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Pad-Meera ,Explanation, Vyakhya

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पद -मीरा

पद -मीरा

पद -मीरा
पद -मीरा

 

                                                                        व्याख्या

हरि आप हरो  जन री भीर।

द्रोपदी री लाज राखी, आप बढायो चीर।

भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर।

बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुंजर पीर।

दासी मीरा लाल गिरधर हरो म्हारी भीर।।

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शब्दार्थ  

हरि – श्री कृष्ण  

हरो – दूर कीजिए
जन – भक्त

भीर – दुःख

राखी – रख लिया

लाज – इज़्ज़त

चीर – साड़ी , कपडा

भगत – भक्त

बूढ़तो – डूबते हुए
नरहरि – नरसिंह अवतार
सरीर – शरीर
गजराज – हाथियों का राजा ऐरावत
कुञ्जर – हाथी
काटी – मारना
लाल गिरधर – श्री कृष्ण
म्हारी – हमारी

व्याख्या – मीराबाई अपने आराध्य श्री कृष्ण से विनती और अराधना करते हुए कहती हैं कि हे ईश्वर आप ही अपने भक्तों की पीड़ा और कष्ट दूर कर सकते हैं। वे श्रीकृष्ण की क्षमताओं का स्मरण और उनका गुणगान करती हुई कहती हैं कि आपने भरी सभा में द्रौपदी को अपमानित होने से बचाया और उसकी लाज रख रखी जब दुशासन ने बीच सभा में द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया तो उस समय आपने उनके वस्त्र बढ़ाकर उनकी मान मर्यादा की रक्षा की। अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की रक्षा हेतु आपने नरसिंह  का अवतार लिया और हिरण्यकश्यप को मारकर प्रह्लाद को कष्ट मुक्त किया।

आपने डूबते हुए गजराज को बचाने के लिए उस मगरमच्छ को मारा जो हाथी का पाँव पकड़कर गहरे जल में डुबोने का प्रयास कर रहा था । मीराबाई कहती हैं कि हे प्रभु मैं आप की दासी हूँ , हे गिरधर आप मेरी भी पीड़ा दूर करने की कृपा करें।

 

स्याम म्हाने चाकर रखो जी,

गिरधारी लाला महाने चाकर राखोजी।

चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ, नित उठ दरसण ।

बिन्दरावन री कुंज गली में, गोविंद लीला गास्यूँ।

चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।

भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।

श्याम-श्री कृष्ण

महाने -मुझे

जाकर-नौकर

गिरधारीलाल आ-श्री कृष्ण

रहस्यूँ – रहकर

नित – हमेशा

पास्यूँ – पाऊँगी

बिन्दरावन – वृंदावन

री – की 
दरसण – दर्शन

भाव भगती- भावना युक्त भक्ति
जागीरी – ज़मीन,जायदाद,धन -दौलत

 तीनूं – तीनों

बाताँ- बातें

सरसी- पूरी हो गई

कुंज – संकरी

 

 व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा कृष्ण के प्रति दास्य भाव प्रकट करते हुए, चाकरी करने की इच्छा ज़ाहिर करते हुए कहती हैं, हे कृष्ण आप मुझे अपनी सेविका बना लो। हे गिरधारी लाल आप मुझे अपने यहाँ सेविका के रूप में रख लो। आपकी दासी बनकर मैं आपके लिए बाग बगीचे लगाऊँगी और जब आप सुबह बाग में भ्रमण करने आओगे तो आपके दर्शन कर पाऊँगी।

वृंदावन की संकरी गलियों में आपकी लीलाओं का गुण गान करूँगी। इस तरह सेवा करते हुए मुझे आपके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होगा, नाम स्मरण रूपी जेबखर्च प्राप्त होगा और  भाव भक्ति की जागीर प्राप्त होगी। इस प्रकार अपनी मन चाही तीनों अनमोल वस्तुओं को पाकर मेरा जीवन सफल हो जाएगा।

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मोर मुगट पीतांबर सौंहे , गल वैजयन्ती माला।

बिन्दरावन में धेनु चरवे, मोहन मुरली वाला।

ऊँचा ऊँचा महल बणाव बिच बिच राखूँ बारी।

साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साड़ी।

आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रे तीरां।

मीराँ र प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधिरां।।

 

