NCERT Solutions for Mera chhota sa Niji Pustkalya Class 9 Hindi Sanchyan
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पाठ -मेरा छोटा -सा निजी पुस्तकालय
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पुस्तकालय
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बोध अभ्यास
प्रश्न 1– लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे?
उत्तर – लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन इसलिए हिचक रहे थे क्योंकि लेखक को तीन-तीन हार्टअटैक आए थे, वो भी एक के बाद एक। एक तो ऐसा की नब्ज़ बंद, साँस बंद, धड़कन बंद और डॉक्टरों ने लेखक को मृत घोषित कर दिया था। लेकिन डॉक्टर बोर्जेस ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी थी, उन्होंने नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स देकर किसी तरह लेखक को बचाया।
उनका मानना था कि यदि शरीर मृत है तो दर्द महसूस नहीं होगा पर यदि कहीं भी ज़रा भी एक कण प्राण शेष होंगे, तो हार्ट रिवाइव कर सकता है। परंतु इस प्रयोग में 60% हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया था, केवल 40% ही बचा था। जिसमें तीन अवरोध थे। सर्जन को डर था कि ऑपरेशन के बाद यदि बचा हुआ हृदय सक्रिय नहीं हुआ तो जान चली जाएगी।
प्रश्न 2– ‘किताबों वाले कमरे’ में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी?
उत्तर – किताबों वाले कमरे में रहने के पीछे लेखक के मन में पुस्तकों का वह संकलन था जो लेखक ने बचपन से लेकर आज तक संकलित था। जब उन्हें अस्पताल से घर लाया गया और डॉक्टर ने लेखक को बिना हिले-डुले बिस्तर पर लेटे रहने की हिदायत दी तो लेखक ने इन्हीं किताबों के मध्य रहने का निर्णय लिया तो उन्होंने ज़िद की कि उन्हें ‘किताबों वाले कमरे’ में ही रखा जाए ताकि वे अपने आपको उन किताबों के साथ जुड़ा हुआ अनुभव कर सकें।
उनके प्राण इन हजारों किताबों में बसे हुए थे जो पिछले चालीस -पचास बरस में धीरे-धीरे जमा होती गई थी। इन किताबों के बीच लेखक अपने आपको अकेला महसूस नहीं करता था उसे किताबों को देखकर संतोष होता था।
प्रश्न 3– लेखक के घर कौन-कौन सी पत्रिकाएँ आतीं थी?
उत्तर – लेखक के घर में अनेक पत्रिकाएँ आती थीं। लेखक के पिता सरकारी नौकरी करते हुए बहुत अच्छा पैसा कमा रहे थे किंतु उन्होंने गांधी जी के आह्वान पर नौकरी छोड़ दी, इससे घर में आर्थिक संकट उठ खड़ा हुआ। इसके बावजूद भी लेखक के घर में कई पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। इनमें आर्यमित्र साप्ताहिक, वेदोदम, सरस्वती, गृहिणी प्रमुख थीं, इसके अलावा दो बाल पत्रिकाएँ बालसखा और चमचम भी नियमित रूप से आती थीं।
प्रश्न 4– लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे लगा?
उत्तर – लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक बचपन से ही था। उसके घर में कई पुस्तकें आती थीं। लेखक के पिता नियमित रूप से पत्र पत्रिकाएँ मँगवाते थे। लेखक के लिए
खासतौर पर दो बाल पत्रिकाएँ बालसखा और चमचम आती थीं। इनमें राजकुमार और दानवों और परियों आदि की कहानियाँ और रेखाचित्र होते थे। इससे लेखक को पत्रिकाएँ पढ़ने का शौक लग गया। पाँचवीं कक्षा में प्रथम आने पर अंग्रेज़ी की दो किताबें उसे इनाम में मिली तो पिताजी ने अलमारी के एक खाने से अपनी चीज़ें हटाकर जगह बनाई और
लेखक की दोनों किताबें उस खाने में रखकर कहा, आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का, यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है। लेखक के पिता जी ने किताबों को सहेजकर रखने की प्रेरणा दी, यहाँ से लेखक को किताबें सहजने का शौक लगा और लेखक की लाइब्रेरी शुरू हुई थी, जो आज बढ़ते-बढ़ते एक बहुत बड़े कमरे में बदल गई थी।
प्रश्न 5– माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों चिंतित रहती थी?
