटान ट्रिप पर मेरे साथ थी रूचि ,हम्पी में शीला,बनारस में अरिति, कुन्नुर में वेंडि ,पोंडेचेरी में अरिति ,विएतनाम में आभा, अरुणाचल प्रदेश में प्रीति और एंडड्रेटा में रेणुका – जिनके कारण मैंने स्वयं को अकेला महसूस नहीं किया।
भूटान ट्रिप पर मिली बिंदास -गीतिका ग्रोवर का नाम लिए बिना मेरा ये यात्रा वृतांत अधूरा रहेगा , गीतिका ने मुझे अपने आपसे प्यार करना,अपने बारे में सोचना सिखाया।
जीवन की राहों में मिले इन अनजान व्यक्तियों के कारण ज़िंदगी अच्छी लगने लगी है,अकेले घूमने में डर नहीं लगता,नए- नए लोगों से मिलना अच्छा लगने लगा है,अपने आपसे,अपनी ख्वाहिशों से प्यार हो गया है इनर हैप्पीनेस क्या होती है ? ये मैंने ट्रिप्स पर जाने के बाद ही जाना ।
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बहुत ही अच्छा वृतांत था मैम पढ़कर बड़ा अच्छा लगा।
शुक्रिया हिमा बिंदु जी