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Story-Udaan उड़ान – एक सच्ची क़हानी

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अवि विनय

अवि विनय

   

udaan
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                                                       उड़ान – एक सच्ची क़हानी                                                                                                                                      लेखिका -मधु त्यागी 

You May Likeसपने भी सच होते हैं ………..                               

                                    पहाड़ो में , हरियाली के बीच पल रहा स्वछन्द प्रकृति का शरारती बालक था अवि । घर में चारों ओर कंगाली का बसेरा था पर  माँ का लाडला , बाबा की आँखों का तारा , मिनी और नील  के लिए इच्छाएँ पूरी करने वाला जादूगर था अवि । ना कल की चिंता , न आज की फिक्र , सारा दिन जंगलों में घूमना , पंछियो से बातें करना , जानवरों की आवाज़े निकलना , मर्ज़ी से स्कूल जाना और मर्ज़ी से स्कूल आना , यही थी उसकी दिनचर्या । सपनो की सुनहरी  दुनिया में जी रहा था अवि , वह नहीं जनता था कि उसके भाग्य में नियति ने कुछ और ही लिख रखा है ।

एक शाम जब खेलकूद कर घर पहुँचा तो देखा घर में बहुत सारे लोग एकत्रित हैं और रो रहे हैं ,भीड़ को चीरकर जब वो आँगन में पहुँचा  तो पाया कि सफ़ेद कपड़े में लिपटा कोई सोया हुआ है ।  उसे बहुत अजीब लगा कि इतनी भीड़ के बीच सफ़ेद कपड़ा ओढ़े कोई क्यों सो रहा है ? माँ भी एक कोने में सिर झुकाये बैठी आँसू बहा रही थी।

मन में संदेह को दबाये माँ के पास पहुँचा , देखते ही माँ ने अवि को गले से लगाया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी , अवि को समझते देर न लगी कि बाबा अब इस दुनिया में नहीं रहे ।

वह धीरे से उठा और बाबा के लिए अर्थी तैयार कर रहे लोगों का हाथ बटाने लगा ,मन में एक तूफ़ान सा उठ रहा था , हज़ारों सवाल हाथ फैलाये खड़े थे सामने ,पर सारे भावों को अपने में समेटे ,बाबा की अंतिम विदाई की तैयारी कर रहा था वह ।

अचानक उसने नज़रें उठाकर उस कोने की ओर देखा जहाँ माँ रो रही थी , कोना अब खाली था , माँ वह नहीं थी । अर्थी बनाने के लिए रस्सी कम पड़ रही थी ,अवि को याद आया बाबा ने  रस्सी का गुल्ला बना कर अंदर वाले कमरे की कील पर लटकाया  था ।

रस्सी के उस गुल्ले को लेने अंदर वाले कमरे में गया तो पाया कि रस्सी के उसी गुल्ले को पंखे से बांधकर माँ ने फाँसी लगा ली हैं । अवि के पैरों तले ज़मीन निकल गई , उसके पैर , ज़ुबान, उसका पूरा बदन जैसे जम गया था ।

                    उसकी आँखों में आँसू नहीं थे, रोने के बजाय वह सोच रहा था कि  अब उसे सिर्फ बाबा का ही  नहीं माँ का भी अंतिम संस्कार करना है ।  वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे ?उसके सामने कोई रास्ता नहीं था , चारों तरफ सिर्फ अन्धकार ही अंधकार था ।

अंतिम संस्कार के बाद घर लौट तो नील और मिनी को खेलते पाया , रात होने पर दोनों माँ ,बाबा के बारे में पूछने लगे ।

अवि ने दोनों को बहुत मुश्किल से समझाया कि माँ बाबा अब कभी वापिस नहीं आएँगे । रोज़ की तरह सुबह हुई , सूरज भी निकल ,सब कुछ पहले जैसा ही था पर आज माँ बाबा दोनों नहीं थे । ज़िन्दगी की एक नई शुरुवात करनी थी अवि को पर कैसे वह नहीं जनता था ।

अवि ने बाबा से सुना था कि दिल्ली में बहुत काम और पैसा है इसलिए अवि ने दिल्ली जाकर काम करने का निर्णय लिया ।

