Kavita -Geet -Ageet , Mukhye Bindu & Vyakhya
1 min read‘गीत-अगीत’
– रामधारी सिंह दिनकर
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कविता का सार/ मुख्य बिंदु
प्रस्तुत कविता ‘गीत-अगीत’ में कवि ने प्रत्यक्ष भावना अर्थात गीत और छुपी हुई भावना अर्थात अगीत की तुलना की है और यह तुलना प्रकृति में छुपे सौंदर्य के सहारे की गई है। प्राकृतिक सौंदर्य के अतिरिक्त जीव जंतुओं के महत्त्व, मानवीय राग और प्रेम भाव का सजीव चित्रण किया गया है।
कवि को दुविधा है कि गीत और अगीत(जो गाया नहीं जा सकता) दोनों में से कौन सुंदर है। नदी का किनारों से कुछ कहते हुए बह जाने पर गुलाब सोच रहा है कि यदि परमात्मा ने मुझे भी स्वर दिए होते तो मै भी अपने पतझड़ के दिनों की व्यथा का गीत संसार को सुना पाता। गुलाब अपने भाग्य को लेकर मायूस हैं वह किनारे पर चुपचाप खड़ा है।
नदी और गुलाब दोनों ही अपनी व्यथा को व्यक्त कर रहे हैं। घनी डाल पर बैठा शुक अपने मधुर स्वर में गीत गा रहा है। जब शुक गाता है तो शुकी उसके प्रेम में मग्न हो जाती है और उसका हृदय प्रफुल्लित हो उठता है।वह अपने पर फैलाकर अंडे सेती हुई मग्न हो जाती है।अपने स्नेह को व्यक्त करने के लिए उसे स्वर नहीं मिल पाते ।
यहाँ शुक स्वर मुखर है पर शुकी का मौन। एक का स्वर गीत कहलाता है और दूसरे का अगीत। कवि फिर से प्रश्न करता है कि शुक जो गीत गा रहा है वह सुंदर है या शुकी का गीत जो अब तक गाया ही नहीं जा सका।
जब प्रेमी आल्हा जब गाता है तब प्रेमिका की क्या इच्छा होती है कि काश वह अपने प्रेमी के गीत की कड़ी बन जाती और कड़ी के द्वारा अपने भावों को कह पाती।यहाँ प्रेमी का गीत मुखर है और प्रेमिका का मौन अर्थात एक गीत है और दूसरा अगीत। कभी फिर से वही सवाल पूछता है कि दोनों में अधिक कौन सुंदर है गीत या अगीत?
व्याख्या
गाकर गीत विरह के तटिनी
वेगवती बहती जाती है
दिल हल्का कर लेने को
उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता
देते स्वर यदि मुझे विधाता
अपने पतझड़ के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।
गाना गाकर बह रही निर्झरी
पाटल खड़ा तत्पर हैं।
गीत अगीत कौन सुंदर है।
शब्दार्थ-
तटिनी- नदी, तटों के बीच बहती हुई पाटल- गुलाब
वेगवती- तेज गति से अगीत- मौन गान, जिसे गाया नहीं गया
उपलों- किनारों से मूक – मौन, चुपचाप
निर्झरी- झरना, नदी विधाता – ईश्वर
व्याख्या –प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति सौंदर्य के अतिरिक्त जीव जंतुओं के महत्त्व मानवीय राग और प्रेम भाव का सचित्र चित्रण करते हुए तुलनात्मक प्रश्न किया है की गीत और संगीत दोनों में से कौन अच्छा है? कवि कहता है कि नदी बहती हुई कलकल की ध्वनि करती है यह ध्वनि साधारण ध्वनि नहीं बल्कि वेग से बेहतर हुई नदी द्वारा गाया जाने वाला गीत है ,नदी गीत गाती हुई तीव्र प्रवाह से प्रवाहित होती है।
वह अपने दुख का भार हल्का करने के लिए अपने मन की व्यथा किनारे पड़े पत्थरों से कहती जाती है बहता हुआ पानी जब किनारों से टकराता है तो उससे एक प्रकार की गूँज उठती हैं मानो वह अपनी विरह की पीड़ा को कुछ कम करने के लिए किनारों से कुछ कह रही है।
नदी के तट पर गुलाब का पौधा भी खड़ा हुआ सोच रहा है कि यदि विधाता मुझे भी बोलने की शक्ति देते तो मैं भी नदी की तरह पतझर की ऋतु में देखे गए सपनों के गीत इस संसार को सुनाता। नदी तो गाना गाकर अपने मन की व्यथा प्रकट कर रही है क्योंकि उसके पास स्वर है परंतु तट पर गुलाब चुपचाप खड़ा है उसकी पीड़ा मन में ही रह जाती है । कवि प्रश्न करता है कि नदी का गीत सुंदर है या गुलाब का वह गीत जो गाया ही नहीं जा सका वह सुंदर है
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बैठा शुक उस घनी डाल पर
जो खोंते को छाया देती
पंख फुला नीचे खोंते में
शुकी बैठ अंडे हैं सेती
गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर
किंतु शुकी के गीत उमड़कर
बातें सनेह में सनकर
गूंज रहा शुक का स्वर वन में
फूला मग्न शुकी का पर है
गीत अगीत कौन सुंदर है?
