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NCERT Solutions for Vaigyanik Chetna ke vahak chandra Shekhar Venkat Raman Class 9

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पाठ - वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्र्शेखर वेंकट रामन

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पाठ - वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्र्शेखर वेंकट रामन
 

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मौखिक

 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा और क्या थे?

उत्तर – रामन् भावुक प्रेमी के अलावा एक जिज्ञासु वैज्ञानिक भी थे। उनके अंदर सशक्त वैज्ञानिक जिज्ञासा थी जिसके कारण वह विश्वविख्यात वैज्ञानिक बने।

 

प्रश्न 2– समुद्र को देखकर रामन् के मन में कौन -सी दो जिज्ञासाएँ उठी?

उत्तर – समुद्र को देखकर रामन् के मन में दो जिज्ञासा ही उठती थी-

1.समुद्र का नील रंग नीला क्यों होता है?

2.नीले रंग के अतिरिक्त समुद्र का रंग कुछ और क्यों नहीं होता?

 

प्रश्न 3रामन् के पिता ने उनमें किन विषयों की सशक्त नींव डाली?

उत्तर – रामन् के पिता गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। उन्होंने हमेशा रामन् को इन दोनों विषयों के प्रति आकर्षित किया और इन दोनों विषयों की सशक्त नींव डाली। इसी कारण आगे चलकर रामन् ने पूरे संसार में प्रसिद्धि पाई।

 

प्रश्न 4– वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन् क्या करना चाहते थे?

उत्तर – वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन् इनके पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्यों की परतें खोलना चाहते थे। इस दौरान उन्होंने अनेक देशी और विदेशी वाद्ययंत्रों का अध्ययन किया।

 

प्रश्न 5– सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन् की क्या भावना थी?

उत्तर –सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन् की भावना यह थी कि वे सरस्वती की साधना को धन और सुख-सुविधा से अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। वे वैज्ञानिक रहस्यों के ज्ञान को सबसे अधिक मूल्यवान मानते थे और अपना समय वैज्ञानिक अध्ययन तथा शोधकार्यों में लगाना चाहते थे।

 

प्रश्न 6– ‘रामन् प्रभाव’ की खोज के पीछे कौन-सा सवाल हिलोरें ले रहा था?

उत्तर – ‘रामन् प्रभाव’ की खोज के पीछे समुद्र के नीले रंग की वजह का सवाल हिलोरें ले रहा था। उन्होंने आगे उसी दिशा में प्रयोग किए। जिसकी परिणति ‘रामन् प्रभाव’ की महत्वपूर्ण खोज के रूप में हुई।

 

प्रश्न 7– प्रकाश तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने क्या बताया?

उत्तर – प्रकाश की तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है। उन्होंने सूक्ष्म कणों की तुलना बुलेट से की और उसे फोटॉन का नाम दिया। उन्होंने बताया कि प्रकाश के कण बुलेट के समान तीव्र प्रवाह से बहते हैं।

 

प्रश्न 8रामन् की खोज ने किन अध्ययनों को सहज बनाया

उत्तर – रामन् की खोज ने पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज बनाया। पहले उस काम के लिए इंफ़्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था।

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लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1. कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा क्या थी?

उत्तर- कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा विज्ञान के रहस्यों को सुलझाने की और नए नए वैज्ञानिक प्रयोग करने की थी।

वे अपना सारा जीवन शोध और अनुसंधान के लिए समर्पित करना चाहते थे इसलिए उन्होंने कॉलेज के दिनों से ही शोध कार्यों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था परन्तु उन दिनों यह सुविधा न होने के कारण उनकी इच्छा दिल में ही रह गई थी।

 

प्रश्न 2. वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रावण ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की?

उत्तर- पहले यह भ्रांति फैली हुई थी कि भारतीय वाद्ययंत्र, विदेशी वाद्ययंत्रों की तुलना में घटिया है। वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन् ने इसी भाँति को तोड़ने की कोशिश की।

 

प्रश्न 3. रामन् के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था?

