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Sapno ke se Din , Question/Answers (पाठ -सपनों के से दिन, प्रश्नोत्तर)

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सपनों के से दिन

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प्रश्न 1– कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती पाठ के किसी अंश से सिद्ध होता है?

उत्तर – ‘कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती’पाठ के इस अंश से सिद्ध होता है-

हमारे अधिक से अधिक साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। जब बहुत छोटे थे तो उनकी बोली कम समझ पाते। उनके कुछ शब्द सुनकर हमें हँसी आने लगती परंतु खेलते तो सभी एक दूसरे की बात खूब अच्छी तरह समझ लेते।

 

प्रश्न 2– पीटी साहब की ‘शाबाश’ फौज के तमगो सी क्यों लगती थी स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – पीटी साहब की ‘शाबाश’ फौज के तमगो सी इसलिए लगती थी क्योंकि पीटी साहब अत्यंत कठोर स्वभाव वाले थे,बात-बात में बच्चो को कड़ा दंड देते थे। प्रार्थना के समय ज़रा सा इधर-उधर करते ही पीटी साहब उस पर टूट पड़ते और खूब पिटाई करते थे। उनके स्वभाव के कारण सभी छात्र उनसे भयभीत रहते थे, वे बहुत अनुशासन प्रिय थे। स्काउटिंग का अभ्यास करते हुए बच्चे जब अपना काम गलती किए बिना पूरा करते तो पीटी साहब  कहते- ‘शाबाश’।

पीटी साहब से भयभीत रहने वाले बच्चों के लिए यह ‘शाबाश’ शब्द बड़ा ही उत्साहवर्धक था। उनकी यह ‘शाबाश’ बच्चों को फौज के तमगों को जीतने के समान लगती थी, उन्हें लगता था कि उन्होंने कोई बहुत बड़ा काम किया है।

 

प्रश्न 3– नई श्रेणी में जाने और नई कॉपियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बाल मन क्यों उदास हो उठता था ?

उत्तर – नई श्रेणी में जाने और नई कॉपियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बाल मन इसलिए उदास हो उठता था क्योंकि अगली कक्षा की कठिन पढ़ाई मन को भयभीत करती थी। लेखक का बाल मन उदास हो जाता था, वैसे भी पढ़ाई में लेखक की अधिक रुचि नहीं थी। नए अध्यापकों की अपेक्षा पर खरा न उतर पाने पर पिटाई का भय भी सताता रहता था।

 

प्रश्न4 – स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण आदमी फौजी जवान क्यों समझने लगता था?

उत्तर – स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण आदमी फौजी जवान इसलिए समझने लगता था क्योंकि परेड करते समय वह स्काउट की पूरी वर्दी पहने, गले में रंगीन रूमाल डाले और झंडियाँ हिलाते हुए परेड करता था, इस बीच भूषा में उसे फौजी जवान होने की अनुभूति होने लगती थी । 

जब पीटी साहब राइट टर्न, लेफ़्ट टर्न या अबाउट टर्न का आदेश देते तो लेखक अपने बूटों की एडियों पर दाएँ – बाएँ या एक कदम पीछे मुड़कर, बूटों की ठक-ठक की आवाज़ करते हुए अपने को महत्वपूर्ण आदमी फौजी जवान क्यों समझने लगता था।

 

प्रश्न 5– हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?

उत्तर – हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को इसलिए मुअत्तल कर दिया क्योंकि पीटी साहब कड़े स्वभाव के थे, वे अनुशासन प्रिय थे परंतु बच्चों के साथ कठोरता एवं बर्बरता का व्यवहार करते थे। काम न करने पर वे बच्चों को कठोर दंड भी देते थे।

एक बार हेडमास्टर साहब ने देखा कि पीटी मास्टर ने फारसी पढ़ाते हुए, शब्द रूप न सुना पाने के कारण, अत्यंत क्रूरतापूर्वक बच्चों को मुर्गा बना रखा रखा है तथा पीठ  ऊँची करने का आदेश भी दे रखा है। चौथी कक्षा के छात्रों को ऐसा दंड देना, हेड मास्टर साहब को अत्यंत यातनापूर्ण लगा और उन्होंने इसे तुरंत रोकने का आदेश देते हुए पीटी मास्टर प्रीतम चंद को मुअत्तल कर दिया।

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प्रश्न 6– लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह ना लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा।

उत्तर – लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह ना लगने पर भी उन्हें स्कूल जाना तब अच्छा लगने लगा जब पी टी मास्टर स्काउटिंग का अभ्यास करवाते थे और उन्हें पढ़ाई नहीं करनी पड़ती थी। लेखक व उनके साथियों को नीली -पीली झंडियाँ हाथ में पकड़कर ऊपर नीचे करना व हिलाना बहुत अच्छा लगता था।

धोबी से धुलवाई गई  वर्दी, पॉलिश किए जूते तथा जुराबों को पहन कर फौजी की तरह महत्वपूर्ण इंसान बनने की लालसा उनके भाव बदल देती थी और परेड करने पर पीटी मास्टर द्वारा दी गई ‘शाबाशी’ के कारण लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगने लगता था।

 

प्रश्न 7– लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या क्या योजनाएँ  बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिती में किस की भांति बहादुर बनने की कल्पना किया करता था?

