Story – Acceptance, क़हानी – एक्सेपटेंस
1 min read
Story - Acceptance

Acceptance एक सच्ची क़हानी …..
लेखिका – मधु त्यागी
You May Like –सपने भी सच होते हैं ………..
आज मैं आपको अपनी जिंदगी की कहानी सुना रही हूँ, सच कहूँ तो क़हानी नहीं है ये हक़ीक़त है, जिसे मैंने सच के धरातल पर जीया है। एक सिलसिला है घटनाओं का, ऐसी घटनाओं का जिन्हें भूला नहीं जा सकता। मेरी शादी को आज 27 साल हो गए पर ये घटनाएँ मेरी यादों में आज भी ज्यों की त्यों ताज़ा हैं। यूँ तो Acceptance बहुत छोटा-सा शब्द है पर इसका सही अर्थ और मूल्य समझ आ जाए तो इसके बड़प्पन का अहसास खुदबख़ुद हो जाता है। इसकी महिमा ये है कि इसका अर्थ, किसी के समझाने पर भी समझ नहीं आता, इसकी गहराई तभी मापी जा सकती जब इसकी गहराई में खुद उतरा जाए। मैंने बहुत सहजता से इसे अपनाया,अपने जीवन में उतारा और यह कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा की मेरी शादी की मज़बूत इमारत इसी Acceptance की नींव पर खड़ी है या यूँ कहिए की सफल, खुशहाल शादी की ट्रेन का पहला स्टेशन भी Acceptance ही था और जिस पटरी पर आज भी ये ट्रेन उतनी ही शिद्दत से चल रही है वह भी Acceptance ही है।
आज मैं मिलवाऊँगी आपको अपने श्याम से, आज वाले श्याम से नहीं, 27 साल पहले वाले श्याम से , उस श्याम से जो मेरी ज़िंदगी में कस्तूरी की तरह अनजाने, अनचाहे, अचानक ही आ गए। मुझे तो मौक़ा ही नहीं मिला कि मैं उस कस्तूरी को ढूँढने के लिए जगह- जगह भटकूँ । अपना परिचय तो देना मैं भूल ही गई। मैं चंचल – चुलबुली, नटखट,बिंदास अपने नाम को सार्थक करती चंचल,एक अच्छी टेनिस प्लेयर और बैस्ट एन सी सी कैडेट। बहती हुई नदी की तरह स्वतंत्र, स्वच्छंद चंचल, कभी ठीक से यह भी नही सोचा था कि ज़िंदगी से क्या चाहिए मुझे, मेरे सपने क्या है? ज़िंदगी जहाँ, जैसे बहा कर ले जा रही थी , मैं उसी दिशा में बेख़ौफ़, बिना कुछ सोचे-समझे बहती जा रही थी। हालाँकि घर में अक्सर एक ही ज़िक्र और एक ही शोर सुनती थी, मम्मी दिन में एक बार कह ही देती थीं कि अब शादी की उम्र हो रही है पर मैंने कभी उनकी इस बात को seriously नहीं लिया, हमेशा एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती या कभी हँसकर टाल देती। लेकिन अचानक एक दिन मम्मी ने कहा- एक रिश्ता आया है तुम्हारे लिए , उन्हें घर पर तो बुला नहीं सकते क्योंकि घर में कुछ पाठ है , भंडारा है ।वह उसमें बिज़ी थीं और उस दिन मेरा बैंक का exam भी था। सोनीपत में मेरी मासी रहती थी तो लड़के को देखने के लिए मुझे सोनीपत जाना था।
You May Like –विडीओ – क़हानी ‘पतंग’
मम्मी कहने लगीं कि हम तो जा नहीं सकते हैं और भाई बहुत छोटे हैं इसलिए तुम्हें अकेले सोनीपत जाना होगा। हम यहाँ सबसे कह देंगे कि तुम बैंक का पेपर देने गई हो। तुम जाओ और लड़का देखकर आओ, ठीक लगेगा तो उसके बाद फिर हम देख लेंगे। सब कुछ अलग-सा, अजीब -सा था, सोचा ही नहीं था कि ज़िंदगी में कभी कुछ ऐसा भी होगा, जैसा कि हो रहा था। एक आम लड़की की तरह मैंने भी वही सब सोचा था, चाहा था जो अक्सर फ़िल्मों में देखती थी कि एक सपनों का राजकुमार सफ़ेद घोड़े पर बैठकर आएगा और मुझे अपने सपनों में, अपने महल में,अपनी ज़िंदगी में, मेरी मनचाही जगह देगा। पर मैं अकेली बस में सफ़र कर रही थी, असमंजस में थी कि लड़के को देखने ज़ा रही हूँ या खुद को दिखाने ज़ा रही हूँ। सोचकर बहुत अजीब लग रहा था।
