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पाठ - हरिहरकाका

पाठ - हरिहरकाका

       

पाठ - हरिहरकाका
पाठ – हरिहरकाका

                            

                                       ( मुख्य बिंदु )

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कथावाचक और हरिहर काका के बीच मित्रता, आत्मीयता और लगाव का संबंध था। कथावाचक हरिहर काका का बहुत सम्मान करता था. इसके अनेक कारण थे-

1.कथावाचक और हरिहर काका का घर आस-पास था। पड़ोसी होने के नाते उनके बीच मधुर एवं आत्मीय संबंध थे।

2.हरिहर काका की कोई संतान नहीं थी। वे लेखक को बचपन से ही बहुत प्यार करते थे। बड़ा होते-होते यही दुलार दोस्ती में बदल गया।

3.दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति विश्वास था, हरिहर काका अपनी सारी बातें लेखक को बता दिया करते थे।

हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के लगने लगे क्योंकि-

4.दोनों ही स्वार्थी थे, उन्हें हरिहर काका से प्यार नहीं था बल्कि दोनों ही हरिहर काका की जमीन जायदाद चाहते थे।

5.हरिहर काका की जमीन पाने के लिए वे किसी भी हद तक गिर सकते थे। यहाँ तक कि हरिहर काका की जमीन हड़पने के लिए उनकी जान लेने की भी कोशिश की।

6.दोनों ही काका के हितैषी होने का दावा करते थे पर यह दिखावे के सिवा कुछ भी नहीं था काका दोनों की सच्चाई देख चुके थे।

ठाकुरबारी के प्रति गाँव वालों के मन में अपार श्रद्धा के जो भाव थे। उससे उनकी इस मनोवृत्ति का पता चलता है कि गाँव वाले धार्मिक और आस्तिक स्वभाव के थे, वे धर्म के प्रति निष्ठावान थे। उन्हें ठाकुरबाड़ी पर विश्वास था । ठाकुरबाड़ी के प्रति गाँव वालों की धार्मिक मनोवृत्ति के साथ साथ अंधविश्वासी मनोवृत्ति का भी पता चलता है। वे धर्मभीरु थे  और अपनी हर सफलता का श्रेय ठाकुरजी को देते थे।

हरिहर काका अनपढ़ होते हुए भी दुनिया की बेहतर समझ रखते थे , उन्हें जीवन का अनुभव था और इसी अनुभव के आधार पर वे दुनिया की बेहतर समझ रखते थे। चाहे वह पढ़े लिखे नहीं थे परंतु उन्हें इस बात का पूरा ज्ञान व समझ थी कि जब तक उनके पास जमीन जायदाद है तब तक सभी उनका सम्मान करेंगे।

अनपढ़ होते हुए भी अपने जीवन के अनुभव के आधार पर उन्होंने इस बात को जान लिया था कि जीते जी अपनी जायदाद किसी के नाम नहीं लिखनी चाहिए अन्यथा जीवन नरक बन जाता है इसलिए जीते जी अपनी जमीन किसी के नाम न लिखकर उन्होंने समझदारी दिखाई।

 हरिहर काका के मामले में गाँव वाले अलग-अलग वर्गों में बँट गए थे और भिन्न-भिन्न राय और सोच रखते थे। एक वर्ग की राय थी कि हरिहर काका को अपनी ज़मीन ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए, ऐसा धार्मिक कार्य करके काका सीधे स्वर्ग को जाएँगे। प्रगतिशील विचार वाले लोगों की राय थी कि हरिहर काका को अपनी ज़मीन भाइयों के नाम लिख देनी चाहिए क्योंकि ज़मीन पर परिवार वालों का ही हक बनता है।

