Madhu kalash.

कुछ सीखें / खुद को खर्च करें / ताकि दुनिया आपको सर्च करे ।

मेरे छह लघुकथा संग्रह – मधुकलश, उड़ान, इंद्रधनुष, मंजुषा, संचयन,नवधा

1 min read

                                                        मेरे छह लघुकथा संग्रह

                                  मुझे लगता है कि छोटी- छोटी बातें शीघ्रता से मन में उतरती है ,शायद इसी कारण से सूक्तियों का प्रचलन हुआ, सूक्तियाँ  लोकप्रिय भी हुई। मेरे लिए मेरी लघुकथाएँ जीवन के विविध पक्षों को उजागर करने वाली सूक्तियाँ है। आज लघुकथाएँ अधिक लोकप्रिय है, छोटी कहानियों को पढ़ लेना आज भी सबके लिए संभव है। इन कहानियों में जीवन की सीख के साथ नैतिक मूल्यों का आदर्श भी हैं।

                                आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में पाठकों के पास इतना समय नहीं है कि वे लंबी- लंबी कहानियाँ पढ़ें इसलिए मैंनें मधुकलश, उड़ान, इंद्रधनुष, मंजुषा, संचयन आदि लघुकथा संग्रहों की रचना की। मेरी इन पुस्तकों में छोटी-छोटी शिक्षाप्रद रोचक कथाएँ हैं ,जो पाठकों को सोचने के लिए विवश कर देंगी और उन्हें व्यापक प्रेरणा भी देंगी। 

इन कथाओं की रचना जीवन को उन्नत बनाने के लिए और बच्चों को जीवन मूल्यों से जोड़े रखने के लिए की गई है।ये कथाएँ सहज ही पाठकों के लिए उस मार्ग को प्रशस्त करेंगी, जिस पर मनुष्य को चलना चाहिए और उस मार्ग पर चलकर जीवन की अनेक समस्याएँ सुलझ जाएँगी।

मानव जीवन निरुद्देश्य नहीं है ,मनुष्य का जन्म केवल खाने-पीने और सोने के लिए नहीं हुआ अपितु मानव जीवन का कोई न कोई प्रयोजन अवश्य है ये कहानियाँ इसी सत्य को उजागर करेंगी।

     मेरी कामना है कि आज के बच्चे, कल के भविष्य निर्माता ऐसी मूल्यपरक कहानियाँ पढ़ें और अपने जीवन, समाज, राष्ट्र तथा पूरे विश्व को समृद्ध बनाएँ। यदि ऐसा हुआ तो संपूर्ण मानव जाति लाभान्वित होगी और मेरा श्रम मेरे लघुकथा संग्रहों को सार्थकता प्राप्त होगी।

उड़ान – https://www.amazon.in/dp/9390502128?ref=myi_title_dp

मंजूषा – https://www.amazon.in/dp/9390502799?ref=myi_title_dp

नवधा – https://www.amazon.in/dp/9390502624?ref=myi_title_dp

इंद्रधनुष – https://www.amazon.in/dp/9390502543?ref=myi_title_dp

संचयन – https://www.amazon.in/dp/9390502705?ref=myi_title_dp

मधु कलश – https://cutt.ly/eQT9Nf8

ई-बुक लिंक – https://cutt.ly/5QT9CAv

                                               लघुकथा संग्रह मधु कलश से कुछ लघुकथाएँ

 

विडीओ – लघुकथा ‘मासूम’

                                                                   भला – बुरा

शिष्य ने गुरु से पूछा,‘‘ गुरु जी शरीर के दो सर्वोत्तम, सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग कौन से हैं ?’’
‘‘ जीभ और हृदय’’ गुरु ने उत्ता दिया ।’’
‘‘ और देह में निकृष्ट दो अंग कौन से हैं ?’’ शिष्य ने फिर पूछा ।
‘‘ जीभ और हृदय’’ गुरु ने फिर वही शब्द दोहराए ।
‘‘ गुरु जी ये दो अंग भले भी और बुरे भी कैसे हो सकते हैं ?’’ शिष्य ने आश्चर्यचकित होकर पूछा ।
गुरु ने उत्तर दया, ‘‘ जीभ मधुभाषी और हृदय सद्भाव संपन्न हो तो यह जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है परंतु यदि जीभ से कटु वचन निकलें और हृदय में दुर्भाव भ्रे हों तो उनकी निकृष्टता में कोई संदेह नहीं।’’

 

                                                              लालच 

मधुमक्खी और तितली में घनिष्ठ मित्रता थी । दोनों उड़ती उड़ती एक बगीचे में पहुँची । मधुमक्खी एक फूल पर बैठकर मकरंद चूसने लगी । तितली ने मँडराते मँडराते पूछा,‘‘ बहन क्या कर रही हो, मुझे भी तो बताओ ज़रा ।’’
‘‘ मधु इकट्ठा कर रही हूँ ।’’ यह कहकर मधुमक्खी अपने काम में जुट गई ।
तितली हँसकर बोली, ‘‘बहन तुम भी कितनी नादान हो, इतने छोटे छोटे फूलों से मकरंद चूसोगी तो जीवन बीत जाएगा पर तुम एक बूँद भी मधु इकट्ठा नहीं कर पाओगी, चलो चलकर मधु का तालाब ढूँढते हैं ।’’
मधुमक्खी कुछ ना बोली फूल पर बैठी चुपचाप मकरंद चूसती रही ।
तितली मधु के तालाब की खोज में जंगल जंगल भटकती रही पर उसे मधु का तालाब नहीं मिला ।
शाम हुई दोनों घर लौटीं । मधुमक्खी अपने साथ ढेर सारा मधु इकट्ठा करके लाई और तितली खाली हाथ ही आई ।