मासी के घर पहुँची, शाम को कुछ मेहमान आए, मैं आज तक नहीं समझ पाई कि वे मुझे देखने आए थे या मैं रोहतक से सोनीपत उन्हें देखने गई थी या खुद को दिखाने गई थी। वह असमंजस तो कभी ख़त्म नहीं हुआ पर आज वही श्याम मेरे जीवनसाथी हैं, मेरी ज़िंदगी का हिस्सा हैं । हमने अलग से अकेले में बात की, बात करने में मुझे बिल्कुल नोरमल लगा। श्याम ने जब मुझसे पूछा कि तुम्हें कुछ पूछना है तो मैंने बहुत सहजता से कह दिया कि हाँ, मुझे तो कुछ पता ही नहीं आपके बारे में । मम्मी ने बोला और मैं यहाँ आ गई, मुझे जानना है कि तुम क्या जॉब करते हो, क्या एजुकेशन है? पंद्रह -बीस मिनट तक हमने बात की ,उन्होंने अपनी लाइफ के बारे में, परिवार के बारे में बहुत कुछ बताया। सब कुछ बहुत नोरमल लग रहा था। जाते-जाते उन्होंने बोला- सी यू नेक्स्ट टाइम। उनके जाने के बाद मासी ने पूछा, ‘कैसा लगा लड़का?’ तो मैंने कहा – बात करने में अच्छा था। तो उन्होंने पूछा तुम्हें क्या लगता है कि वो यस करेंगे ? मैंने सबको बताया कि जाते-जाते उन्होंने बोला सी यू नेक्स्ट टाइम तो इसका मतलब तो यस ही हुआ। मन में अजीब-सी घबराहट थी, न मम्मी ने देखा है ,न डैडी ने ,घर के किसी भी सदस्य ने नहीं देखा । वापिस घर पहुँची तो सब ने पूछा, ‘पेपर कैसा हुआ?’ असमंजस और नाराज़गी से मैंने बोला ठीक हो गया। उस समय घर पर स्वामीजी आए हुए थे, कहने लगे पास हो जाओगी बेटा। मैं मन ही मन मुस्कुराई, क्या बात है स्वामी जी ने तो ज़िंदगी की परीक्षा में एकदम पास करवा दिया। दो दिन के बाद लड़के वालों का मैसेज आया कि हम लोग रोहतक आ रहे हैं। हमारे घर में काम चल रहा था, मिस्त्री लगे हुए थे। मैंने मम्मी से कहा मम्मी वो लड़का कोई गुड लुकिंग नहीं है और आपने कहा था कि अभी तो पहली जगह बात हो रही है, तो कम से कम दो- चार ऑप्शन्स तो मिलने चाहिए, मेरी पूरी ज़िंदगी का सवाल है और आप लोगों ने भी नहीं देखा है, ऐसा थोड़ी ना होता है। मम्मी-पापा खुश थे, मुस्कुराकर मम्मी ने कहा, मैं मना नहीं कर सकती। तुम्हारे नाना जी -नानी जी करवा रहे हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है? कुछ टाइम नहीं दिया, कोई ऑप्शन नहीं दिया, ऐसे कैसे हो सकता है ? शादी कोई गुड्डे – गुड़िया का खेल तो नही है जो इतनी जल्दी बिना सोचे -समझे सारे निर्णय ले लिए जाएँ। अगले ही दिन मामा, मासी सब लोग आ गए। रात को 2:00 बजे तक मामा, मासी सबने मिलकर पूरे घर की सफाई की क्योंकि मिस्त्री लगे हुए थे ,सब मिट्टी-मिट्टी हो रहा था। टैंट वाले को बोल दिया गया, अगले ही दिन आँगन में टैंट भी लग गया। इतनी जल्दी-जल्दी सब कुछ होता जा रहा था, मुझे लगा मेरा घर, मेरे मम्मी -पापा, मेरे भाई मुझसे छूट रहे हैं, ज़िंदगी एक नई करवट लेने के लिए तैयार खड़ी है, सोच-सोचकर रोना आ रहा था, मेरे साथ हो क्या रहा है यह सब?
