Pathit Padyansh “Atmtran”Class 10 Hindi Chapter 9 With Answers
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आत्मत्राण
आत्मत्राण
पठित काव्यांश
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विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।।
प्रश्न 1- आत्मत्राण कविता किसके द्वारा लिखी गयी है ?
(क) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(ख) कोई नही
(ग) कैफ़ी आज्मी
(घ) कोई नहीं
प्रश्न 2- कविता में करुणामय शब्द किसके लिए आया है ?
(क) लेखक के लिए
(ख) कवि के लिए
(ग) ईश्वर के लिए
(घ) मानव के लिए
प्रश्न 3- किसी सहायक के न मिलने पर कवि चाहते हैं –
(क) कि ईश्वर उनकी मदद करें
(ख) कि कोई आकर सहायक बनें
(ग) कि उनका बल-पौरुष हिले
(घ) कि कोई भी मदद न करें
प्रश्न 4- कवि क्या प्रार्थना नहीं कर रहा है ?
(क) कृपा करने की
(ख) सुख देने की है
(ग) विपदाओं से बचाने की
(घ) तीनों सही है
प्रश्न 5- तो भी मन में ना मानूँ क्षय – कभी किस स्थिति में भी क्षय नहीं मानना चाहता ?
(क) दुख पड़ने पर भी
(ख) कार्य व्यापार में हानि होने पर भी
(ग) धोखा मिलने पर भी
(घ) (ख) और (ग) सही हैं
समाधान
उत्तर 1 –(क) रवीन्द्र नाथ टेगोर द्वारा
उत्तर 2–(ग) ईश्वर के लिए
उत्तर 3 –(ग) ईश्वर के लिए
उत्तर 4 –(घ) तीनों सही है
उत्तर 5 –(घ) (ख) और (ग) सही हैं
You May Like –MCQ “Atmtran”Class 10 Hindi Chapter 9 MCQ Question With Answers
मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणायम)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय-
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।
प्रश्न 1- ‘मेरा त्राण करो’ का आशय स्पष्ट करें –
(क) आश्रय देना
(ख) बचाव करना
(ग) उद्धार करना
(घ) तीनो सही है
प्रश्न 2- ‘अनामय’ का अर्थ अस्पष्ट करें –
(क) स्वस्थ शरीर
(ख) हिम्मत
(ग) अन्ना
(घ) ईश्वर
प्रश्न 3- कवि किसका मुख पहचानना चाहता है?
(क) मित्र का
(ख) ईश्वर का
(ग) माता-पिता का
(घ) सुख-दुख का
प्रश्न 4- “तुम पर करु नही कुछ संशय” से क्या तात्पर्य है ?
(क) किसी भी स्थिति मे कवि ईश्वर पर शक नही करना चाहता
(ख) कवि ईश्वर पर शक करता है
(ग) कवि ईश्वर को शक्ति प्रदान करने को कहता है
(घ) कवि फूंक फूंक कर कदम रखना चाहता है
प्रश्न 5- किन परिस्थितियों में कभी ईश्वर पर संशय नहीं करना चाहता ?
