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Vyakaran , Defination,Importance व्याकरण की परिभाषा,सीमा तथा लाभ

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व्याकरण की परिभाषा, सीमा तथा लाभ

व्याकरण की परिभाषा, सीमा तथा लाभ

                                                           

व्याकरण - परिभाषा, सीमा, लाभ

 

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 व्याकरण किसे कहते हैं ?

व्याकरण (वि +आ +करण) शब्द का अर्थ है ‘भली भाँति समझना’। व्याकरण में वे नियम समझाए जाते हैं जो शिष्ट जनो के द्वारा स्वीकृत शब्दों के रूपों और प्रयोग में दिखाई देते हैं ।

किसी भी भाषा के शुद्ध स्वरूप का ज्ञान करवाने वाले शास्त्र को व्याकरण  कहा जाता है दूसरे शब्दों में व्याकरण वह शास्त्र है जो भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान करवाता है ।

जिससे शास्त्र में शब्दों के शुद्ध रूप और प्रयोग के नियमों का निरूपण होता है उसे व्याकरण कहते हैं । व्याकरण के नियम बहुदा लिखी हुई भाषा के आधार पर निश्चित किए जाते हैं , क्योंकि उसमें शब्दों का प्रयोग बोली हुई भाषा की अपेक्षा अधिक सावधानी से किया जाता है ।

 

व्याकरण का रूप –

व्याकरण भाषा के अधीन है और भाषा ही के अनुसार बदलता भी रहता है । वैयाकरण अर्थात्  व्याकरण के ज्ञाता अर्थात व्याकरण की रचना करने वाले का काम यह नहीं है कि वह अपनी ओर से नए नियम बनाकर भाषा को बदल दें । वह इतना ही  कह सकता है कि अमुक प्रयोग शुद्ध है अथवा अधिकता से किया जाता है ,पर उसकी सम्मति मानना या न मानना लोगों की इच्छा पर निर्भर है ।

व्याकरण के संबंध में यह बात स्मरण रखने योग्य है कि  भाषा को नियमबद्ध करने के लिए व्याकरण नहीं बनाया जाता अपितु भाषा पहले बोली जाती है और उसी के आधार पर व्याकरण की उत्पत्ति होती है । यह बात ध्यान रखने योग्य है कि व्याकरण के निर्माण करने के बरसों पहले से भाषा बोली जाती थी और कविता रची जाती थी।

 

व्याकरण की सीमा –

                  व्याकरण की सीमा की भी एक सीमा है ।लोग बहुधा यह समझते हैं कि व्याकरण पढ़ कर वे शुद्ध बोलना और लिखना सीख लेते हैं ।ऐसा समझना पूर्ण रूप से ठीक नहीं ।यह सच है कि शब्दों की बनावट और उनके संबंध की खोज करने से भाषा के प्रयोग में शुद्धता आ जाती है परंतु यह बात गौण है ।

व्याकरण न पढ़कर भी लोग शुद्ध बोलना और शुद्ध लिखना सीख सकते हैं । हिंदी के कई अच्छे लेखक व्याकरण नहीं जानते अथवा व्याकरण जानकर भी लेख लिखने में उसका उपयोग नहीं करते । उन्होंने अपनी मातृभाषा को लिखना अभ्यास से सीखा है।

                    शिक्षित लोगों के बच्चे, बिना व्याकरण जानें शुद्ध भाषा सुनकर ही, शुद्ध बोलना सीख लेते हैं परन्तु  अशिक्षित लोगों के बच्चे व्याकरण पढ़ लेने पर भी प्रायः अशुद्ध ही बोलते हैं| यदि कोई छोटा बच्चा अशुद्ध वाक्य बोलता है तो माँ उसे व्याकरण के नियम नहीं समझती अपितु शुद्ध वाक्य बोलना सिखाती है  और बच्चा शुद्ध वाक्य बोलने लगता है |

                 व्याकरण पढ़ने से मनुष्य अच्छा लेखक या वक्ता नहीं बन सकता । विचारों की सत्यता अथवा असत्यता से भी व्याकरण का कोई संबंध नहीं है ।भाषा में व्याकरण की त्रुटियाँ ना होने पर भी विचारों की त्रुटियाँ हो सकती है और रोचकता का अभाव हो सकता है ।व्याकरण की सहायता से हम केवल शब्दों का शुद्ध प्रयोग जानकर अपने विचार स्पष्टता से प्रकट कर सकते हैं जिससे सुनने वाले को उनके समझने में कठिनाई अथवा संदेह न हो ।

 

व्याकरण के निर्माण और उसे पढ़ने से क्या लाभ हैं ?