उत्तर- रामन् सरकार के वित्त विभाग में सहायक जनरल अकाउंटेंट के पद पर कार्यरत थे। यहाँ उन्हें अच्छा वेतन और बहुत-सी सुविधाएँ प्राप्त थीं। जब कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद खाली हुआ तो प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री आशुतोष मुखर्जी ने उनके सामने सरकारी नौकरी छोड़कर, कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद संभालने का प्रस्ताव रखा। प्रोफेसर की नौकरी की अपेक्षा सरकारी नौकरी में ज्यादा वेतन और सुविधाएँ थी।

उनके लिए यह निर्णय करना कठिन हो गया कि कम वेतन और कम सुविधाओं वाले प्रोफेसर के पद को अपनाएँ या सरकारी पद पर बने रहे। अंत में रामन ने प्रोफेसर की नौकरी को स्वीकार किया क्योंकि उनके लिए सरकारी सुख सुविधाओं से कहीं अधिक, सरस्वती की साधना थी। उनके लिए यह निर्णय करना सचमुच अत्यंत कठिन था कि अधिक वेतन और अच्छी सुख -सुविधाओं वाली सरकारी नौकरी पर कार्यरत रहे हैं या कम वेतन वाले प्रोफेसर के पद का प्रस्ताव स्वीकार करें।

 

प्रश्न 4. सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर किन किन पुरस्कार से सम्मानित किया गया?

उत्तर- सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया –

1.सन् 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से उन्हें सम्मानित किया गया।

2.सन् 1929 में सर की उपाधि दी गई।

3.सन् 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

4.सन् 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किए गए।

5.रोम का मेत्युसी पदक मिला।

6.रॉयल सोसाइटी का ह्यूज पदक मिला।

 

प्रश्न 5. रामन् को मिलने वाले पुरस्कार ओने भारतीय चेतना को जागृत किया ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर- रामन् को मिलने वाले पुरस्कार ओने भारतीय चेतना को जागृत किया ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि रामन् को अधिकतर पुरस्कार तब मिले जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था उन्हें मिले सम्मानों ने भारत को एक नया आत्मसम्मान और आत्मविश्वास दिया।

रामन  भारत के प्रथम वैज्ञानिक थे जिन्हें विश्व के कई प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया जिसमें वर्ष 1930 का नोबेल पुरस्कार भी शामिल है। रामन् को जब ये पुरस्कार मिले तब भारत इंग्लैंड का उपनिवेश था और स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा था ऐसे में भारतीय विज्ञान की पहचान विश्व को मिली तो यह औपनिवेशिक भारत के लिए गौरव की बात बात थी और इससे सामान्य भारतीयों की चेतना जागृत हुई।

रामन् नवयुवकों के प्रेरणा स्रोत बन गए उन्होंने एक नई भारतीय चेतना को जन्म दिया ,अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के बाद भी उन्होंने सैकड़ों छात्रों का मार्गदर्शन किया और देश के भावी नागरिको को एक सफल वैज्ञानिक बनने की प्रेरणा दी।

 

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1. रामन् के प्रारंभिक शोध कार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है?

उत्तर- रामन् के प्रारंभिक शोध कार्य को आधुनिक हठयोग इसलिए कहा गया है क्योंकि उनकी परिस्थितियाँ बिल्कुल विपरीत थीं। हठ करने वाला परिस्थितियाँ नहीं देखता, इसी प्रकार रामन् जिस प्रयोगशाला में शोध कार्य करते थे, उस प्रयोगशाला में सुविधाओं और उपकरणों का नितांत अभाव था फिर भी रामन् ने अपने शोध कार्य जारी रखें।

काम चलाउ उपकरणों का प्रयोग कर उन्होंने अपने शोध कार्य पूरे किए। यह रामन् के मन का दृढ हठ ही था जिसके कारण वे शोध कार्य जारी रख सकें। उनके प्रारंभिक शोध कार्य को आधुनिक हठयोग कहा गया है।

