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Dukh Ka Adhikar , Question & Answers (Prashnottar)

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पाठ - दुःख का अधिकार

पाठ - दुःख का अधिकार

   

पाठ - दुःख का अधिकार
पाठ – दुःख का अधिकार

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                                                            प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1– मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?

उत्तर –मनुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत महत्व है।मनुष्य की पहचान पोशाक से ही होती है। पोशाक मनुष्य के सामाजिक स्तर को दर्शाती है, उसे समाज में अधिकार दिलवाती है, उसका दर्जा निश्चित करती है।

कई बार पोशाक जीवन के बंद दरवाजे खोल देती है। पोशाक के द्वारा ही मनुष्य आपस में भेद-भाव करते हैं और खास परिस्थितियों में पोशाक ही हमें नीचे झुकने से भी रोकती है।

 

 

प्रश्न 2–पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है ?

उत्तर – जब हम समाज के गरीब लोगों के दुख का कारण जानने के लिए उनके समीप बैठना चाहते हैं, उनके दुख-दर्द में शामिल होना चाहते हैं तब हमारी पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन बन जाती है।हमारी अच्छी पोशाक हमें नीचे झुकने नहीं देती। यह पोशाक गरीब और अमीर के बीच दूरियां बढ़ाने का काम करती है।

अगर हम किसी गरीब के दुख को कम करके उसे दिलासा देना चाहते हैं तो यह पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन बन जाती है।

 

प्रश्न 3–लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?

उत्तर –लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि फुटपाथ पर उसके समीप बैठ सकने में लेखक की पोशाक रुकावट बन रही थी। बुढ़िया को फफक -फफक कर रोते देख लेखक बहुत दुखी था .वह उसके बारे में जानना चाहता था लेकिन अपनी अच्छी पोशाक के कारण वह ऐसा नहीं कर पाया।

 

प्रश्न 4–भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?

उत्तर –भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन पर सब्ज़ी-तरकारी बोकर, उसे बाजार में बेचकर अपने परिवार का निर्वाह करता था। कभी वह स्वयं बाज़ार चला जाता था ,कभी उसकी माँ फल और तरकारियों को बाजार में बेचने जाती थी।

 

प्रश्न 5–लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?

उत्तर –लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बढ़िया खरबूजे बेचने इसलिए चली गई क्योंकि उसके पास जो कुछ था,वह सब भगवान की मृत्यु के बाद दान दक्षिणा में खत्म हो चुका था। उसके घर में खाने के लिए कुछ नहीं बचा था, सब  कुछ बुढ़िया ने अपने पुत्र के क्रिया कर्म में लगा दिया था।

उसके पोता पोती भूखे थे और बहु बुखार से तप रही थी। इसी मजबूरी के कारण लड़के की मृत्यु के दूसरे दिन ही बुढ़िया को खरबूजे बेचने के लिए बाज़ार जाना पड़ा ।

 

प्रश्न 6– बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की सभ्रांत महिला की याद क्यों आई?

उत्तर –बुढिया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई क्योंकि लेखक ने अपने मन में सोचा कि अमीर और गरीब में जन्मजात अंतर होता है, दोनों का दुख अलग-अलग होता है। अमीर को दुख मनाने का अधिकार है गरीब को नहीं।

इस बुढ़िया का पुत्र मरा था और लोग इसकी मजबूरी और दुख को न समझकर तरह-तरह के ताने मार रहे थे और इसकी ओर  घृणा की दृष्टि से देख रहे थे। दूसरी ओर सभ्रांत महिला के जवान बेटे की मृत्यु के बाद शहर भर के लोग उसके पास शोक मनाने आ रहे थे और वह सभ्रांत महिला बेटे की मृत्यु दुःख के कारण ढ़ाई महीने तक पलंग से उठ नहीं सकी थी जबकि यह गरीब बुढ़िया अगले ही दिन खरबूजे बेचने बाजार आ गई थी और लोग बुढिया पर ताने कस रहे थे।

उन्हें बुढ़िया की मजबूरी और दुःख नही समझ पा रहे थे क्योंकि वह उस संभ्रांत महिला की भांति बीमार न पड़कर, अपना दुख भुला कर बाज़ार में खरबूजे बेचकर अपने परिवार के लिए भोजन का प्रबंध करने आई थी। दुःख का अधिकार अमीर-गरीब में भेद-भाव उत्पन्न करता है। थोड़ा सा दुख जहाँ अमीरों को हिला देता है वहाँ बड़े से बड़ा दुख भी गरीब को सहज बने रहने पर मजबूर कर देता है। अमीर और गरीब के दुख के इसी अंतर के कारण लेखक को सभ्रांत महिला की याद आई।

 

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए-

प्रश्न 1–बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर –बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। एक आदमी घृणा से थूकते हुए कह रहा था कि यह बुढ़िया कितनी बेशर्म है इसके पुत्र को मरे एक दिन भी नहीं हुआ और चली आई दुकान सजाने।

एक ने अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कहा अरे जैसी नीयत होती है, अल्लाह भी वैसी की बरकत देता है।

एक अन्य सज्जन ने दियासलाई की तीली से कान खुजलाते हुए कह rhe थे कि ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म -ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।

परचून की दुकान पर बैठे लालाजी ने कहा अरे भाई इनके लिए मरे जीए का कोई मतलब नहीं कम से कम दूसरे के दीन-ईमान का खयाल तो कर लेती, रास्ते चलते लोगों को क्या पता कि इसके घर मैं सूतक है बिलकुल ही अंधेरगर्दी हो गई।

 

प्रश्न 2–पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?

