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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 तीसरी क़सम के शिल्पकार

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लेखक - प्रह्लाद अग्रवाल

लेखक - प्रह्लाद अग्रवाल

लेखक - प्रह्लाद अग्रवाल
                                                           

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(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए

प्रश्न 1 – ‘तीसरी कसम’ फिल्म को सेल्यूलाइड पर लिखी कविता क्यों कहा है ?
उत्तर – ‘तीसरी कसम’ फिल्म को सेल्यूलाइड पर लिखी कविता इसलिए कहा है क्योंकि सेल्यूलाइड  का अर्थ होता है कि कहानी को हु-ब-हु कैमरे की सहायता से परदे पर उतरना और  इस फिल्म में हिंदी साहित्य की एक दिल को छू लेने वाली कहानी को बड़ी ही सफलता के साथ कैमरे की रील में उतार कर चलचित्र द्वारा प्रस्तुत किया गया था।

यह फ़िल्म लोक तत्वों को समेटे संवेदना और भावना प्रधान फ़िल्म थी । इस पूरी फिल्म में  भावुकता, संवेदना और मार्मिकता भरी हुई थी इसीलिए कहा जाता है कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म नहीं बल्कि कवि शैलेंद्र द्वारा कैमरे की रील पर लिखी गई एक कविता थी।

 

प्रश्न 2 – ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे ?
उत्तर – ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार इसलिए नहीं मिल रहे थे क्योंकि इस इस कहानी का निर्माण शैलेन्द्र ने पैसा व यश कमाने के लिए ना करके आत्म संतुष्टि के लिए किया था इसमें मूल साहित्य से ना तो कोई छेड़-छाड़ की गई थी और ना ही लोगों को लुभाने के लिए लटके-झटकों का प्रयोग किया गया था।

इसमें करुणा का भाव इस तरह भरा गया था कि भावनात्मक शोषण न हो। इस फ़िल्म की कहानी में जो भावनाएँ थी उनको समझना मुनाफ़ा कमाने वालों के लिए आसान नहीं था। इस फ़िल्म में जिस करुणा के साथ भावनाओं को दर्शाया गया था उनको किसी तराज़ू में नहीं तौला जा सकता था इसीलिए ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार नहीं मिल रहे थे।

 

प्रश्न 3 – शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है ?
उत्तर – शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य है कि दर्शकों की रुचि को ध्यान में रखें पर रुचि की आड़ में उथले और सस्ते मनोरंजन को उनके सामने न परोसे। कलाकार को चाहिए कि वह दर्शकों की रुचि का परिष्कार करे और उसे उन्नत करे।

शैलेंद्र के अनुसार दर्शकों की पसंद को ध्यान में रखकर किसी भी फ़िल्म निर्माता को कोई भी बिना मतलब की चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। उनका मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर बनाने की कोशिश भी करे।

 

प्रश्न 4 – फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफ़ाई क्यों कर दिया जाता है ?
उत्तर – फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफ़ाई इसलिए कर दिया जाता है ताकि दर्शक ऐसे दृश्यों को देखने के लिए सिनेमा हॉल की ओर खिंचे चले आए और फ़िल्म निर्माता अधिकाधिक लाभ कमा सके।

अगर फ़िल्मों में कहीं त्रासद अर्थात दुखद स्थितियों का वर्णन किया जाता है तो उसको बहुत अधिक बड़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाता है। दुःख को इतना अधिक भयानक रूप से प्रस्तुत किया जाता है कि वो लोगो को भावनात्मक रूप से कमजोर कर सके और लोग ज़्यादा-से-ज़्यादा फ़िल्मों की ओर आकर्षित हो सकें।

 

प्रश्न 5 – ‘शैलेंद ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’ – इस कथन से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – शैलेंद ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’ – इस कथन से हम यह समझते हैं कि एक निर्माता के रूप में स्वयं राजकपूर भी तीसरी कसम के समान ही भावपूर्ण और साहित्य फ़िल्म का निर्माण करना चाहते थे शैलेंद्र की इस फ़िल्म को देखकर ऐसा लगता था मानो राजकपूर जो चाहते थे वही शैलेंद्र ने कर दिया है। राजकपूर को एशिया के सबसे बड़े शोमैन का ख़िताब हासिल था। वे अपनी आँखों से अभिनय करने और भावनाओं को प्रस्तुत करने में माहिर थे और शैलेंद्र एक उमदा गीतकार थे जो भावनाओं को कविता का रूप देने में माहिर थे।

शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को अपनी कविता और फिल्म की कहानी के रूप में शब्द दे दिए थे और राजकपूर ने भी उनको बड़ी ही खूबी से निभाया।

 

प्रश्न 6 – लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – शोमैन का अर्थ होता है -अत्यंत प्रसिद्ध और आकर्षक व्यक्तित्व, जो अपने अभिनय से लोगो को आकर्षित कर सके, अपने निभाए गए किरदार से जो सबको मनोरंजित करे और अंत तक लोगो को अपने अभिनय के साथ जोड़ कर रखे। ये सारी खूबियाँ राजकपूर में कूट-कूट कर भरी थी इसीलिए लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है।

 

प्रश्न 7 – ‘श्री 420’ के गीत – ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की ?
उत्तर – ‘श्री 420’ के गीत – ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति इसलिए की क्योंकि उनका मानना था कि दर्शकों को चार दिशाएँ तो समझ आ सकती है पर उन्हें दस दिशाओं का ज्ञान नहीं हैं। सामान्यतः दिशाएँ चार ही होती हैं और  संगीतकार जयकिशन भी चार दिशाओं का ही प्रयोग करना चाहते थे।

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(ख) निम्नलिखित प्रशनो के उत्तर (50-60 शब्दों में) दीजिए
प्रश्न 1 – राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों के आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई ?
उत्तर – राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों के आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म इसलिए बनाई क्योंकि शैलेन्द्र फ़िल्म का निर्माण धन-यश के लिए नहीं बल्कि आत्म संतुष्टि के लिए कर रहे थे। राजकपूर जानते थे कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म शैलेंद्र की पहली फ़िल्म है इसलिए उन्होंने एक अच्छे और सच्चे मित्र के नाते शैलेंद्र को फ़िल्म की असफ़लता के खतरों से भी परिचित करवाया।

परन्तु शैलेंद्र तो भावनाओं में बहने वाला कवि था, जिसे न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था, न ही नाम कमाने की इच्छा। उन्हें तो केवल आत्मसंतुष्टि की कामना थी। ‘तीसरी कसम’ की मुख्य कहानी में जो भावनाएँ थी वे शैलेंद्र के दिल को छू गईं थी और वे इस फ़िल्म को बनाने का मन बना चुके थे।

 

प्रश्न 2 – ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व जैसे हीरामन की आत्मा में उतर गया था। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में अभिनेता राजकपूर ने हीरामन नामक गाड़ीवान की भूमिका निभाई जो भुच्च देहाती है। जिस समय राजकपूर यह भूमिका निभा रहे थे उस समय तक वे ख्याति प्राप्त अभिनेता के रूप में जाने पहचाने जाते थे, उन्हें एशिया के सबसे बड़े शोमैन का खिताब मिल चुका था।

लेकिन ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर ने अपने उस महान व्यक्तित्व को पूरी तरह से हीरामन बना दिया था।

पूरी फ़िल्म में राजकपूर कहीं पर भी हीरामन का अभिनय करते हुए नहीं दिखे, बल्कि वे तो खुद ही हीरामन बन गए थे। ऐसा हीरामन जो  हीराबाई की फ़ेनू-गिलासी बोली पर प्यार दिखता है, उसकी ‘मनुआ-नटुआ’ जैसी भोली सूरत पर अपना सब कुछ हारने को तैयार है और हीराबाई के थोड़ा-सा  भी गुस्सा हो जाने पर अपने आप को ही दोषी ठहरता हुआ सच्चा हीरामन बन जाता है। इस तरह उनका महिमामय व्यक्तित्व हीरामन की आत्मा में उतर गया था।

 

  प्रश्न 3-लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि तीसरी कसम ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है ?
उत्तर लेखक ने ऐसा इसलिए लिखा है कि तीसरी कसम ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है क्योंकि प्रायः देखा जाता है कि फ़िल्म निर्माता मूल कहानी के साथ इतनी छेड़छाड़ और काट – छाँट करते हैं तथा इतने मसाले और लटके-झटके शामिल करते हैं कि मूल कहानी कहीं खो-सी जाती है तथा उसका स्तर गिर जाता है।तीसरी कसम’ फ़िल्म फ़णीश्वरनाथ रेणु की पुस्तक ‘मारे गए गुलफ़ाम’ पर आधारित है और शैलेंद्र ने इस साहित्य के सभी पात्रों, भावनाओं, घटनाओं को हु-ब-हु दर्शाया है।