शब्दार्थ
घनी डाल – अधिक पत्तों वाली शाखा शुकी- मादा तोता
शुक- नर तोता सनेह – प्रेम
खोंते-घोंसला सनकर – डूबकर
पर्ण- पत्ता, पंख मग्न -अपने में मस्त
व्याख्या – कवि ने गीत और अगीत में अंतर प्रकट करने के लिए शुक (नर तोता) और शुकी (मादा तोता) के व्यवहार का वर्णन किया है। कवि कहता है कि तोता वृक्ष की उस घनी डाल पर बैठा हुआ है जिस डाल की छाया में तोते का घोंसला है और जहाँ शुकी अपने पंखों को फैलाकर अंडों को से रही हैं और उन पर अपना पूरा स्नेह उडेल रही है।
जब सूरज की बसंती किरणें पत्तों से छनकर आती है और उनके अंगों को छूते हैं तो शुक प्रसन्नता से गा उठता है और पूरा जंगल उसके स्वर से मुखरित हो जाता है शुकी भी गाना चाहती है किंतु उसके मन में उठने वाले गीत प्रेम और वात्सल्य में डूबकर रह जाते हैं वह अपने बच्चों के स्नेह में डूबी उस गीत को अंदर ही अंदर अनुभव करती है।
यहाँ शुक स्वर मुखर है पर शुकी का मौन। एक का स्वर गीत कहलाता है और दूसरे का अगीत। कवि फिर से प्रश्न करता है कि शुक जो गीत गा रहा है वह सुंदर है या शुकी का गीत जो अब तक गाया ही नहीं जा सका।
दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब
बड़ी सांझ आल्हा गाता है
पहला स्वर उसकी राधा को
घर से यही खींच लाता है ।
चोरी चोरी छिपकर सुनती है,
हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिधना यो मन में गुनती है।
वह गाता पर किसी वेग से
फूल रहा इसका अंतर है।
गीत- अगीत कौन सुंदर है?
शब्दार्थ
आल्हा – एक लोक-काव्य का नाम अंतर – ह्रदय
कड़ी – वे छंद जो गीत को जोड़ते हैं बिधना- भाग्य, विधाता
गुनती – विचार करती है वेग – गति
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि दो प्रेमियों के प्रेम का अंतर दर्शाते हुए कहते हैं एक प्रेमी शाम होते ही आल्हा (गीत) गाने लगता है उसके मुख से आल्हा का पहला स्वर निकलते ही उसकी प्रेमिका राधा अपने घर से उसकी ओर खींची चली आती है और नीम की छाया में छिपकर उसका मधुर गीत सुनती है।
गीत पर मुग्ध होकर वह सोचती है कि काश विधाता उसे इस मधुर गीत की कड़ी बना देते। प्रेमी गाता है और उसके गीत को सुनकर प्रेमिका का हृदय झूमने लगता है।
प्रेमी का गीत मुखर है और प्रेमिका का मौन अर्थात एक गीत है और दूसरा अगीत। कभी फिर से वही सवाल पूछता है कि दोनों में अधिक कौन सुंदर है गीत या अगीत?
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