उत्तर –पास पड़ोस की दुकानों पर पूछने से पर लेखक को पता चला कि बुढ़िया का तेईस बरस का जवान लड़का था, जिसकी साँप के डासने से मृत्यु हो गई। लोगों ने बताया कि बुढ़िया का बेटा भगवाना सुबह-सुबह बेलों में से पके ख़रबूज़े तोड़ने गया था तभी गीली मेड़ की तरावट में आराम कर रहे साँप पर उसका पैर पड़ गया, साँप ने उसे डस लिया और उसकी मृत्यु हो गई।

 

प्रश्न 3–लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या क्या उपाय किए ?

उत्तर – लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने अनेक उपाय किए। बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई, झाड़ना-फूँकना हुआ, नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान दक्षिणा चाहिए थी, घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान दक्षिणा में चला गया, परन्तु बुढ़िया अपने बेटे भगवान को नहीं बचा पाई। साँप के डसने से भगवान का सारा बदल काला पड़ गया और वह मर गया।  

 

प्रश्न 4–लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा कैसे लगाया?

उत्तर –लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा अपने पड़ोस की एक संभ्रांत महिला को याद करके लगाया। पास-पड़ोस से लेखक को जब यह पता चला कि साँप के काटने से बुढिया के तेईस बरस के जवान बेटे की मृत्यु हो गई है और घर में कमाने वाला कोई नहीं है इसलिए यह खरबूजे बेचने बाज़ार आई है।

लेखक इसी सोच में डूबे हुए, अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला के बारे में सोचकर बुढ़िया के दुख का अंदाजा लगा रहे थे ।कुछ समय पहले उस अमीर महिला के पुत्र की मृत्यु हो गई थी और वह उच्च वर्गीय महिला ढ़ाई महीने तक पलंग से भी ना उतरी थी।

वह पंद्रह-पंद्रह मिनट के बाद बेहोश हो जाती थी, उसकी आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं लेते थे। दो डॉक्टर हमेशा उसके सिरहाने बैठे रहते थे। लेखक जानता था कि बुढ़िया अपने मन में दुख दबाए हुए हैं अपनी बेबसी के अनुसार अपना दुख दर्शा रही है।

 

प्रश्न 5– इस पाठ का शीर्षक दुख का अधिकार कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ अत्यंत सटीक व सार्थक है। पूरी कहानी इसी शीर्षक के चारों ओर घूमती है। कहानी को पढ़कर ऐसा लगता है कि अमीर वर्ग को तो अपना दुख व्यक्त करने का अधिकार है, उनके दुख में सभी लोग अपना दुख व्यक्त करते हैं परंतु गरीब आदमी को दुखी देखकर सभी उससे घृणा करते हैं, उसका मजाक उड़ाते हैं।

गरीबों को अपने दुख को व्यक्त करने का अधिकार भी नहीं है। इस दृष्टि से देखें तो इस कहानी का शीर्षक ,दुख का अधिकार, अपनी सार्थकता सिद्ध करता हैं।

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(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1–जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देती उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।

उत्तर –प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि खास पोशाक पहनकर व्यक्ति आसमानी बातें सोचने लगता है। वह न तो जमीन से जुड़ा रहता है वो ना ही ऊपर उठता है, उसकी स्थिति त्रिशंकु जैसी हो जाती है ,वह चाहते हुए भी किसी के दुख दर्द में शामिल नहीं हो पाता।

इन पंक्तियों में लेखक पोशाक के विषय में वर्णन करते हुए कहता है कि जिस प्रकार पतंग को डोर के अनुसार नियंत्रित किया जाता है और  जब डोर, पतंग से अलग हो जाती है तब पतंग हवा के साथ बहती हुई उड़ती है, हवा के कारण अचानक ही धरती पर नहीं आ गिरती ।

किसी ना किसी वस्तु में अटक कर रह जाती हैं वैसी ही स्थिति हमारी पोशाक के कारण उत्पन्न होती है। खास पोशाक व्यक्ति को अपनी अमीरी का आभास करवाती है, वह गरीबों को अपने बराबर स्थान नहीं देना चाहता। चाहते हुए भी साँप उनके दुख में शामिल नहीं हो पाता।

 

प्रश्न 2–इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई,धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।

उत्तर –प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि गरीब व्यक्ति जिसके घर में खाने के लिए एक भी दाना न हो ,उसके लिए रोटी ही सबसे पहली प्राथमिकता होती है। रोटी मिलने पर ही वह और किसी चीज़ के बारे में सोच सकता है।

समाज में रहते हुए व्यक्ति को नियमों कानूनों व परंपराओं का पालन करना पड़ता है क्योंकि समाज में अपनी दैनिक आवश्यकताओं से अधिक महत्व ,जीवन मूल्यों को दिया जाता है।

बेटे की मृत्यु के बाद खरबूजे बेचने आई बुढ़िया को, लोग तरह तरह के ताने देते हैं यह नहीं सोचते कि वह गरीब बढ़िया रोटी की चिंता में दुख मनाने के अधिकार से भी वंचित है।

 

प्रश्न 3–शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।

उत्तर –प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि हमारे समाज में दुख मनाने का अधिकार भी केवल धनी वर्ग को ही है। यह सच है कि दुख सभी को होता है, मातम सभी मनाना चाहते हैं लेकिन गरीब व्यक्ति के पास न तो दुख मनाने की सुविधा है और ना ही समय है।

धनी वर्ग दुःख का दिखावा अवश्य करता है परंतु गरीबों के पास दुख मनाने के लिए कोई सहूलियत नहीं होती, उन्हें परिस्थितियों के सामने घुटने टेकने पड़ते हैं और दुखी होते हुए भी काम करना पड़ता है। गरीब वर्ग रोटी की चिंता में दुख मनाने के अधिकार से वंचित रह जाता है।

 

 

    

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