अगले दिन सुबह 10:00 बजे सोनीपत से उन्हें आना था। सुबह-सुबह याद आया कि पहनने के लिए तो ढंग के कपड़े ही नहीं हैं मेरे पास। मैंने अपनी फ्रेंड के यहाँ से उसका एक सूट लिया और तैयार हुई। सब आ चुके थे और देखने के बाद फिर अचानक कहने लगे कि हम तो रिंग सेरेमनी भी करना चाहते हैं। हमारे घर में गोल्ड की रिंग भी नही थी, जल्दी -जल्दी सोने की चेन मँगवाई गई क्योंकि अंगूठी के लिए तो साइज़ की ज़रूरत थी, सब कुछ इतनी जल्दी और इतना अलग हो रहा था कि मुझे तो सोचने का, संभलने का भी मौक़ा नही मिला। होश तब आया जब उनकी तरफ़ से रिंग सेरेमनी हुई और हमारी तरफ़ से चेन सेरेमनी हुई, देखते ही देखते कुछ ही सेकंड में सगाई भी हो गई। उसके बाद जब मुझसे बात करने के लिए कहा तो मैं बहुत नाराज़ थी, ऐसे थोड़ी ना होता है। फ्रेंड के सूट में मेरी सगाई हो गई। मेरे भी कुछ सपने थे,कुछ इच्छाएँ थी अपनी सगाई को लेकर और आजकल देखो तो सगाई का फंक्शन भी कितना बड़ा होता है। उस दिन मेरे पापा-मम्मी ने,मेरे भाइयों ने,सब ने लड़के को पहली बार देखा था। बात देखने से शुरू होकर सगाई तक पहुँच चुकी थी। मैंने अपने भाइयों से पूछा कि लड़का कैसा है, कुछ अजीब-सा है न। भाइयों को तो चिढ़ाने के लिए, मज़े लेने के लिए और मुझे तंग करने के लिए एक मुद्दा मिल चुका था। फिर सारे कहने लगे कि परिवार बहुत बड़ा है, गाँव के हैं लेकिन फिर भी सभी खुश थे और मै मन ही मन सोच रही थी कि कैसे एडजस्ट कर पाऊँगी, एडजस्ट कर भी पाऊँगी या नहीं। नहीं कर पाई तो क्या होगा ? इस सबके लिए तैयार भी नही थी, सोचा ही नहीं था कि इस तरह अचानक सब कुछ हो जाएगा।
कुछ दिन के बाद श्याम का एक मैसेज आया कि मिलना चाहते हैं, श्याम का बर्थडे था उस दिन। मैंने मम्मी से पूछा, मम्मी मिलने के लिए कह रहे है, क्या करना है? मम्मी ने कहा, हाँ-हाँ जाओ मिलो, तुम्हें वैसे ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा है, थोड़ा मिलोगी, बात करोगी, उसके बारे में, उसके परिवार के बारे में जनोगी तो तुम्हारे विचार भी बदलेंगे, ठीक लगने लगेगा। हिम्मत करके मम्मी -पापा से कहा कि सगाई तक तो ठीक है, सब कुछ आप लोगों ने अपनी मर्ज़ी से जल्दी-जल्दी कर दिया पर अब मै शादी जल्दी नहीं करना चाहती, मैं शादी के लिए तैयार नहीं हूँ अभी और मम्मी -पापा पापा ने मेरी बात मानते हुए प्रोमिस किया कि शादी एक साल बाद नवम्बर में होगी। उन लोगों का भी मकान बनना था तो ये तय हुआ कि शादी एक साल बाद नवम्बर में ही होगी ।
अब मेरे पास, हम दोनों के पास पूरा एक साल था, एक दूसरे को समझने -समझाने के लिए । घर पर फ़ोन नहीं था,मै नौकरी करती थी तो कभी ऑफिस में श्याम का फ़ोन आ जाता था, कभी हम पब्लिक टेलिफ़ोन बूथ से बात करते थे। इस तरह यह तय हो गया कि एक सप्ताह में एक बार फ़ोन, 15 दिन में एक लैटर लिखा करेंगे और एक महीने में एक मीटिंग ।इस तरह एक दूसरे को समझना बहुत आसान हो गया ।महीने में एक बार हम स्टेशन पर ही थोड़ी देर के लिए मिलते थे। ज़िंदगी का एक नया अध्याय शुरू हो चुका था, अचानक से हुआ ये सब जो मुझे शुरू में अच्छा नहीं लगा था, अब हमारी बढ़ती मुलाक़ातों के साथ अच्छा लगने लगा था।