उत्तर – लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए अनेक योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में ओमा की भाँति बहादुर बनने की कल्पना किया करता था। छुट्टियों के आरंभ के दो तीन -हफ्ते में लेखक खेलकूद और मौज मस्ती करते हुए अपना समय बिताता फिर नानी के घर चला जाता।

जब एक महीने की छुट्टियाँ बचती है तो लेखक अध्यापक द्वारा दिए गए दो सौ  सवालों को करने के बारे में हिसाब लगता  और सोचता कि एक  दिन में दस  सवाल हल करने पर बीस दिन में पूरे हो जाएँगे। एक दिन गिनती खेलकूद में दस दिन और बीत जाते तब पिटाई का डर बढ़ने लगता।

तब वह डर भगाने के लिए सोचता है कि एक दिन में पंद्रह सवाल भी हल किए जा सकते हैं पर सवाल हल ना होते और छुट्टियाँ समाप्त होने को आ जातीं तब वह मास्टरों की पिटाई को सस्ता सौदा समझकर ओमा की तरह बहादुरी से पीटना स्वीकार कर लेता।

 

प्रश्न 8–पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर –पाठ के आधार पर हम कह सकते हैं कि पीटी सर प्रीतम चंद बाहर से कठोर एवं अंदर से सरल हृदय व्यक्ति थे उनके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –

1.पीटी सर का स्वभाव इतना कठोर था कि कभी भी स्कूल में उन्हें हँसते मुस्कुराते नहीं देखा गया था वे ज़रा सी गलती के लिए कठोर दंड देते थे।

2.पीटी मास्टर अनुशासन प्रिय थे ,वे नहीं चाहते थे कि कोई बालक अनुशासनहीनता बरते।

3.पीटी साहब बाल मनोविज्ञान से अनभिज्ञ थे। वे पिटाई के बल पर सारी पढ़ाई करवा लेना चाहते थे।

4.पीटी मास्टर बहुत स्वाभिमानी थे। हेड मास्टर साहब द्वारा मुअत्तल किए जाने के बाद भी पीटी मास्टर के चेहरे पर शिकन नहीं आई थी।

 

प्रश्न 9– विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर –पाठ में बताया गया है कि पुराने समय में बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए कठोर पिटाई के रूप में शारीरिक यातना दी जाती थी। उन्हें थोड़ी-सी गलती पर पीटा जाता था और मुर्गा बना दिया जाता था।

वर्तमान काल में बच्चों को शारीरिक दंड देने पर पूर्णतया रोक है। मेरे विचार से यह पूर्णतया उपयुक्त है कि बच्चों को अनुशासन में लाने के लिए शारीरिक दंड नहीं, प्यार और अपनत्व पूर्ण व्यवहार की आवश्यकता होती है। बच्चों को स्नेह, पुरस्कार तथा प्रशंसा आदि के माध्यम से अनुशासित करना  बेहतर होता है।

 

प्रश्न 10– बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती है, विशेषकर स्कूली दिनों की। अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टी मीठी यादों को लिखिए।

उत्तर –बचपन की यादें व संस्कार हमेशा साथ रहते हैं। ये यादें समय समय पर मन को गुदगुदाती रहती है और फिर से बचपन में ले जाती है विशेष रूप से स्कूल के दिनों की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती है प्रत्येक व्यक्ति की निजी यादें होती है।(यहाँ छात्र अपने  स्कूली जीवन की कोई खट्टी-मीठी याद लिखेंगे)

 

प्रश्न 11–प्रायः अभिभावक बच्चों को खेलकूद में ज्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बर्बाद न करने की नसीहत देते हैं बताइए-

(क) खेल आपके लिए क्यों जरूरी है?

(ख) आप कौन से ऐसे नियम कायदों को अपनाएंगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?

उत्तर –(क) खेल हमारे लिए इसलिए आवश्यक है क्योंकि खेलों से शारीरिक और मानसिक विकास होता है। खेलों से शरीर स्वस्थ और मजबूत बनता है। खेल हमें मानवीय मूल्य अपनाने की सीख देते हुए त्याग, हार-जीत को समान समझने का भाव, पारस्परिक सहयोग, मैत्री आदि को मजबूत बनाते हैं। जो हमें एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करता है।

(ख) अभिभावक खेलकूद को बच्चों के लिए अच्छा नहीं समझते वे इसे पढ़ाई में बाधक मानते हुए समय बर्बाद करने का साधन मानते हैं। अभिभावकों को मेरे खेल पर आपत्ति न हो इसके लिए मैं निम्न तरीके अपनाऊँगी/अपनाऊँगा-

1.खेल कूद और पढ़ाई में संतुलन बनाऊँगा /बनाऊँगी।

2.पढ़ाई तथा गृह कार्य पूरा करने के बाद खेलकूद करूँगा /करूँगी।

3.स्कूल से अधिक कार्य मिलने पर मैं उस दिन नहीं खेलूँगा /खेलूँगी। इसकी भरपाई , मैं छुट्टी वाले दिन खेलकर कर लूँगा/ कर लूँगी।

4.अभिभावकों को खेलकूद की उपयोगिता एवं महत्व बताऊँगा /बताऊँगी।

 

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