कहानी का एक छोटे-से-छोटा भाग, उसकी छोटी-से-छोटी बारीकियाँ फ़िल्म में पूरी तरह से दिखाई गई हैं । राजकपूर जानते थे कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म शैलेंद्र की पहली फ़िल्म है और यह एक भावनात्मक फ़िल्म है इसलिए उन्होंने एक अच्छे और सच्चे मित्र के नाते शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से भी परिचित करवाया।

परन्तु शैलेंद्र तो भावनाओं में बहने वाला व्यक्ति था, जिसको न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था और न ही नाम कमाने की इच्छा। उसे तो केवल अपने आप से संतोष की कामना थी। इस फ़िल्म की कहानी में जो भावनाएँ थीं उनको समझना किसी मुनाफ़ा  कमाने वालों के लिए आसान नहीं था।

इस फ़िल्म में जिस करुणा के साथ भावनाओं को दर्शाया गया था उनको किसी तराज़ू में नहीं तौला जा सकता था। शैलेंद्र ने मूल कथा को यथा रूप में प्रस्तुत किया था। इन सभी कारणों की वजह से लेखक ने लिखा है कि तीसरी कसम ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है।

 

प्रश्न 4 – शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषताएँ हैं। अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – शैलेंद ने जो भी गीत लिखे वे सभी बहुत पसंद किए जाते रहे हैं । शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढ़ग या दिखावे को नहीं अपनाया। वे अपने गीतों में भावनाओं को अधिक महत्त्व देने वाले थे न कि अपने गीतों को कठिन बनाने वाले। ‘मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रुसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’ -यह गीत शैलेंद्र ही लिख सकते थे, क्योंकि इसमें सच्ची भावना झलक रही है।

उनके गीत नदी की तरह शांत तो लगते थे परन्तु उनका अर्थ समुद्र की तरह गहरा होता था। उनका मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर भी बनाने की कोशिश करे।

 

प्रश्न 5 – फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ?
उत्तर – फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र में अनेक विशेषताएँ थीं। शैलेन्द्र गीतकार होने के साथ-साथ कवि हृदय भी रखते थे जिससे उनके गीतों में भावप्रवणता होती थी।‘ उनके गीतों में संवेदना तो होती थी पर वे दुरूह नहीं होते थे । उनके गीतों में लोक जीवन तत्व मौजूद था जिससे उनके गीतों को अधिकांश लोग पसंद करते थे। इसके अलावा वे अपने गीत केवल अभिजात्य वर्ग के लिए ही नहीं लिखते थे बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए लिखते थे। उनके गीतों में बसी करुणा में भी प्रेरणा होती थी जो जनसामान्य को उत्साहित करती थी।

शैलेन्द्र का मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर भी बनाने की कोशिश करे।  शैलेंद ने जो भी गीत लिखे वे सभी बहुत पसंद किए जाते रहे है। शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढ़ग या दिखावे को नहीं अपनाया।

 

प्रश्न 6 – शैलेन्द्र के निजी जीवन की छाप उनकी फिल्म में झलकती है-कैसे ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – शैलेन्द्र के निजी जीवन की छाप उनकी फिल्म में झलकती है। शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढ़ग या दिखावे को नहीं अपनाया। शैलेन्द्र अपने जीवन में गंभीर और शांत व्यक्तित्व वाले थे ,वे अपने श्रोताओं की रुचि को ध्यान में रखकर गीत नहीं लिखते थे , वे श्रोताओं की रुचि का परिष्कार करने के पक्षधर थे ।उन्हें धन और यश की लिप्सा नहीं थी बल्कि आत्म संतुष्टि की चाहत थी उनके जीवन की यही छाप उनके द्वारा बनाई गई फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में भी झलकती है उन्होंने व्यावसायिकता से दूर रहकर यह फ़िल्म बनाई थी ।

वे चाहते थे कि दर्शकों की पसंद को ध्यान में रख कर किसी भी फ़िल्म निर्माता को कोई भी बिना मतलब की चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। इसी विशेषता को उन्होंने अपनी जिंदगी में भी अपनाया था और अपनी फ़िल्म में भी इसी विशेषता को साबित किया था।

 