किसी का कहना था कि काका को अपनी ज़मीन पर अपने नाम से एक स्कूल खुलवा देना चाहिए , इससे उनका नाम हमेशा रहेगा, गाँव में एक वर्ग एस भी था जिसका मानना था की काका को जीते जी अपनी ज़मीन किसी के भी नाम नहीं करनी चाहिए ।अगर उन्होंने अपनी ज़मीन भाइयों के नाम कर दी तो भई उन्हें पूछेंगे भी नहीं ,उन्हें दूध में से मक्खी की भाँति निकल फेंकेंगे और उनकी हालत रमेसर की विधवा जैसी हो जाएगी , वे दाने दाने के लिए मोहताज हो जाएँगे । गाँव में जितने मुँह, उतनी बातें हो रही थी।

अज्ञान की स्थिति में ही मनुष्य मृत्यु से डरता हैं। ज्ञान होने के बाद तो आदमी आवश्यकता पड़ने पर मृत्यु का वरण करने के लिए तैयार हो जाता है। लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि काका आज जिस भयावह स्थिति से गुजर रहे थे उस स्थिति में फ़ँसा हर आदमी यही सोचता है कि इस तरह घुट-घुटकर जीने से तो एक बार मरना ही अच्छा है। काका भली-भाँति जानते थे कि महंत या भाइयों के नाम ज़मीन कर देने से उनका जीवन वैसे भी नरक बन जाएगा।

अब उन्हें भाइयों व महंत दोनों के द्वारा ,जान से मारे जाने की धमकी की परवाह नहीं थी ,ना ही उन्हें मृत्यु का डर था अतः उन्होंने निश्चय किया कि वे अपनी जमीन किसी को भी नहीं देंगे, वे समझ गए थे कि अगर उन्होंने अपनी ज़मीन किसी के भी नाम कर दी तो उन्हें दर -दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी  और अब वे निडर होकर मृत्यु का वरण करने के लिए भी तैयार थे।

समाज में रिश्तों की विशेष अहमियत होती है। रिश्ते ही एक दूसरे को अदृश्य डोर से बाँधे रहते हैं। ये रिश्ते ही मनुष्य को मान-सम्मान दिलाने में सहायक होते हैं, रिश्तों के कारण ही व्यक्ति एक दूसरे के सुख-दुख में काम आते हैं। यदि रिश्ते ना हो तो समाज में एक तरह का जंगल राज और अव्यवस्था का वातावरण होगा।

वर्तमान समय में रिश्तों की अहमियत धीरे-धीरे कम होती जा रही है। रिश्तों पर स्वार्थ की भावना हावी होती जा रही है। व्यक्ति आत्म केन्द्रित हो गया है। भाईचारा,पारस्परिक सौहार्द, प्रेम किसी अन्य लोक की बातें बनकर रह गई हैं।

यदि हमारे आस-पास हरिहरकाका जैसा व्यक्ति होगा तो हम अपने व्यस्ततम समय में से कुछ समय निकालकर निम्नलिखित तरीकों से उसकी यथासंभव सहायता करेंगे-

1.हम उसके अकेलेपन को दूर करने की कोशिश करेंगे उसके पास बैठकर सुख-दुख की बातें करेंगे।

2.उसका विश्वास जीतने की कोशिश करेंगे ताकि वह अपने मन की बात कहकर बोझ मुक्त हो जाए।

3.उसकी खाने पीने संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करेंगे।

4.उसके घरवालों को समझाने का प्रयत्न करेंगे ताकि वे अपने कर्तव्य से विमुख न हो जाए।

यदि हरिहर काका के गाँव में मीडिया की पहुँच होती तो स्थिति एकदम विपरीत होती। हरिहर काका के अपहरण की बात अखबार और अन्य संचार माध्यमों की आवाज बन जाती। मीडिया उनकी दयनीय स्थिति को जनता तक पहुँचाता और सरकार का ध्यान आकृष्ट करता।

हरिहर काका की समस्या का हल निकल जाता और उन्हें न्याय मिल जाता। इसके साथ साथ ठाकुरबाड़ी के कपटी महंत का भी पर्दाफाश हो जाता। हरिहर काका भयमुक्त होकर स्वतंत्र जीवन जीते, उन्हें अपने भाइयो और ठाकुरबाड़ी के भय के साये में न जीना पड़ता और उनकी ऐसी दुर्गति न होती, ना ही वे गूंगेपन का शिकार होते।

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