Jhen Ki Den,Prashnottar,class10,course B
1 min readविडीओ – झेन की देन पाठ के प्रश्नोत्तर
विडीओ – झेन की देन की व्याख्या
प्रश्न 1 – चाज़ीन जी ने कौन सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी की?
उत्तर – चाज़ीन ने निम्नलिखित क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी की –
1.चाज़ीन ने कमर झुकाकर प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई ।
2. अंगीठी जलाई और उस पर चायदानी रखी ।
3. कुछ बर्तन लाया और तौलिए से साफ़ किए ।
4.चाय कपों में डालकर गरिमापूर्ण ढंग से लेखक और उसके साथियों के सामने रखी।
ये सारे काम चाज़ीन ने बड़े ही सलीके से पूरे किए और उसकी हर एक मुद्रा अर्थात् उसके काम करने के ढंग से लगता था कि जैसे जयजयवंती नाम के राग के स्वर गूँज रहे हो।
प्रश्न 2 – टी सेरमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों ?
उत्तर – जापान में टी सेरेमनी में एक साथ तीन व्यक्तियों को प्रवेश दिया जाता था।टी सेरमनी समारोहों की सबसे खास बात शांति होती है इसलिए वहाँ तीन से ज्यादा व्यक्तियों को प्रवेश नहीं दिया जाता।
प्रश्न 3 – चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया ?
उत्तर – टी सेरेमनी में चाय पीने की विधि ने लेखक को बहुत प्रभावित किया।लेखक ने चाय पीने के बाद महसूस किया कि जैसे उसके दिमाग की रफ्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ती जा रही है और उसके दिमाग ने चलना बंद कर दिया है।लेखक को लगा कि वह अनंतकाल में जी रहा है, जैसे वह समय कभी खत्म ही नहीं होगा। लेखक केवल वर्तमान में जी रहा था, भूतकाल और भविष्य काल का बोझ उसके दिमाग पर नहीं था ।यहाँ तक कि लेखक इतना शांत हो गया था कि बाहर की शांति भी शोर लग रही थी, उसे सन्नाटे की आवाज़ें भी सुनाई देने लगी थी।
प्रश्न 4 – लेखक के मित्रों ने मानसिक रोग के क्या क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर –लेखक मित्र ने जापानी लोगों के मानसिक रोग के निम्नलिखित कारण बताए हैं-
1.अमेरिका से होड़ के कारण जापानी लोगों ने अपने जीवन की रफ्तार काफी बढ़ा दी है।
2.जापानी लोग चलने के स्थान पर दौड़ते हैं, बोलने के स्थान पर बकते हैं।
3.वे एक महीने का काम एक दिन में पूरा कर लेना चाहते हैं।
4.वे मशीनों की तरह काम करते हैं, अपने दिमाग को बड़ी तेज गति से दौड़ाते हैं।
विकास की इस गति ने उनके जीवन की भागदौड़ बढ़ा दी है। जापानी लोग हर समय काम में व्यस्त रहते हैं, वे अकेले रहने पर भी हर समय चिंतनशील और उलझे रहते हैं। इन कारणोंसे हम पूरी तरह से सहमत हैं कि मानसिक उलझन व अशांति के कारण शरीर और मन दोनों तनावग्रस्त हो जाते हैं ऐसे में मानसिक रोग होना स्वाभाविक है।
प्रश्न 5 –लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है उसी में जीना चाहिए, लेखक ने ऐसा क्यों
कहा होगा स्पष्ट कीजिए?
