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Naye Ilake me ,Vyakhya , Class 9, Hindi Course B

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अरुण कमल

अरुण कमल

 

अरुण कमल
                           

जहाँ रोज बन रहे हैं नए-नए मकान
मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ

शब्दार्थ –
इलाका – क्षेत्र
अकसर – प्रायः, हमेशा

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व्याख्या –प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने इलाके में तीव्र गति से हो रहे निर्माण को एक संकट के रूप में दर्शाया है। कवि कहता है कि नए इलाके में रोज़ नए-नए मकान बन रहे हैं, इन नए-नए मकानों के बीच कवि जब भी आता है वह अक्सर रास्ता भूल जाता है।

शहर में नये मुहल्ले रोज ही बसते हैं। ऐसी जगहों पर रोज नए-नए मकान बनते हैं। रोज-रोज नए बनते मकानों के कारण कोई भी व्यक्ति ऐसे इलाके में रास्ता भूल सकता है। कवि को भी यही परेशानी होती है। वह भी इन मकानों के बीच रास्ता हमेशा भूल जाता है।

 

धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढ़हा हुआ घर
और जमीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का

घर था इकमंजिला

शब्दार्थ –
ताकता – देखता
ढहा – गिरा हुआ, ध्वस्त
फाटक – दरवाजा

व्याख्या   अपने निश्चित ठिकाने तक पहुँचने के लिए आने-जाने के रास्ते में लेखक कई निशानियाँ बनाता है लेकिन वे भी काम नहीं आती । कवि कहता है कि जो पुराने निशान हैं वे धोखा दे जाते हैं क्योंकि पुराने निशान तो सदा के लिए मिट जाते हैं। कवि के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वह अपना गंतव्य ढूँढ़ने के लिए, अपने द्वारा रखी निशानी, पीपल के पेड़ को खोजता है परन्तु नए मकानों के बनने के कारण उस पीपल के पेड़ को काट दिया गया है।

फिर कवि पुराने गिरे हुए मकान को ढूँढ़ता है परन्तु वह भी उसे अब कहीं दिखाई नहीं देता । अपने ठिकाने तक पहुँचने के लिए कवि, जमीन के उस खाली टुकड़े को ढूँढता है जिसके पास से बाएँ मुड़ना पड़ता था और फिर दो मकान के बाद बिना रंगवाले लोहे के दरवाज़े वाले इकमंजिले मकान में जाना होता था .

पर उसके द्वारा याद की गई सभी निशानियाँ मिट चुकी हैं।कहने का तात्पर्य यह है कि अब बहुत से नए मकानों के बन जाने के कारण, कवि को घर का रास्ता ढूँढ़ने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।  

 

और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता
यहाँ रोज कुछ बन रहा है
रोज कुछ घट रहा है

यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं

शब्दार्थ –
ठकमकाता – धीरे-धीरे, डगमगाते हुए
स्मृति – याद

व्याख्या – कवि कहता है कि अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए उसने जो निशानियाँ रखी थी वे सभी निशानियाँ इस परिवर्तनशील संसार में धोखा दे जाती है यानि इन निशानियों का अब कहीं नामो-निशान नहीं रह गया है। उसे हर बार लगता है जैसे वह एक घर पीछे आ गया है या फिर दो घर डगमगाते हुए आगे बढ़ गया है।

कवि कहता है नए इलाके में रोज़ ही कुछ नया बन रहा है, कुछ पुराना टूट रहा है इस बदलते परिवेश के चलते हमारी स्मृतियाँ व्यर्थ है, स्मृतियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। जहाँ रोज ही कुछ नया बन रहा हो और कुछ मिट रहा हो, वहाँ अपने घर का रास्ता ढ़ूँढ़ने के लिए, अपनी याददाश्त पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

 

एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही है उपाय कि हर दरवाजा खटखटाओ
और पूछो क्या यही है वो घर?
समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढ़हा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।

 