मिनी, नील और बाबा की दो बीघे ज़मीन अपने पड़ोसियों के भरोसे छोड़कर , अवि दिल्ली जैसे अनजाने शहर की ओर चल दिया । दिल्ली तो पहुँच गया अवि पर ना सिर छिपाने के लिए छत  थी और ना पेट भरने के लिए दो वक्त का खाना ।

सड़कों पर भटक रहा था नौकरी के लिए , ध्यान रख रहा था कि कोई भी दुकान ,घर या फैक्टरी  छूटे ना । शाम होते-होते उसकी हिम्मत जवाब दे चुकी थी , वह थक चुका था ,हार मान चुका था ।

थककर फुटपाथ पर बैठा ही था कि एक आवाज़ ने उसकी तन्द्रा भंग की ,”चाय पियोगे बाबू ” , अवि ने पीछे मुड़कर देखा ,” चाय नहीं, काम चाहिए चाचा  , काम मिलेगा  ।

” “मेरी छोटी सी चाय की दुकान में ,क्या काम करोगे तुम” । ” झाड़ू , पोछा , बर्तन जो कहोगे चाचा , कुछ भी करूँगा ,बस काम पर रख लो , तनख्वाह के बदले में सिर्फ खाना और रहना । ” “अच्छा ठीक है , अपना नाम बताओ । ” “बहुत बहुत शुक्रिया चाचा , मेरा नाम अवि है ।

“”अवि ने दुकान पर चाय बनाई, स्वयं भी पी और चाचा को भी पिलाई। नया दिन , नई सुबह और एक नई ज़िन्दगी की शुरुवात करनी थी अवि को । दुकान में झाड़ू ,पोछा लगाया ,अँगीठी सुलगाई और सारी मेज़ , कुर्सियाँ सलीके से लगाकर ,बर्तन साफ़ किये । चाचा बहुत खुश थे ,उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें भी कभी इतना आराम मिलेगा ज़िन्दगी में। 

                                       अचानक अवि की नज़र सामने पेंटर की दुकान पर गई , उसे भी पेंटिंग का बहुत शौक था पर कभी कुछ सीखने का मौका नहीं मिला था उसे , फिर भी अच्छे चित्र बना लेता था , कोई भी तस्वीर सामने हो, हु-बहु वैसी तस्वीर बना सकता था , कमी थी तो सिर्फ एक गुरु की । किसी ने सच ही कहा है जहाँ चाह , वहाँ राह , पेंटिंग सीखने की अवि की सुप्त इच्छा जागृत हो उठी ।

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वह चाचा के पास गया और उनसे प्रतिदिन एक घंटे का ब्रेक माँगा और चाचा ने ख़ुशी -ख़ुशी दे दिया , उस एक घंटे के ब्रेक में अवि पेंटर की दुकान के सामने खड़ा रहता और हसरत भरी निगाहों से ब्रश को ,कैनवास को, रंगों को ,कैनवास पर उभरती तस्वीरों को देखता रहता ।

जब जब पेंटर की नज़र अवि पर पड़ती ,वह उसे डाँटता ,वहाँ खड़े होने से मना करता , अवि ढीठ की तरह रोज़ वहाँ जाता , कभी कभी वह पेंटर उसे गालियाँ भी देता पर अवि सब कुछ अनसुना करके वहाँ जाता रहा ।

एक दिन पेंटर की दुकान बंद थी ,अवि बहुत उदास था फिर भी वह रोज़ की भांति वहाँ जाकर खड़ा  हो गया , समझ नहीं पा रहा  था कि दुकान क्यों बंद है ? तभी किसी के खाँसने और दर्द से करहाने की आवाज़ सुनाई दी , पास जाकर देखा तो पेंटर चारपाई से उठने की नाकाम कोशिश कर रहा था ।

अवि ने एक गिलास में पानी भरा और पेंटर को देते हुए कहा “तबियत ठीक नहीं है तो लेते रहिए “। पेंटर ने घूरकर अवि को देखा और कहा “तुम फिर आ गए , आज तो दुकान भी बंद है , इतनी डांट और इतना तिरस्कार करता हूँ और तुम फिर भी आ जाते हो , क्यों ? ” और मैं लेटा रहूँगा तो आज का काम कौन पूरा करेगा ? एक पोर्ट्रेट आज ही पूरी करके देनी है ।