हमारी मुलाक़ातों का यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा। नवंबर में हमारी सगाई हुई, उसके बाद जनवरी में जब मेरा जन्मदिन था तब मेरी ससुराल से कुछ लोग घर आए और उसके बाद हम थोड़ी देर घूमने के लिए पार्क गए तो वहाँ श्याम ने बातों-बातों में बताया कि मुझसे मिलने के बाद उनमें, उनकी सोच में बहुत बदलाव आया है । बात करते-करते उन्हें शायद गाली देकर बात करने की आदत थी जो मुझसे मिलने के बाद उन्होंने छोड़ दी थी। उन्होंने बताया कि पहले वह सोनीपत से दिल्ली कम्यूट करते थे तो ताश खेलते हुए जाते थे लेकिन मुझसे मिलने के बाद, अब रामायण का पाठ करने वालों के साथ बैठते हैं , वहाँ पर सुंदरकांड का पाठ और कीर्तन वगैरह होता है।
इस बार श्याम से मिलने के बाद पहली बार मेरे दिल और दिमाग़ ने कहा कि यही है मेरे सपनों का राजकुमार जिसमें वो सब गुण हैं जो एक अच्छा जीवन बिताने के लिए जीवन साथी में होने चाहिए। यही है वह जिसके साथ मै शादी के बंधन में बंधकर भी पूरी आज़ादी से ज़िंदगी ज़ी पाऊँगी। इस घटना के बाद मैं और मेरी सोच, शादी को लेकर पोज़िटिव हुई। फिर मैंने एक लैटर लिखा और श्याम को बताया कि सगाई तो हो गई थी पर मैं अभी तक इतनी जल्दी और अचानक से हुए इस रिश्ते को मानने के लिए, शादी के लिए तैयार नहीं थी। पर आज आपसे मिलने के बाद पहली बार महसूस हो रहा है कि आप मेरे लिए बिलकुल सही जीवनसाथी हैं। जोड़ियाँ ऊपर वाला ही बनाता है और ऊपर से ही बनकर आती हैजोड़ियाँ , अभी तक मैं इस बात को नहीं मानती थी पर आज इस बात को पूरी तरह से मान लिया है। उस दिन पहली बार जब मासी के यहाँ आपको देखा था, आपसे मिली, बात की , तब नहीं सोचा था कि आप वही हैं जिसके साथ मुझे जीवन जीना है। आप सब रोहतक आए, सगाई भी हो गई तब भी दिल ने नहीं माना कि आप ही मेरे लिए सही जीवनसाथी हैं ,शायद इसलिए कि सब कुछ बहुत जल्दी और अचानक हो गया था, मै तो तैयार ही नहीं थी उस सबके लिए जो अचानक हो चुका था। हाँ आज दिल से आवाज़ आ रही है कि आप वही हैं, आप ही हैं वह जिसे ईश्वर ने मेरे लिए भेजा है।
मैंने आगरा से ग्रेजुएशन की थी और कुछ दिन बाद मुझे एमकॉम की डिग्री लेनी थी। डिग्री लेने के लिए आगरा जाना था। उसी समय श्याम अपने किसी दोस्त की शादी में रोहतक आए हुए थे और उन्होंने हमारे यहाँ नाइट स्टे किया था तब मम्मी ने श्याम से कहा कि चंचल को डिग्री लेने आगरा जाना है, हममें से कोई ज़ा नहीं पाएगा। अभी तक यह हमारी ज़िम्मेदारी थी अब तुम्हारी भी है, हम चाहते हैं कि तुम जाओ इसके साथ। श्याम को लगा कि मेरे ऊपर इतना विश्वास, इतनी बड़ी बात है ,शादी से पहले पेरेंट्स खुद कह रहे है कि आप जाओ आगरा इसके साथ। दो दिन बाद सुबह चार 4:30 बजे की ट्रेन थी, मम्मी ने मुझे स्टेशन पर छोड़ा, मैं रोहतक से दिल्ली पहुँची ,6:30 बजे श्याम दिल्ली स्टेशन पर मुझे मिले और फिर वहाँ से हम लोग इकट्ठे आगरा गए। डिग्री ली, ताजमहल देखा और पूरा दिन हमने एक साथ बिताया। श्याम बार-बार कह रहे थे कि ये बहुत बड़ी बात है कि तुम्हारे पेरेंट्स ने हम दोनों पर विश्वास किया और इस तरह शादी से पहले हमें अकेले भेज दिया, पेरेंट्स तो अलाउड ही नहीं करते हैं। मुझ पर इतना विश्वास किया कि शादी से पहले, तुम्हें मेरे साथ इस तरह भेज दिया। बातों ही बातों में दिन कब बीत गया पता ही नहीं चला, शाम को फिर 6 बजे की ट्रेन ली और फिर वहाँ से नौ बजे दिल्ली पहुँचे, दिल्ली से ये सोनीपत चले गए और मैं इनके साथ बिताए पूरे एक दिन की यादें अपने साथ समेटे, रोहतक आ गई।