शब्दार्थ –
वसंत – छह ऋतुओं में से एक
पतझड़ – एक ऋतु जब पेड़ों के पत्ते झड़ते हैं
वैसाख (वैशाख) – चैत (चैत्र) के बाद आने वाला महीना
भादों – सावन के बाद आने वाला महीना
अकास (आकाश) – गगन

व्याख्या – कवि कहता है कि नए इलाके में एक ही दिन में सब कुछ इतनी जल्दी बदल जाता है कि एक दिन पहले की दुनिया पुरानी लगने लगती है। तात्पर्य यह है की यादें एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती हैं जैसे एक ही पल में कई सदियाँ गुजर गई हों। कवि को ऐसा लगता है जैसे वह महीनों बाद लौटा है।

ऐसा लगता है जैसे वह बसंत ऋतु में बाहर गया था और पतझड़ ऋतु में लौट कर आया है, जैसे बैसाख ऋतु में गया था और भादों में लौटा हो। कवि कहता है कि अब यही उपाय शेष है और उसकी इच्छा भी यही है कि हर घर का दरवाज़ा खटखटाकर पूछा जाए कि क्या यह वही घर है जिसमें उसके परिचित रहा करते थे।

कवि कहता है कि उसके पास अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए बहुत कम समय है क्योंकि अब तो आसमान में बादल छा गए हैं और बारिश आने वाली है। अब कवि को उम्मीद है कि कोई परिचित उसे देख ले और पहचान कर पुकार ले।

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                                                  कविता का सार/मुख्य बिंदु       

इस कविता में कवि ने शहरों की इस विडंबना की ओर संकेत किया है कि शहरों का स्वरूप लगातार बदल रहा है। कवि ने एक ऐसी दुनिया का वर्णन किया है जो एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है।आधुनिक युग में शहरों की विडंबना यह है कि आज के इस परिवर्तनशील समय में मनुष्य की संवेदनाएँ व आत्मीयता समाप्त हो गई है।

सभी अपने कामों में इतने व्यस्त हैं कि द्वार खटखटाने पर भी कोई मदद के लिए आगे नहीं आता।कवि ने अपनी इस कविता के माध्यम से शहरों की इसी विडंबना की ओर संकेत किया है।  

नए बसते इलाक़े में कवि अक्सर रास्ता भूल जाता है क्योंकि नित-नए मकान बन रहे हैं।अपनी मंज़िल पर पहुँचने के लिए कवि जिन निशानियों को पहचान के रूप में चिह्नित करता है, नए मकान बनने के कारण वे नष्ट हो जाते हैं इसलिए कवि रास्ता भूल जाता है।   

कविता में  पीपल का पेड़,ढहा हुआ घर, ख़ाली ज़मीन का टुकड़ा,बिना रंग वाले लोहे के फाटक वाला एकमंज़िला मकान जैसे पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है।

कवि के परिचित पुराने इलाक़े में परिवर्तन आ चुके हैं। कवि को जब पुरानी निशानियाँ दिखाई नहीं देतीं तो वह अनुमान से ही उस जगह को खोजता है जहाँ उसे जाना है। नई इमारतों के निर्माण और अपनी चिह्नित निशानियों के अभाव में उसे दिशा भ्रम हो जाता है इसलिए वह कभी एक घर पीछे या दो घर आगे चल देता है।

जिस प्रकार वसंत ऋतु के बाद पतझड़ आने पर काफ़ी परिवर्तन आ जाता है, बैसाख के बाद भादो आने पर बहुत परिवर्तन आ जाता है। उसी प्रकार कवि जब उसी इलाक़े में दोबारा आता है, उसे ज़मीन आसमान का अंतर दिखाई देता है।

     कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी’ की ओर भी इशारा किया है क्योंकि जीवन द्रुत गति से चल रहा है, इस परिवर्तनशील संसार में हर व्यक्ति अपने काम में व्यस्त है। परिस्थितियाँ तेज़ी से बदल रही हैं, सबके पास समय का अभाव है इसलिए मन में केवल एक उम्मीद बची है कि शायद कोई जाना -पहचान व्यक्ति उसे पुकार ले।

 

 

 

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