“मैं पूरी कर देता हूँ , पोर्ट्रेट ” अवि ने सिर झुककर धीमी आवाज़ में कहा । “तुम पूरी करोगे , सिर्फ देखकर भी कोई पोर्ट्रेट बनाना सीख सकता है क्या , तुम अपने आप को समझते क्या हो ?” ” काका एक मौका तो दीजिये , मैं बना सकता हूँ पोर्ट्रेट ” ।

पेंटर ने अवि की ओर गुस्से से देखा , ” ठीक है ,पहला और आखिरी मौका दे रहा हूँ , अगर नहीं बना पाए तो फिर कभी मेरी दुकान के आस -पास भी नज़र नहीं आना, बोलो मंज़ूर है “

” हाँ, काका मुझे मंज़ूर है , शुक्रिया काका “। अवि ख़ुशी ख़ुशी कैनवास की ओर भागा , ब्रश उठाकर रंग में डुबोया , सामने राखी तस्वीर को देखकर पोर्ट्रेट  बनाने लगा ।  

अवि की कल्पना को जैसे पंख मिल गए थे आज , इस ब्रश को अलग अलग रंगों में डुबोकर अपनी , मिनी और नील की ज़िन्दगी में रंग भरना चाहता था वह । पोर्ट्रेट पूरी हुई , वास्तविक तस्वीर से भी खूबसूरत पोर्ट्रेट , काका को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये पोर्ट्रेट चाय की दुकान पर झाड़ू , पोंछा  लगाने वाले अवि ने बनाई है ।

काका स्वयं , चाचा की दुकान पर जाकर चाचा को बुलाकर लाये और उन्हें अवि की बनाई पोर्ट्रेट दिखाई , चाचा ने अवि के सिर पर हाथ रखकर हज़ारो आशीर्वाद दिए और काका से प्रार्थना की क़ि अवि को अपने पास काम पर रख लें । 

अवि ने अपने जीवन की उन्नति की सीढ़ी के पहले पाएदान पर कदम  रखा और आगे बढ़ गया।कुछ महीने पेंटर चाचा के साथ काम करने के बाद अवि ने क़ुतुब मीनार के पास बैनर और पोस्टर बनाने का काम शुरू कर दिया

। धीरे धीरे जीवन की गाड़ी सरकने लगी।समय की कमी के कारण अवि को चाचा का काम छोड़ना पड़ा।काम में सफलता और आमदनी में बढ़ोतरी के कारण, अवि के हौसले बुलंद हो गए और ज़्यादा मेहनत करके,ज़्यादा कमाने की इच्छा में हिलौरे लेने लगी।

इसी इच्छा के रहते उसने फ़ाईन आर्ट्स के दो -तीन कोर्से भी कर लिए, इन्हीं कोर्सेस के सहारे उसे गुड़गाँव के एक आर्ट्स स्कूल में छोटे बच्चों को ड्रॉइंग सीखने का काम भी मिल गया।हर महीने तनख़्वाह के पाँच हज़ार रुपये मिलने लगे।ये सिर्फ़ शुरूवात थी उसकी कामयाबी की।

आज अवि गुड़गाँव के एक जाने -माने स्कूल में आर्ट टीचर है, उसका वेतन पैंसठ हज़ार रुपये प्रतिमाह है।फ़ोटोग्राफ़ी का शौक़ भी था उसे इसलिए फ़ोटोग्राफ़ी भी सीखी और भविष्य में प्रोफेशनल फ़ोटोग्राफ़र बनाना चाहता है।

कहावत है ना जहां चाह वहाँ राह, फोटोशूट के प्राजेक्ट्स भी मिलने लगे हैं अवि को। अवि के सपनों को पंख मिल चुके हैं और अब ऊँची उड़ान भरने से, सपनों को हक़ीक़त में बदलने से उसे कोई नहीं रोक सकता।

यह एक सच्ची क़हानी है, जिस क़हानी को आप पढ़ रहे हैं,अवि उस क़हानी को ज़ी रहा है।जीवन बहुत अमूल्य और  खूबसूरत है,मुश्किलों के आगे घुटने टेककर हार ना मानें, अवि की तरह डटकर सामना करें और अपने सपनों को साकार करने के लिए मेहनत करें तो सभी के सपने हक़ीक़त बनकर सच के धरातल पर सामने ज़रूर आएँगे।

 

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