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Maushyata Kavita Ke Important Points

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कविता मनुष्यता के महत्वपूर्ण बिंदु
कविता मनुष्यता के महत्वपूर्ण बिंदु

 

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इस कविता के माध्यम से कवि हमें मानवता, सद्भावना, भाईचारा उदारता, करुणा और एकता  का सन्देश देते हैं।

कवि चाहते हैं कि हर मनुष्य पूरे संसार में अपनेपन की अनुभूति करें।

वह जरूरतमंदों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने में भी पीछे न हटे। उनके लिए करुणा का  भाव जगाए।

वह अभिमान, अधीरता और लालच का त्याग करें।

एक दूसरे का साथ देकर देवत्व को प्राप्त करें।

वह सुख का जीवन जिए और मेलजोल बढ़ाने का प्रयास करें।

कवि ने प्रेरणा लेने के लिए रंतिदेव, महर्षि दधीचि, क्षितीश और कर्ण जैसे महानुभावों के उदाहरण दे कर उनके अतुल्य त्याग के बारे में बताया है।

कवि ने ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है जिसमें मनुष्य अपने से पहले दूसरे की चिंता करता है और परोपकार की राह को चुनता है जिससे उसे मरने के बाद भी याद किया जाता है।

कवि का मानना है कि अगर कोई मनुष्य मृत्यु के पश्चात दूसरे लोगों की यादों मंे बसा रहे, लोग उसे उसके सत्कार्यों के लिए याद करें, आँसू बहाएँ तो ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा जाता है अर्थात् कवि के अनुसार यशस्वी मृत्यु ही सुमृत्यु है।

उदार व्यक्ति परोपकारी होता है, वह अपने से पहले दूसरों की चिंता करता है और लोक कल्याण के लिए अपना जीवन त्याग देता है।

उदार व्यक्ति कभी भी अपनी चिंता नहीं करते। वे तो अपना नुकसान उठाकर भी केवल दूसरों का हित सोचते हैं। उदार व्यक्ति स्वयं को मिटाकर भी दूसरों का उद्धार करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है। वास्तव में ऐसे उदार व्यक्तियों की उदारता के कारण ही आज भी मनुष्यता जीवित है और ऐसे उदार व्यक्तियों के कारण ही समाज का विकास संभव हंै।

कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों के उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए यह सन्देश दिया है कि परोपकार करने वाला ही असली मनुष्य कहलाने योग्य होता है।

भूख से परेशान रंतिदेव ने अपने हाथ की आखरी थाली भी दान कर दी थी।

मानवता की रक्षा के लिए महर्षि दधीचि ने तो अपने पूरे  शरीर की हड्डियाँ वज्र बनाने के लिए दान कर दी थी।

उशीनर देश के राजा शिबि ने कबूतर की जान बचाने  के लिए अपने शरीर का मांस दान कर दिया था।

कर्ण ने अपनी जान की परवाह किये बिना अपना कवच दे दिया था जिस कारण उन्हें आज तक याद किया जाता है।

इन सब उदाहरणों द्वारा कवि कहना चाहता है कि मनुष्य इस नश्वर शरीर के लिए क्यों डरता है क्योंकि मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों के लिए कुछ भी त्यागने के लिए सदैव तैयार रहता है।

मनुष्य को सम्पति के घमंड में कभी नहीं रहना चाहिए और न ही इस बात पर गर्व करना चाहिए कि आपके पास परमात्मा का साथ है क्योंकि इस दुनिया में कोई भी अनाथ नहीं है सब उस परम पिता परमेश्वर की संतान हैं।

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हम सब मनुष्य एक ईश्वर की संतान हैं अतः हम सब भाई – बन्धु हैं। भाई -बन्धु होने के नाते हमें भाईचारे के साथ रहना चाहिए और एक दूसरे का बुरे समय में साथ देना चाहिए।

कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है ताकि आपसी समझ न बिगड़े और न ही भेदभाव बढ़े। सब एक साथ एक होकर चलेंगे तो सारी बाधाएँ मिट जाएगी और सबका कल्याण और समृद्धि होगी।