जब हर तरफ से पॉज़िटिव हो रहा हो और सब लोग एक अच्छी सोच रख कर चले तो भगवान जी आगे अच्छा ही करते हैं। मम्मी तो वैसे ही खुश थी क्योंकि मम्मी को कान्हा से बहुत प्यार है और उनके दामाद का नाम भी श्याम है तो वह तो बस सभी से ये कहती रहतीं थीं कि मेरा तो श्याम आ गया है घर में, अब मुझे किसी चीज़ की कोई चिंता नहीं है और श्याम ने बड़ों वाले काम किए भी, बड़े होने का पूरा फ़र्ज़ निभाया। मेरे दोनों भाई छोटे थे, उनको सैटल करने में, उनके एडमिशनस के लिए ,काउंसलिंग वगैरह के लिए उनके साथ गए। ज़रूरत के समय हमेशा मेरे परिवार के साथ खड़े रहे। अपने और मेरे परिवार में कभी कोई अंतर नहीं किया। मेरे पेरेंट्स के दिल में अपने लिए एक बेटे की जगह बना ली, मम्मी-पापा श्याम पर इतना विश्वास करने लगे कि मैं कभी भी कहीं जाने के लिए कहती तो मम्मी -पापा कहते श्याम साथ में है तो जहाँ जाना है वहाँ जाओ, पर अकेले कहीं नहीं जाना।
एक बार ट्रेड फेयर देखने मुझे प्रगति मैदान जाना था और श्याम टाइम्स ऑफ इंडिया में जॉब करते थे, ऑफ़िस प्रगति मैदान के पास ही था तो मै प्रगति मैदान जाने से पहले इनके पास ऑफिस में गई, थोड़ा समय वहाँ बिताने के बाद मैंने कहा कि मेरे फ्रेंडस प्रगति मैदान के बाहर मिल रहे हैं फिर हमें ट्रेड फेयर देखने के लिए भी जाना है।श्याम ने बताया कि थोड़ी देर में उन्हें भी ऑफिस के काम से हरिद्वार जाना है। मैं प्रगति मैदान के बाहर खड़ी अपने फ्रेंडस का इंतज़ार कर रही थी कि वहाँ से इनकी गाड़ी निकली, कहने लगे फ्रेंड्स नहीं आए अभी, मैंने कहा नहीं वेट कर रही हूँ तो कहने लगे चलो थोड़ी दूर तक इकट्ठे चलते हैं, थोड़ी दूर जाकर फिर छोड़ दूँगा, तुम बस लेकर यहाँ आ जाना। तब तक तुम्हारे दोस्त भी आ जाएँगे, मैंने कहा चलो ठीक है। बातें करते-करते हम दिल्ली से मेरठ और मेरठ से मुजफ्फरनगर पहुँच गए। जब भूख लगी तब नज़र बाहर गई ,चीतल रेस्टोरेंट था, वहाँ उतरे लंच किया और वहाँ से उन्होंने मुझे वापस रोहतक की बस में बिठाया। मैं रात को घर पहुँची तो मम्मी ने पूछा ट्रेड फेयर देख आईं, कैसा था,मैंने कहा हाँ ट्रेड फेयर अच्छा था। मम्मी ने कहा ऐसे ब्लश कर रही है कुछ और बात है तब मैंने मम्मी को पूरा क़िस्सा बताया। मम्मी से कभी कुछ नहीं छिपाती थी मैं,यह मम्मी भी जानती थीं इसीलिए पूरा विश्वास करतीं थीं मुझ पर।
आज अतीत के कपाट खोलकर जब बीती ज़िंदगी पर नज़र डालती हूँ तो लगता ही नहीं कि इन सब यादगार घटनाओं को घटे, श्याम के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए सत्ताईस साल हो गए हैं। लगता है जैसे कल ही की बात है और जब -जब बीते पलों को याद करती हूँ ज़िंदगी में एक नई तज़गी, एक नयेपन का अहसास होता है। ये Acceptance ही तो है जो हर पल जीने का एक नया उत्साह देती है।
4,156 total views, 2 views today