यह हठयोग विज्ञान से संबंधित हैं इसलिए आधुनिक कहना उचित है। वास्तव में रामन् की दृढ़ इच्छाशक्ति को हठ योग की संज्ञा दी गई है।

 

प्रश्न 2. रामन् की खोज ‘रामन् प्रभाव’ क्या है स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-  रामन् की खोज को ‘रामन् प्रभाव’ के नाम से जाना जाता है। रामन् प्रभाव के अंतर्गत ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया गया। उन्होंने पाया कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रविदार पदार्थ से गुजरती है तो गुज़रने के बाद उसके रंग में परिवर्तन आता है।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन तरल या रवेदार पदार्थ से गुज़रते हुए उनके अणुओं से टकराते हैं तो इस टकराव के परिणामस्वरूप वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश पा जाते हैं या कुछ अंश खो देते हैं। दोनों ही परिस्थितियाँ प्रकाश के रंग में बदलाव लाती है एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे ज्यादा ऊर्जा बैजनी रंग के प्रकाश में होती है।

बैंजनी के बाद क्रमशः नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल रंग का नंबर आता है। इस प्रकार लाल व अन्य प्रकाश की ऊर्जा सबसे कम होती है। एकवर्णीय प्रकाश तरल या ठोस रवों से गुजरते हुए जिस परिमाण में ऊर्जा को  पाता या खोता है, उसी हिसाब से उसका परिवर्तन हो जाता है। इसी को रामन् खोज कहा जाता है।

 

प्रश्न 3. रामन् प्रभाव की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य संभव हो सके?

उत्तर- रामन् प्रभाव की खोज से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। पहले इस काम के लिए इंफ़्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था, यह तकनीक मुश्किल भी थी और इसमें गलतियों की संभावना भी अधिक रहती थी।

रामन् की खोज के बाद पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के अध्ययन के लिए रामन् स्पेक्ट्रोस्कॉपी का सहारा लिया जाने लगा। यह तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देती है।

इस जानकारी की वजह से प्रयोगशाला में ये पदार्थों का संश्लेषण करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण करना संभव हो गया है।

 

प्रश्न 4. देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- रामन् के अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी और वे देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व चिंतन के विकास के प्रति समर्पित थे। उन्हें अपने शुरुआती दिनों में ढंग की प्रयोगशाला और उपकरणों के अभाव में काफी संघर्ष करना पड़ा था। इसलिए उन्होंने उन्होंने एक उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना की जो बैंगलोर में स्थित है और उन्हीं के नाम पर अर्थार्थ रामन रिसर्च इन्स्टिट्यूट के नाम से जानी जाती है।

भौतिकी में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने ‘इंडियन जनरल ऑफ फिज़िक्स’ नामक शोध पत्रिका आरंभ की ,विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए वे ‘करंट साइंस’ नामक पत्रिका का संपादन करते थे। उन्होंने समुद्र के नीले रंग के परीक्षण के आधार पर प्रकाश के प्राकृतिक चरित्र का खुलासा किया जो ‘रामन् प्रभाव’ के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ।

पूरे विश्व ने रामन् के माध्यम से भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभा को स्वीकारा। रामन् ने भारतीय स्वाभिमान को विश्व पटल पर स्थापित किया। इससे सामान्य भारतीयों में भी एक नया आत्मसम्मान एवं आत्मविश्वास की भावना जागृत हुई उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में एक नई भारतीय चेतना को जागृत किया।

 

प्रश्न 5. सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के जीवन से प्राप्त होने वाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् ने देश को वैज्ञानिक दृष्टि तथा चिंतन प्रदान किया, उनकी  वैज्ञानिक उपलब्धियाँ अपने आप में महत्वपूर्ण संदेश है। इस दिशा में पहले उन्होंने स्वयं सांसारिक सुख-सुविधा त्याग कर प्रयोग साधना की।

