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Agnipath , Vyakhya, Class 9,Sparsh ,Hindi Course B

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अग्निपथ

अग्निपथ

      

अग्निपथ

PPT – अग्नि पथ 

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                                                                          कविता का सार/ मुख्य बिंदु

      प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य को निरंतर संघर्ष करने एवं किसी से सहायता की अपेक्षा किए बिना आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। कवि ने इस संघर्षमय जीवन को ही अग्निपथ कहा है। कवि ने ‘अग्नि पथ’ संघर्षमय जीवन के प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है।

अग्नि पथ का अर्थ है आग से घिरा रास्ता अर्थात् कठिनाइयों से घिरा रास्ता। जीवन बहुत ही संघर्षमय है । इसी संघर्ष मार्ग का नाम कवि ने ‘अग्नि पथ’ रखा है क्योंकि जीवन का रास्ता अग्नि के समान है, जहाँ प्रत्येक कदम पर कठिनाइयाँ ही कठिनाइयाँ हैं। ‘माँग मत’ ‘कर शपथ’ ‘लथपथ’ इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि मनुष्य को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है।

‘माँग मत’ के द्वारा कवि कहना चाहता है मनुष्य को सुखों की चाह नहीं करनी चाहिए। ‘कर शपथ’ के द्वारा कवि कें चाहता है कि मनुष्य को लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में आने वाली कठिन परिस्थितियों से डरकर पीछे नहीं हटना चाहिए और ‘माँग मत’ की पुनरावृत्ति द्वारा कवि कहता है कि मनुष्य को पूरी मेहनत से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अग्रसर रहना चाहिए।

‘एक पत्र छाँह भी माँग मत’ इस पंक्ति का आशय है कि अपने लक्ष्य प्राप्ति के  मार्ग में मनुष्य को दूसरों से सुख प्राप्ति की आशा नहीं रखनी चाहिए। इस पंक्ति के माध्यम से कवि मनुष्य को प्रेरणा देता है कि वह दृढ़ संकल्प होकर मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का सामना करते हुए निरंतर अपने मार्ग पर अग्रसर रहे। जब तक मनुष्य को अपनी मंज़िल न मिल जाए, तब तक उसे रुकना नहीं है। सदा अपने लक्ष्य पर नज़र रखनी है, मुड़कर नहीं देखना है और ना ही

 

रुकना है। बाधाओं का डटकर मुक़ाबला करके, लक्ष्य को प्राप्त करने की सीख दी गई है। संघर्ष करने वाला व्यक्ति ख़ून- पसीने में लथपथ होकर कष्टों में आँसुओं की परवाह किए बिना भी निरंतर आगे बढ़ता रहता है और यह हमारे लिए प्रेरणादायक हो सकता है। कवि कहता है कि मनुष्य को कभी भी रुकना नहीं चाहिए, उसे ख़ून में लथपथ होते हुए भी कठिनाइयों से हार नहीं माननी चाहिए।

               इस कविता का मूल भाव जीवन में निरंतर संघर्ष करना है। इस कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि यह जीवन अग्निपथ के समान है। इस पथ पर कदम -कदम पर चुनौतियों और कष्टों का सामना करना पड़ता है। जीवन पथ में चाहे कितने भी कष्ट क्यों ना आएँ, मनुष्य को विचलित नहीं होना चाहिए।

जीवन रूपी अग्निपथ की कठिन राहों पर बिना रुके,बिना थमें और बिना मुड़े निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। उसे किसी से भी सुख की आशा नहीं करनी चाहिए।

इस मार्ग पर चलते हुए आँसू, पसीना बहाकर तथा ख़ून से लथपथ होकर भी उसे निरंतर संघर्ष करते रहना चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति संघर्ष से पीछे नहीं हटता वही जीवन में सफलता प्राप्त करता है। दो अग्निपथ अर्थात कष्टों से परिपूर्ण मार्ग है यहाँ संघर्ष करने वाला मनुष्य ही सफल होता है।

 

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

शब्दार्थ –
अग्नि पथ – कठिनाइयों से भरा हुआ मार्ग, आगयुक्त मार्ग
पत्र – पत्ता                       
छाँह – छाया

व्याख्या – कवि कहना चाहता है कि यह जीवन अग्निपथ है अर्थात कष्टों से पूर्ण है, हमें इन कष्टों की चिंता किए बिना आगे बढ़ते जाना है। कवि मनुष्यों को संदेश देता है कि जीवन में जब कभी भी कठिन समय आता है तो यह समझ लेना चाहिए कि यही कठिन समय हमारी  असली परीक्षा का है।

ऐसे समय में हो सकता है कि हमारी मदद के लिए कई हाथ आगे आएँ, जो हर तरह से हमारी मदद के लिए सक्षम हो लेकिन हमेशा यह याद रखना चाहिए कि यदि हमें  जीवन में सफल होना है तो कभी भी, किसी भी कठिन समय में किसी की मदद नहीं लेनी चाहिए।

स्वयं ही अपने रास्ते पर कड़ी मेहनत के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए। तात्पर्य यह है कि हमें जीवन में सुख की अपेक्षा किए बिना आगे बढ़ना है, दूसरों की सहायता मनुष्य को कमजोर बना देती है। सुख मनुष्य को संघर्षहीन बना देते हैं इसलिए मनुष्य को कष्ट सहते हुए, कठिनाइयों का सामना करते हुए, बिना किसी की मदद लिए आगे बढ़ते रहना चाहिए ।

 

तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

शब्दार्थ –
शपथ – कसम, सौगंध

थमेगा – रुकेगा

व्याख्या – कवि मनुष्य को समझाते हुए कहता है कि जीवन एक संघर्षमय पथ है। इस पथ पर मनुष्य को न तो रुकना है, न थमना है और न ही पीछे मुड़कर देखना है। हर परिस्थिति में अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए कठोर परिश्रम करते रहना आवश्यक है।

जीवन में सफल होने के लिए, कठिन रास्ते पर चलने का फैसला कर लेने के बाद मनुष्य को यह शपथ लेनी चाहिए कि चाहे मंजिल तक पहुँचने के रास्ते में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएँ, मनुष्य कभी भी मेहनत करने से थकेगा नहीं, कभी रुकेगा नहीं और ना ही कभी पीछे मुड़ कर देखेगा और उसे यह शपथ लेनी चाहिए कि अग्निपथ रूपी जीवन संघर्ष का सामना वह ,पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ करेगा।

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यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

शब्दार्थ –
अश्रु – आँसू
स्वेद – पसीना
रक्त – खून, शोणित
लथपथ – सना हुआ

व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि इस जीवन रूपी संसार में अग्नि के समान कठिन रास्ते हैं। मुश्किल घड़ी में सबसे महान दृश्य यही है कि मनुष्य अपना खून पसीना बहाकर संघर्ष रूपी अग्निपथ पर निरंतर आगे बढ़ता रहे।

कवि मनुष्यों को संदेश देते हुए कहता है कि जब कोई मनुष्य किसी कठिन रास्ते से होते हुए, अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ता है तो उसका वह संघर्ष  देखने योग्य होता है अर्थात दूसरों के लिए प्रेरणा दायक होता है।

कवि कहता है कि अपनी मंजिल पर वही मनुष्य पहुँच पाता है जो आँसू, पसीने और खून से सने हुए अर्थात कड़ी मेहनत करके आगे बढ़ता है। खून, पसीने से लथपथ मनुष्य का अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ना ही उसकी कर्मठता की परीक्षा है।  

 

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