मोर मुगट – मोर के पंखों से बना मुकुट

पीताम्बर – पीले वस्त्र

सौहे– सुंदर लग रहा है

गल– गले में

वैजन्ती माला– जंगली फूलों की माला
धेनु – गाय

चरावे – चरता है

बिच बिच – बीच -बीच में
बारी – बगीचा

साँवरिया – श्री कृष्ण
पहर – पहन कर

कुसुम्बी – लाल रंग  

दीज्यो – दीजिए  

जमनाजी – यमुना नदी
तीरा – किनारा

नागर– चतुर

हिवड़ो – हृदय में

घणो – अत्यधिक
अधीरा – व्याकुल होना

व्याख्या – इन पंक्तियों में मीराबाई श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण के माथे पर मोर के पंखों का मुकुट शोभायमान है,पीले वस्त्र उनके शरीर की शोभा बढ़ा रहे हैं, गले में वैजयंती फूलों की माला सुशोभित हैं, श्रीकृष्ण मुरली बजाते हुए वृंदावन में गाएँ चराते हैं।

वृंदावन में मीरा अपने  प्रभु श्रीकृष्ण के लिए ऊँचे ऊँचे महल बनाना चाहती हैं और महल में बीच-बीच में खिड़कियाँ रखवाना चाहती हैं ताकि वे हर पल श्रीकृष्ण के दर्शन कर पाएँ। मीराबाई लाल रंग की साड़ी पहनकर अपने आराध्य श्री कृष्ण के दर्शन पाना चाहती हैं। वे निवेदन करती हैं कि हे प्रभु आप आधी रात के समय यमुना नदी के किनारे, दर्शन देने अवश्य आना। आपके दर्शन पाने के लिए मेरा हृदय बहुत व्याकुल हैं इसलिए शीघ्र आकर मुझे दर्शन देने की कृपा करें।

 

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 पहले पद में मीरा अपने आराध्य श्री कृष्ण को कर्तव्य बोध तथा दया का स्मरण कराती हुई कहती है कि जिस प्रकार आप ने विभिन्न अवसरों पर अपने भक्तों की पीड़ा को दूर किया और उन पर दया दिखाई उसी प्रकार मीरा भी अपना उद्धार करने व पीड़ा हरने की प्रार्थना करते हुए कहती हैं जैसे आप ने भरी सभा में द्रौपदी का चीर बढ़ाकर उसे अपमानित होने से बचाया, उसकी रक्षा की, भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का रूप धारण किया, डूबते हुए गजराज को मगरमच्छ के मुख से बचाकर उसके कष्टों को दूर किया, उसी प्रकार मेरे भी सारे दुखों को हर ले अर्थात सभी दुखों को समाप्त कर दें। 

 

         दूसरे पद मीराबाई श्याम की चाकरी इसलिए करना चाहती है ताकि उन्हें इसी चाकरी के बहाने दिन-रात श्रीकृष्ण की सेवा का अवसर मिल सके। वे प्रतिक्षण कृष्ण के समीप रहना चाहती हैं। उन्हें पाने के लिए अत्यंत व्याकुल हैं और उनकी सेविका बनकर हर समय उनके दर्शन पाना चाहती है। श्रीकृष्ण की चाकरी करते हुए नाम स्मरण, भक्ति-भाव और दर्शन का सुख प्राप्त कर धन्य होना चाहती हैं। अपने हृदय की अधीरता मिटाकर सांसारिक बंधनों से मुक्त होना चाहती है।

  मीराबाई श्रीकृष्ण को पाने के लिए निम्नलिखित कार्य करने के लिए तैयार है-

वे सेविका बनकर उनकी सेवा में हर समय तत्पर रहना चाहती हैं।उनके लिए बाग लगाना चाहती है ताकि श्रीकृष्ण बाग में भ्रमण कर सके और वे उनके दर्शन प्राप्त कर सके।वृंदावन की कुंज गलियों में श्रीकृष्ण की लीलाओं का गुणगान करना चाहती हैं।श्रीकृष्ण के लिए ऊँचे-ऊँचे महल बनाकर उनमें खिड़कियाँ बनाना चाहती ह हैं ताकि वे श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त कर सके।आधी रात को जमुना के किनारे कुसुंबी रंग की साड़ी पहनकर दर्शन करना चाहती हैं।

मीरा की, अपनी आराध्य के प्रति दास्य भक्ति प्रकट हुई है। वे अपने प्रभु के दर्शन एवं सामीप्य पाने के साथ ही अपनी इच्छा पूरी करना चाहती हैं । वे चाकरी के माध्यम से श्रीकृष्ण के दर्शन पाना चाहती हैं , सुमिरन के माध्यम से जेब खर्च और भाव भक्ति रूपी जागीर प्राप्त करना चाहती और अपना जीवन सरल बनाना चाहती है।

 

                  

 

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