वे वैज्ञानिक चेतना एवं दृष्टि की साक्षात प्रतिमूर्ति थे, सादगी एवं उच्च वैज्ञानिक चेतना के प्रतीक थे। रामन् का मानना था कि हमारे आसपास अनेक प्राकृतिक घटनाएँ निरंतर घटती रहती है, हमें इनका अध्ययन वैज्ञानिक दृष्टि से करना चाहिए।

हमारे आसपास रहस्यों को उजागर करने वाली ना जाने कितनी वस्तुएँ पड़ी है, इन वस्तुओं को वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाले व्यक्ति की तलाश है। इस प्रकार उन्होंने इन वस्तुओं के द्वारा जीवन के अनेक रहस्यों को उजागर करने का संदेश दिया। उनका जीवन यह संदेश देता है कि हमें हमेशा अपने आस-पास के वातावरण के प्रति सचेत एवं चेतना संपन्न रहना चाहिए। उनका जीवन साधारण से असाधारण उपलब्धि की यात्रा का संदेश देता है।

 

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1. उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख सुविधाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी।

उत्तर- रामन् जिज्ञासु प्रकृति के वैज्ञानिक तथा अन्वेषक थे। वे सच्चे सरस्वती साधक थे, वे सुविधाभोगी नहीं थे। उनके लिए सरस्वती की आराधना का अधिक महत्त्व था, वैभवपूर्ण जीवन का नहीं।

इसके लिए उन्होंने वित्त विभाग की ऊँची नौकरी छोड़ दी और कलकत्ता विश्वविद्यालय की कम सुविधा वाली नौकरी स्वीकार कर ली। उन्होंने सरकारी सुविधाओं को छोड़कर सरस्वती की आराधना को प्रमुखता दी।

 

प्रश्न 2. हमारे पास ऐसी न जाने कितने ही चीजें बिखरी पड़ी है जो अपने पात्र की तलाश में है।

उत्तर- हमारे आस-पास रहस्यों को उजागर करने वाली ना जाने कितनी वस्तुएँ पड़ी है, इन वस्तुओं को वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाले व्यक्ति की तलाश है। प्रकृति की प्रत्येक चीज़ अपने बारे में कुछ न कुछ रहस्य उजागर करने के लिए तत्पर हैं परंतु उनका यह रहस्य तभी उजागर हो सकता है जब कोई प्रतिभाशाली और लगन का पक्का व्यक्ति उनके रहस्यों को खोज निकालने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ तैयार हो जाए। वास्तव में इन चीजों को देखकर उन्हें सही ढंग से सँवारने के लिए योग्य व्यक्तियों की सदैव जरूरत रहती है।

 

प्रश्न 3. यह अपने आप में एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।

उत्तर- हठयोग का अर्थ है जिद करने वाला। वह यह नहीं देखता की परिस्थितियाँ उनके अनुकूल है या नहीं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वह अपनी इच्छाशक्ति को दबने नहीं देता, अपने कार्य को पूरा करके ही रहता है।

बिना साधनों के शोध कार्य करना अपने शरीर को कष्ट देकर ईश्वर को प्राप्त करने के जैसा असंभव कार्य है परन्तु रामन् ने कामचलाऊ उपकरणों के द्वारा अपने शोध कार्यों में अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की है और यह अपने आप में एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण है।

 

(घ) उपयुक्त शब्द का चयन करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

इंफ़्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, इंडियन असोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन , फिलोसॉफिकल मैगज़ीन,

   ऑफ साइंस, भौतिकी, रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट

1.रामन् का पहला शोध पत्र फिलोसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था.

2.रामन् की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।

3.कलकत्ता की मामूली-सी प्रयोगशाला का नाम इंडियन असोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन

   ऑफ साइंस था।

4.रामन् द्वारा स्थापित शोध संस्थान रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट नाम से जानी जाती है।

5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए इंफ़्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था।                               

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