You May Like –कविता संग्रह आह्वान से कुछ कविताएँ

                                                        चाह

बगिया में रंग- बिरंगे ,तरह -तरह के फूल खिले थे । जब हाथ गुलाब के फूल की ओर बढ़ा और बिल्कुल निकट जा पहुँचा तो उत्सुकतावश फूल ने पूछ ही लिया, ‘‘ बंधु इस समीपता का उद्देश्य क्या है ?’’
‘‘ तुम्हारे ऊपर उपकार करने आया हूँ , तुम्हें देवता के चरणों में पहुँचाने का विचार है ।’’ हाथ ने उत्तर दिया ।
‘‘ देवता के चरणों तक सौभाग्यशाली फूल पहुँच ही जाते हैं पर इन निरीह तितलियों और मधुमक्खियों के बारे में भी सोच लिया होता । मैं तो इन्हीं के काम आना चाहता हूँ और जहाॅं जन्मा हूँ वहीं मरकर खाद बनकर मिल जाने का संतोष पाना चाहता हूँ ।’’ उदास फूल ने उत्तर दिया ।

 

                                                           सत्य

दिन ढलने लगा और ढलते दिन के साथ परछाई लंबी होने लगी । वह म नही मन प्रसन्नता का अनुभव कर रही थी । उसे लगा आज तो उसकी विजय हो ही गई । अभिमान भरे स्वर में परछाई ने बालक से कहा, ‘‘ आज वह दिन आ ही गया, जब तुम्हें मुझसे पराजित होना ही पड़ा । देखो तुम जैसे थे वैसे ही बने रह गए और मैं तुम्हारी होकर भी तुमसे कितनी बड़ी हो गई हूँ ।’’
‘‘ पगली सत्य और मिथ्या में यही तो अंतर है । सत्य में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता और अपने मिथ्या स्वरूप् को देख लो , यह सदैव घटता बढ़ता रहता है ।’’

                                          

                                                 परिश्रम का फल

आम के बड़े पेड़ की शाखा पर बर्रों ने अपना बड़ा सा छत्ता बनाया । पास की ही एक शाखा पर हज़ारों मधुमक्खियाँ अपना छोटा सा छत्ता बनाने में पूरी तन्मयता के साथ परिश्रम कर रहीं थीं । बर्रों के बड़े छत्ते में से एक बड़ी बर्र निकली और व्यंग्य करते हुए बोली, ‘‘ छोटा सा छत्ता और इतनी सारी मक्खियों का इतना सारा परिश्रम और इतना शोर गुल……हा-हा-हा…..।
मधुमक्खियों में से एक सयानी मधुमक्खी ने नहले पर दहला मारते हुए कहा,‘‘ बहन तुम भी एक छोटा छत्ता बनाकर दिखा दो जिसमें हमारे छत्ते जितना शहद भरा हो ।’’

 

                                                                   मनुष्य

शिष्य ने उत्सुकतावश गुरु से प्रश्न किया, ‘‘ हम मनुष्य कितने प्रकार के होते हैं ?’’
‘‘ मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं , कुछ देवता, कुछ मनुष्य और शेष नर- पिशाच होते हैं ।’’
‘‘ इन देवताओं , मनुष्यों और नर पिशाचों की पहचान क्या है ?’’ शिष्य ने अगला प्रश्न किया ।
‘‘ मनुष्यों में देवता वह हैं जो दूसरों के लाभ के लिए जीते हैं और स्वयं हानि उठाने के लिए भी तैयार रहते हैं । मनुष्य वे हैं जो अपना भी भला करते हैं और दूसरों का भी । नर पिशाच वे हैं जो दूसरों की हानि की ही सोचते हैं, भले ही इस प्रयास में उन्हें स्वयं को भी हानि उठानी पड़े ।’’ गुरु जी ने उत्तर दिया ।

 

                                                          

                                                    धूर्त और संत

बेटा पिता के पास गया और बोला, ‘‘ पिता जी आजकल संत और धूर्त लोग सब एक जैसे ही दिखते हैं । पता करना बहुत ही मुश्किल है कौन संत है और कौन धूर्त ? कोई उपाय बताइए कि दोनों को पहचाना जा सके ।’’
‘‘ इसमें कौनसी बड़ी बात है बेटा । धूर्त सदैव सेवा करवाने के चक्कर में रहते हैं और संत सेवा करने के । संत हर परिस्थिति में एक सा व्यवहार करते हैं और धूर्त स्वार्थ सिद्धि के लिए चापलूसी ,चतुराई से पूर्ण रहते हैं । धूर्त माँगते हैं और संत देते हैं ।

मधु कलश – https://cutt.ly/eQT9Nf8

ई-बुक लिंक – https://cutt.ly/5QT9CAv

 

 1,209 total views,  2 views today

1 thought on “मेरे छह लघुकथा संग्रह – मधुकलश, उड़ान, इंद्रधनुष, मंजुषा, संचयन,नवधा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright ©2022, All rights reserved. | Newsphere by AF themes.
error: Content is protected !!