(क) जब संसार विरोध में खड़ा हो जाए
(ख) जब विश्व में कोई साथी न बचे
(ग) दुख के समय संसार साथ न दे
(घ) सभी ठीक है
समाधान
उत्तर 1 –(ख) बचाव करना
उत्तर 2–(क) स्वस्थ शरीर
उत्तर 3 –(ख) ईश्वर का
उत्तर 4 –(क) किसी भी स्थिति मे कवि ईश्वर पर शक नही करना चाहता
उत्तर 5 –(घ) सभी ठीक है
कवि परिचय
कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जन्म – 6 मई 1861 ( बंगाल )
मृत्यु – 1941
आत्मत्राण पाठ प्रवेश
यदि कोई तैरना सीखना चाहता है तो कोई उसको पानी में उतरने में मदद तो कर सकता है ,उसको डूबने का डर ना रहे इसलिए उसके पास भी बना रह सकता है परन्तु जब तैरना सिखने वाला पानी में हाथ – पैर चलायेगा तभी वो तैराक बनेगा। परीक्षा जाते समय व्यक्ति बड़ों के आशीर्वाद की कामना करता ही है ,और बड़े आशीर्वाद देते भी हैं लेकिन परीक्षा तो उसे खुद ही देनी होती है।
इसी तरह जब दो पहलवान कुश्ती लड़ते हैं तब उनका उत्साह तो सभी लोग बढ़ाते हैं जिससे उनका मनोबल अर्थात हौंसला बढ़ता है। मगर कुश्ती तो उन्हें खुद ही लड़नी पड़ती है।
प्रस्तुत पाठ में कविगुरु मानते हैं कि प्रभु में सबकुछ संभव करने की ताकत है फिर भी वह बिलकुल नहीं चाहते की वही सब कुछ करे। कवि कामना करते हैं कि किसी भी आपदा या विपदा में ,किसी भी परेशानी का हल निकालने का संघर्ष वो स्वयं करे ,प्रभु को कुछ भी न करना पड़े। फिर आखिर वो अपने प्रभु से चाहते क्या हैं।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर की प्रस्तुत कविता का बंगला से हिंदी अनुवाद श्रद्धेय आचार्य हरी प्रसाद द्विवेदी ने किया है। द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में बहुत बड़ा योगदान है। यह अनुवाद बताता है कि अनुवाद कैसे मूल रचना की ‘आत्मा ‘ को ज्यों का त्यों बनाये रखने में सक्ष्म है।
आत्मत्राण पाठ सार
इस कविता के कवि ‘कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ‘ हैं। इस कविता का बंगला से हिंदी रूपांतरण आचार्य हरी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। इस कविता में कविगुरु ईश्वर से अपने दुःख दर्द कम न करने को कह रहे है। वे उनसे दुःख दर्दों को झेलने की शक्ति मांग रहे हैं। कविगुरु ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी भी परिस्थिति में मेरे मन में आपके प्रति संदेह न हो।
कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु ! दुःख और कष्टों से मुझे बचा कर रखो में तुमसे ऐसी कोई भी प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं तो सिर्फ तुमसे ये चाहता हूँ कि तुम मुझे उन दुःख तकलीफों को झेलने की शक्ति दो। उन कष्टों के समय में मैं कभी ना डरूँ और उनका सामना करूँ। मुझमें इतना आत्मविश्वास भर दो कि मैं हर कष्ट पर जीत हासिल कर सकूँ। मेरे कष्टों के भार को भले ही कम ना करो और न ही मुझे तसल्ली दो।
आपसे केवल इतनी प्रार्थना है की मेरे अंदर निर्भयता भरपूर डाल दें ताकि मैं सारी परेशानियों का डट कर सामना कर सकूँ। सुख के दिनों में भी मैं आपको एक क्षण के लिए भी ना भूलूँ अर्थात हर क्षण आपको याद करता रहूं। दुःख से भरी रात में भी अगर कोई मेरी मदद न करे तो भी मेरे प्रभु मेरे मन में आपके प्रति कोई संदेह न हो इतनी मुझे शक्ति देना।
कवि की यह प्रार्थना अन्य प्रार्थनाओं से पूरी तरह अलग है। यह प्रार्थना गीत अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है क्योंकि अन्य गीतों में ईश्वर से दुःख-दर्द ,कष्टों को दूर करने और सुख-शांति की कामना की प्रार्थना की जाती है।
जनसामान्य प्रार्थना गीतों में अपने संकट कष्ट दुख मुसीबत आदि को दूर करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है लेकिन कवि ने इनसे अलग अपनी प्रार्थना में ईश्वर से साहस, बल-पौरुष माँगा है ताकि वह स्वयं अपने बल पर दुखों का सामना कर सके और उन पर विजय पा सकें ।
इस गीत में ईश्वर से दुःख-दर्द और कष्टों को दूर करने के लिए नहीं बल्कि उन दुःख-दर्द और कष्टों को सहने की और झेलने की शक्ति देने के लिए कहा है। कवि सुख में भी प्रभु को ना भूलने तथा उन पर सदैव विश्वास बनाए रखने की प्रार्थना करता है इससे कवि की प्रार्थना में दैन्य भाव न होकर विनय भाव है जिससे यह प्रार्थना गीत अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगता है।
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