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NCERT Solutions for Ginni Ka Sona ,Patjhar Me Tooti Pattiya Class 10

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लेखक - रवींद्र केलेकर

लेखक - रवींद्र केलेकर

 

लेखक - रवींद्र केलेकर

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(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

(1) प्रश्न i – शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?

उत्तर – शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से इसलिए की गई है क्योंकि शुद्ध सोने में चमक होती है और आदर्श भी शुद्ध सोने की तरह चमकदार और महत्वपूर्ण मूल्यों से भरे होते हैं। शुद्ध आदर्श पूरी तरह से आदर्श होते हैं जिनसे कोई समझौता नहीं किया जाता है और यही स्थिति शुद्ध सोने की होती है जिसमें किसी अन्य धातु की मिलावट नहीं की जाती है।

ताँबे से सोना मजबूत तो होता है परन्तु उसकी शुद्धता समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार व्यवहारिकता के कारण आदर्श समाप्त हो जाते हैं परन्तु यदि सही ढंग से व्यवहारिकता और आदर्शों को मिलाया जाए तो जीवन में बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।

 

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50- 60 शब्दों में) लिखिए –

(1) प्रश्न i – गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदहारण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।

उत्तर – गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। गाँधीजी अत्यंत कुशल एवं लोकप्रिय नेता थे,वह भी व्यावहारिक आदर्शवादियों में से एक थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके।

उन्होंने व्यावहारिकता के नाम पर कभी आदर्शों से समझौता नहीं किया। यदि गाँधी जी अपने आदर्शो को महत्त्व नहीं देते तो पूरा देश उनके साथ हर समय कंधे-से-कंधा मिला कर खड़ा न होता। यह बात उनके अहिंसात्मक आंदोलन से स्पष्ट हो जाती है। वह अकेले चलते थे और लाखों लोग उनके पीछे हो जाते थे।

नमक का कानून तोड़ने के लिए जब उन्होंने जनता का आह्वान किया तो उनके नेतृत्व में हज़ारों लोग उनके साथ पैदल ही दांडी यात्रा पर निकल पड़े थे । इसी प्रकार से असहयोग आंदोलन के समय भी उनकी एक आवाज़ पर देश के हज़ारों नौजवान अपनी पढ़ाई छोड़कर उनके नेतृत्व में आंदोलन के रास्ते पर चल पड़े थे।

 

प्रश्न ii – आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं ? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –  हमारे विचार से – सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम, भाईचारा, त्याग, परोपकार, मीठी वाणी, मानवीयता, समानता, करुणा आदि मूल्य शाश्वत हैं।  वर्तमान समय में स्वार्थता, ऊँच-नीच की भावना, वैचारिक संकीर्णता आदि भावनाएँ बढ़ती जा रही है।

शाश्वत मूल्य कहीं खो से गए हैं , सामाजिक समरसता भी समाप्त हो गई है। ऐसे में एक स्वस्थ और आदर्श समाज के निर्माण के लिए इन शाश्वत मूल्यों की अत्यंत आवश्यकता है। ऐसे में वर्तमान समय में  शाश्वत मूल्यों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती।

 

प्रश्न iii – ‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना ‘,गांधीजी के आदर्श और व्यवहार के सन्दर्भ में यह बात किस तरह झलकती है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – गाँधीजी सच्चे आदर्शवादी थे। गांधीजी ने जीवन भर सत्य और अहिंसा का पालन किया। वे अपने आदर्शों को व्यावहारिकता के नाम पर गिराते नहीं थे, वे आदर्शों को ऊँचाई तक लेकर जाते थे अर्थात वे सोने में ताँबा मिलकर उसकी कीमत कम नहीं करते थे, बल्कि ताँबे में सोना मिलकर उसकी कीमत बड़ा देते थे।

वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। दूसरे लोग व्यावहारिकता के नाम पर अपने आदर्शों से समझौता कर लेते हैं ऐसा करके वे सोने में ताँबा मिलाते हैं इसके विपरीत गांधीजी तांबे में सोना मिलाते थे।

 

प्रश्न iv –  ‘गिन्नी का सोना’ के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमे से जीवन में किसका महत्त्व है ?

उत्तर – यह पूर्णतया सत्य है कि मनुष्य के व्यवहार में कुशलता होनी चाहिए परन्तु उसका अपना आदर्श होना चाहिए।   इस आदर्श को बनाए रखते हुए उसे अपने व्यवहार को विनम्र मधुर बनाना चाहिए ,उसे अवसरानुकूल व्यवहार को लचीला बनाना चाहिए पर आदर्श को अवश्य बनाए रखना चाहिए।

‘गिन्नी का सोना’ कहानी में इस बात पर बल दिया गया है कि आदर्श शुद्ध सोने के समान हैं। उनमे व्यवहारिकता का गुण मिलाकर उन्हें और भी अधिक मजबूत किया जा सकता है। समाज में देखा गया है कि व्यवहारवादी लोग आदर्शवादी लोगो से बहुत आगे तो बढ़ जाते हैं परन्तु वे अपने जीवन के नैतिक मूल्यों को पीछे छोड़ देते हैं और स्वार्थी हो जाते हैं। सबसे महत्पूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है।

हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगो के कारण ही बच पाए हैं। व्यवहारवादी लोग तो केवल अपने आपको आगे लाने में लगे रहते हैं उनको कोई फ़र्क नहीं पड़ता अगर समाज को नुक़सान हो रहा हो।

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(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

(i) समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ़  आदर्शवादी लोगों के कारण ही बच पाए हैं। खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है।

व्यवहारवादी लोग केवल अपनी उन्नति के बारे में सोचते हैं उन्हें दूसरों से कुछ लेना-देना नहीं होता जबकि आदर्शवादी लोगों के व्यवहार में त्याग, अहिंसा, समता ,बंधुता, समानता आदि जैसे शाश्वत मूल्य दिखाई देते हैं। वास्तव में समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो सिर्फ आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।

 

(ii) जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब प्रेक्टिकल आइडियालिस्टोंके जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यवहारिक सूझबूझ ही आगे आने लगती है।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि आदर्श और व्यवहार में समन्वय की बात आती है तो लोग आदर्शों की उपेक्षा करने लगते हैं और व्यावहारिकता को अधिक महत्त्व देने लगते हैं। ऐसे में उनका आदर्श व्यवहार गिरने लगता है वे व्यावहारिकता के कारण आदर्शों से समझौता करने लगते हैं ,इन समझौतों के कारण आदर्श समाप्त होने लगते हैं। लोग आदर्श की उपेक्षा करके व्यावहारिक सूझबूझ से काम लेने लगते हैं।

वास्तव में जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रेक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यवहारिक सूझबूझ ही आने लगती है क्योंकि वर्णन कभी भी आदर्शों का नहीं होता, बल्कि आपके व्यवहार का होता है और आदर्शों के कम होते ही सोचने की शक्ति बढ़ने लगती है।

 

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