प्रश्न 7 – लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहा तक सहमत हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –  ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, लेखक के इस कथन से हम पूर्णतः सहमत हैं । शैलेंद्र ने   धन -लिप्सा से दूर रहकर यह फ़िल्म बनाई थी। इस फ़िल्म में आत्मसंतुष्टि की अभिलाषा थी। शैलेंद्र ने ऐसी फ़िल्म बनाई थी जिसे सिर्फ़ एक सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था क्योंकि इतनी भावुकता केवल एक कवि के हृदय में ही हो सकती है।यह फिल्म कला से परिपूर्ण थी जिसके लिए इस फिल्म की बहुत तारीफ़ हुई थी।

इस फिल्म की कहानी में जो भावनाएँ थी उनको समझना किसी मुनाफ़ा कमाने वालों के लिए आसान नहीं था। फ़िल्म में जिस करुणा के साथ भावनाओं को दर्शाया गया था उनको किसी तराज़ू में नहीं तौला जा सकता था। शैलेंद्र के द्वारा लिखे गीतों में भी सच्ची भावना झलकती है। लेखक का यह कथन पूर्णतः सत्य है कि तीसरी कसम फ़िल्म कोई सच्चा कवि हृदय ही बना सकता था।   

 

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए

– ……वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार सम्पति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि जब राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र के नाते शैलेंद्र को फ़िल्म की असफ़लता के खतरों से भी परिचित करवाया। तो शैलेन्द्र ने उनकी बात नहीं मानी क्योंकि शैलेन्द्र एक भावनात्मक कवि थे , जिनको न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था और  न ही नाम कमाने की इच्छा। उन्हें तो केवल अपने आत्मसंतोष की कामना थी।

 

2 – उनका दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रूचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि प्रायः देखा जाता है कि अपने गानों को लोकप्रिय बनाने और व्यवसायिकता से प्रभावित होने के कारण गीतकार श्रोताओं के सामने ऐसे गीत प्रस्तुत परोसते हैं जिनमें उथलापन होता है इससे दर्शक और श्रोता की रुचि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शैलेंद्र दर्शकों की रुचि की आड़ में उथलापन परोसने से बचते थे। वे चाहते थे कि दर्शकों की पसंद को ध्यान में रखकर किसी भी फ़िल्म निर्माता को कोई भी बिना मतलब की चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। उनका मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर भी बनाने की कोशिश करे।

 

3 – व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संकेत देती है।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि दुख हमेशा इंसान को पराजित ही नहीं करते करता अपितु दुख हमें सुख पाने के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा भी देता है। शैलेन्द्र के गीतों में सिर्फ दुःख-दर्द नहीं होता था, उन दुखों से निपटने या उनका सामना करने का इशारा भी होता था और वो सारी क्रिया-प्रणाली भी मौजूद रहती थी जिसका सहारा लेकर कोई भी व्यक्ति अपनी मंज़िल तक पहुँच सकता है। उनका मानना था कि दुःख कभी भी इंसान को हरा नहीं सकता बल्कि हमेशा आगे बढ़ने का इशारा देता है।

 

4 – दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने का गणित जानने वाले की समझ से परे थी।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि तीसरी कसम फ़िल्म का निर्माण धन या यश कमाने के उद्देश्य से नहीं किया गया था इसे व्यावसायिकता से अलग रखा गया था। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की कहानी में जो भावनाएँ थी उनको समझना किसी मुनाफ़ा कमाने वालों के लिए आसान नहीं था। इस फ़िल्म में जिस करुणा के साथ भावनाओं को दर्शाया गया था उनको किसी तराज़ू में नहीं तोला जा सकता था।

 

5 – उनके गीत भाव-प्रणव थे-दुरूह नहीं।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि शैलेंद ने जो भी गीत लिखे, वे सभी बहुत पसंद किए जाते रहे है। उनके गीतों के भाव-प्रवणता, संवेदना को महसूस कर समझा जा सकता है। शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढंग या दिखावे को नहीं अपनाया। वे अपने गीतों में भावनाओं को अधिक महत्त्व देने वाले थे ।

‘मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रुसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’ -यह गीत शैलेंद्र ही लिख सकते थे, क्योंकि इसमें सच्ची भावना झलक रही है। उनके गीत नदी की तरह शांत तो लगते थे परन्तु उनका अर्थ समुद्र की तरह गहरा होता था। उनके गीत सरल सहज और आम आदमी की समझ में आने वाले थे जो दुरुहता से कोसों दूर होते हैं।

 

 

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