अब यहाँ प्रश्न हो सकता है यदि भाषा व्याकरण पर आश्रित नहीं है और यदि व्याकरण की सहायता पाकर हमारी भाषा शुद्ध ,रोचक और प्रमाणिक नहीं हो सकती तो व्याकरण के निर्माण और उसे पढ़ने से क्या लाभ हैं ? कुछ लोग यह भी आक्षेप करते हैं कि व्याकरण शुष्क और निरुपयोगी विषय है।

इन प्रश्नों का उत्तर यह है कि  भाषा से व्याकरण का प्राय: वही संबंध है जो प्राकृतिक विकारों से विज्ञान का है । वैज्ञानिक ध्यानपूर्वक सृष्टि क्रम का निरीक्षण करते हैं और जिन नियमों का प्रभाव वे प्राकृतिक विकारों में देखते हैं उन्हें वे बहुदा सिद्धांतवत ग्रहण कर लेते हैं.

जिस प्रकार संसार में कोई भी प्राकृतिक घटना नियम विरूद्ध नहीं होती उसी प्रकार भाषा भी नियम विरुद्ध नहीं बोली जाती । वैयाकरण अर्थात् व्याकरण की रचना करने वाले इन्हीं नियमों का पता लगाकर सिद्धान्त स्थिर करते हैं ।

व्याकरण में भाषा की रचना ,शब्दों की व्युत्पत्ति और स्पष्टता पूर्वक विचार प्रकट करने के लिए ,उनका शुद्ध प्रयोग बताया जाता है ,जिनको जानकर हम अपनी भाषा के नियम जान सकते हैं और उन ग़लतियों का कारण समझ सकते हैं ,जो कभी कभी नियमों का ज्ञान न होने के कारण बोलने या लिखने में हो जाती है।

किसी भाषा का पूर्ण ज्ञान होने के लिए उसका व्याकरण जानना भी आवश्यक है। कभी कभी कठिन भाषा का अर्थ केवल व्याकरण की सहायता से ही जाना जा सकता है। इसके अतिरिक्त व्याकरण के ज्ञान से विदेशी भाषा सीखना भी आसान हो जाता है।

कोई कोई वैयाकरण अर्थात व्याकरण के रचनाकार व्याकरण को शास्त्र मानते हैं और कोई उसे कला समझते हैं ।शास्त्र से हमको किसी विषय का ज्ञान विधि पूर्वक होता है और कला से हम उस विषय का उपयोग सीखते हैं । व्याकरण को शास्त्र इसलिए कहते हैं कि उसके द्वारा हम भाषा के उन नियमों की खोज करते हैं जिन पर शब्दों का शुद्ध प्रयोग अवलंबित है और कला इसलिए कहते हैं कि हम शुद्ध भाषा बोलने के लिए उन नियमों का पालन करते हैं ।

व्याकरण का महत्व –

किसी भी भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिए उस भाषा के व्यकारन का ज्ञान आवश्यक होना चाहिए , क्योंकि इसके बिना हम उस भाषा का सही प्रयोग नहीं कर सकते ।

व्याकरण के द्वारा सभी ग़लतियों को आसानी से समझा और समझाया जा सकता है ।

भाषा में शीघ्र परिवर्तन को रोकने के लिए , व्याकरण का उस पर नियंत्रण  कर दिया गया है ।

व्याकरण के अंग –

व्याकरण के तीन अंग होते हैं –  1.वर्ण विचार          2.शब्द विचार        3.वाक्य विचार 

वर्ण विचार में वर्णों , शब्द विचार में शब्दों और वाक्य विचार  में वाक्यों के भेद आदि के बारे में जानकारी मिलती है ।

कोई भी व्यक्ति व्याकरण को जाने बिना किसी भी भाषा को  शुद्ध रूप में नहीं सीख सकता ।इसी वजह से भाषा का व्याकरण के साथ बहुत गहरा सम्बंध है ।व्याकरण भाषा के उच्चारण , अर्थ और प्रयोग के रूप को निश्चित करती है ।

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