उत्तर – लेखक का मानना है कि भूतकाल तो बीत चुका है।उसकी अच्छी बुरी बातें याद करने से मनुष्य को दुख होता है , वह तनाव में जीता है।इसी प्रकार भविष्य जो न तो हमारे सामने है और न ही उसे हमने देखा है उसके बारे में रंगीन कल्पनाएँ हमारे वर्तमान के दुख को बढ़ाती है। भूत और भविष्य के चक्कर में हम वर्तमान को सही ढंग से नहीं जी पाते।भूतकाल और भविष्य काल दोनों ही मिथ्या हैं ।जो बीत गया उससे सीख लेकर वर्तमान में अच्छा करने से भविष्य स्वयं ही सुधर जाएगा ।भविष्य अनिश्चित है, वर्तमान ही सत्य है अतः उसी में जीना चाहिए।लेखक ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि वर्तमान काल अनंत काल जितना विस्तृत होता है। मनुष्य को सदैव यथार्थ का सामना करना चाहिए और उसे स्वीकार करना चाहिए इसी में उसकी भलाई है, स्वस्थ और खुशहाल जीवन का सीधा संबंध वर्तमान से होता है।
प्रश्न 6 – हमारे जीवन की रफ्तार बढ़ गई है।यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है कोई बोलता नहीं बकता है हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आप से लगातार बड़ बड़ाते रहते हैं।आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने जापान के लोगों का उदाहरण देते हुए कहा है कि प्रतिस्पर्धा के कारण जापानियों के जीवन की रफ्तार इतनी तेज हो गई है कि उनका जीवन असामान्य हो गया है।एक महीने का काम एक दिन में करना चाहते हैं, दिमाग की गति वैसे ही बहुत तेज होती है, ऐसे में गति और बढ़ाने से वह मशीन बन जाता है।जापान के लोग चलने के बजाय दौडने लगे हैं, बोलने के बजाय बकने लगे है अकेले में भी बड़- बड़ाते रहते हैं।उनका शरीर और मन हर क्षण दौड़ता रहता है और तनाव में रहता है उनका जीवन मशीन की तरह यांत्रिक बन गया हैं।
प्रश्न 7 – सभी क्रियाएं इतनी गरिमापूर्ण ढंग से की कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के स्वर गूंज रही हो।आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर –लेखक को अपने दो मित्रों के साथ जापान में एक टी सेरेमनी में शामिल होने का मौका मिला I वहाँ चाज़ीन द्वारा कमर झुकाकर स्वागत करना, बैठने की जगह की ओर इशारा करना, अंगीठी सुलगाना, बर्तन साफ करना, चाय बनाना आदि क्रियाएँ अत्यंत शांत वातावरण में, अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से की गई, हर गतिविधि को देखकर ऐसा लगता था कि जैसे जयजयवंती राग का सुर गूंज रहे हो I सारे दृश्य ने लेखक को भावविभोर कर दिया और इससे लेखक को असीम शांति की अनुभूति हुई।
अतिरिक्त प्रश्न
प्रश्न 1 – जापान में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर – जापान में चाय पीने की विधि को चा -नो -यू कहते हैं।
प्रश्न 2 – जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है उस स्थान की क्या विशेषता है ?
उत्तर – जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है वहाँ इतनी शांति होती है कि पानी का खद –
बदाना भी सुना जा सकता है।वहाँ चाज़ीन सारे कार्य अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से शांत वातावरण
में करता है।
प्रश्न 3 – लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर – लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात इसलिए कही है क्योंकि
जापानी अपने काम को बहुत तेज गति से करते हैं।उन्हें देखकर लगता है कि वे एक महीने का
काम एक ही दिन में निपटा देना चाहते हैं।
प्रश्न 4 – चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर – चाय पीने के बाद लेखक ने अपार शांति महसूस की उसे लगा कि उसके दिमाग की
रफ्तार बंद हो चुकी है वह अपना अतीत और वर्तमान सब कुछ भूल चुका था उसके मन में
और आस पास सब कुछ शून्य सा हो गया था।
प्रश्न 5 – स्वीट का इंजन लगने पर दिमाग कितनी गुना रफ्तार से दौड़ने लगता है?
उत्तर – स्पीड का इंजन लगने पर दिमाग हज़ार गुना तेज रफ्तार से दौड़ने लगता है।
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प्रश्न 6 – जापानी लोगों के तनाव का क्या कारण है?
उत्तर – जापानी लोग प्रतिस्पर्धा के कारण अधिक तेजी व शक्ति से कार्य करते हैं, वे तेज गति
से दिमाग चलाते हैं जिसके कारण तनाव में रहते हैं।
प्रश्न 7 – पर्णकुटी का निर्माण किस प्रकार से किया गया था?
उत्तर – पर्णकुटी की छत दफ़्ती की दीवारों वाली थी और जमीन पर तातायी (चटाई) बिछी
हुई थी।
प्रश्न 8 – लेखक के अनुसार मनुष्य को कैसे जीना चाहिए?
उत्तर – मनुष्य को भूत काल से सीख लेकर वर्तमान में जीना चाहिए और वर्तमान में गलतियों
को सुधारकर भविष्य को सुंदर बनाना चाहिए।
प्रश्न 9 – चाय पीते पीते लेखक के दिमाग से क्या उड़ गया?
उत्तर – चाय पीते- पीते लेखक के दिमाग से भूत और भविष्य दोनों काल उड़ गए।
प्रश्न 10 – झेन की देन पाठ का क्या संदेश है?
उत्तर – झेन की देन पाठ का संदेश पाठकों को इस बात से अवगत करवाना है कि उच्च आकांक्षाएँ और अत्यधिक काम का बोझ मनुष्य को हमेशा तनाव में रखते हैं।व्यक्ति सामान्य से असामान्य होने लगता है, अधिक प्राप्त करने की लालसा में व्यक्ति का प्राकृतिक स्वभाव खो जाता है, मनुष्य को भूत और भविष्य में जीने की अपेक्षा वर्तमान में जीना चाहिए, अधिक तनाव मानसिक रोग का कारण बन जाता है।
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