कवि कहते हैं मनुष्य को परोपकार का जीवन जीना चाहिए ,अपने से पहले दूसरों के दुखों की चिंता करनी चाहिए। केवल अपने बारे में तो जानवर भी सोचते हैं, कवि के अनुसार मनुष्य वही कहलाता है जो अपने से पहले दूसरों की चिंता करे।

परोपकार ही एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम युगों तक लोगो के दिल में अपनी जगह बना सकते है और परोपकार के द्वारा ही समाज का कल्याण व समृद्धि संभव है। अतः हमें परोपकारी बनना चाहिए ताकि हम सही मायने में मनुष्य कहलाएँ।

                                                  मनुष्यता से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न 

 (1) ‘मनुष्य को दूसरों के साथ उदारता से रहना चाहिए और मानवीय एकता को दृढ़ करने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। उसे खुद भी सदैव उन्नति के पथ पर अग्रसर रहना चाहिए और दूसरों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए।‘

प्रश्न : ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर वर्तमान समय में इस कथन की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।

 

(2) मनुष्य मरणशील है अतः उसे चाहिए कि वह अपनी सुनिश्चित मृत्यु को अपने कर्मों द्वारा यादगार बना दे, ताकि उसके जाने के पश्चात भी लोग उसे याद करें। केवल अपने लिए चर कर पशुवत जीवन व्यतीत करने की अपेक्षा उसे  परोपकार करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए।

प्रश्न : मैथिली शरण गुप्त जी ने कहा है,’आह! वही उदार है परोकार जो करें’ इस पंक्ति के संदर्भ में बताइए विश्व बंधुत्व की भावना का क्या है और इसका विस्तार क्यों आवश्यक है? 

 

(3) कविता में कवि ने दधीचि ,कर्ण और महात्मा बुद्ध आदि महान व्यक्तियों के द्वारा हमें क्या बोध करवाने का प्रयास किया है और वही मार्ग अपनाने के लिए क्यों प्रेरित किया है ?

प्रश्न : ‘मनुष्यता कविता की एक पंक्ति है विरुद्धवाद बुद्ध का दया प्रवाह में बहा बुद्ध ने अपने विचारों से हिंसक लोगों को भी वश में कर लिया था, वर्तमान समय में क्या यह भाव सार्थक हो सकता है? कविता के आलोक में अपने विचारों को लिखिए।

 

(4)  भारत में हमें अपने विचार व्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता है । हमारे विचारों का विरोध भी हो सकता है।  मत -मतांतर ,पक्ष – विपक्ष होना स्वतंत्र और सशक्त लोकतंत्र का परिचायक है। यह सबका अपना व्यक्तिग़त निर्णय कि वह  किसी के विचारों से सहमत होता है या उसका विरोध करता है।यदि कोई आपके विचारों से असहमत होकर, आपके मत को अस्वीकार करता है तो कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न :    विरुद्धवाद बुद्ध का दया प्रवाह में बहा ”  वर्तमान समय में क्या यह भाव सार्थक हो सकता है? ‘मनुष्यताकविता के आधार पर सस्पष्ट कीजिए। क्या आप इस बात से सहमत हैं अपने विचार प्रकट कीजिए।

 

प्रश्न : (5) कवि मैथिलीशरण गुप्त ने संपूर्ण सृष्टि में अखण्ड आत्मभाव भरने की बात की है। अखण्ड आत्मभाव का क्या तात्पर्य है यह भाव कैसे मनुष्य में रहता है ?मनुष्यता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

 

प्रश्न : (6) हमें सभी के साथ उदारतापूर्वक रहना चाहिए और आपसी एकता को और भी सुदृढ़ बनाने का प्रयास करना चाहिए। इससे हम परस्पर एक दूसरे को आगे बढ़ाते हुए स्वयं भी उन्नति कर सकेंगे इस सोच के आधार पर वर्तमान समय में मनुष्य कविता की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।

 

 

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