उत्तर – माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर इसलिए चिंतित रहती थी क्योंकि लेखक स्कूली किताबों से अधिक, अतिरिक्त किताबें पढ़ता था। वह कक्षा की किताबें नहीं पढ़ता था, माँ को चिंता थी कि कहीं वह साधु बनकर घर से भाग ना जाए। उनका मानना था कि जीवन में यही पढ़ाई काम आएगी ।माँ को यह चिंता लगी रहती थी कि वह अपनी कक्षा में पास कैसे होगा?
प्रश्न 6– स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नई दुनिया के द्वार खोल दिए?
उत्तर – स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने लेखक के लिए नई दुनिया के द्वार खोल दिए। एक पुस्तक में पक्षियों की जातियों व बोलियों के बारे में जानकारी थी तो दूसरी ‘ट्रस्टी द रग’ में पानी के जहाज़ों की कथाएँ थी। जहाज़ कितने प्रकार के होते हैं, कौन-कौन-सा माल लादकर ले जाते हैं, कहाँ से लाते हैं, कहाँ जाते है? आदि की जानकारी भरी पड़ी थी।
इन दोनों किताबों ने लेखक को पढ़ने के लिए प्रेरित किया, जिससे उसका पढ़ने का शौक बढ़ता चला गया। इस प्रकार स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने लेखक के लिए नई दुनिया के द्वार खोल दिए।
प्रश्न 7– ‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है’- पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली?
उत्तर –‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है’- पिता के इस कथन से लेखक को पुस्तकें संकलित करने की प्रेरणा मिली। यहाँ से आरंभ हुई उस बच्चे की लाइब्रेरी, बच्चा किशोर हुआ स्कूल से कॉलेज, कॉलेज से यूनिवर्सिटी गया, डॉक्टरेट हासिल की, यूनिवर्सिटी में अध्यापन किया।
अध्यापन छोड़कर इलाहाबाद से मुंबई आया, संपादन किया और उसी अनुपात में अपनी लाइब्रेरी का विस्तार करता गया। किताबें पढ़ने का शौक तो थ ही, किताबें इकट्ठी करने की सनक भी सवार हो गई। बचपन के अनुभव तथा पिता के कथन की प्रेरणा से उन्होंने घरेलू लाइब्रेरी को स्थापित किया।
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प्रश्न 8– लेखक द्वारा पहली पुस्तक खरीदने की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – लेखक इंटरमीडिएट पास करके बी ए की पाठ्य पुस्तकें लेने बुक शॉप पर गया था, वहीं उसने थिएटर पर देवदास फ़िल्म लगी देखी। लेखक की माँ को सिनेमा देखना बिल्कुल पसंद नहीं था इसलिए उसने कभी सिनेमा का ज़िक्र नहीं किया। उस फ़िल्म का एक गाना ‘दुख के दिन अब बीतत नाही’ वह अक्सर गुनगुनाया करता।
माँ ने जब यह गीत सुना तो बेटे से कहा कि तुम निराश मत हो दुख के दिन अवश्य बीत जाएँगे। जब माँ को पता चला कि यह फ़िल्म का गाना है तो उन्होंने कहा कि जाओ फ़िल्म देखो और दो रुपये दे दिए।फ़िल्म देखने से पहले लेखक अपनी परिचित किताब की दुकान पर चला गया। जहाँ उसे देवदास नामक किताब दिखाई दी और उसने दस आने में देवदास खरीदी और बाकी छह आने माँ को दे दिए। इस तरह लेखक द्वारा अपने पैसों से खरीदी गई यह पहली साहित्यिक पुस्तक थी।
प्रश्न 9- इन कृतियों के बीच अपने को कितना भरा-भरा महसूस करता हूँ – आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – लेखक पुस्तकों से ही बातें किया करता था, उनमें ही लेखक के प्राण बसते थे । किताबें लेखक की सुख-दुख की साथी थीं। कई बार दुख के क्षणों में इन किताबों ने लेखक का साथ दिया था। किताबें लेखक की ऐसी मित्र थीं जिन्हें देखकर लेखक को हिम्मत मिला करती थी। किताबों से लेखक का आत्मीय संबंध था।
बीमारी के दिनों में जब डॉक्टर ने लेखक को बिना हिले-डुले बिस्तर पर लेटे रहने की हिदायत दी तो लेखक ने इन्हीं किताबों के मध्य रहने का निर्णय लिया। इनके मध्य वह स्वयं को अकेला महसूस नहीं करता था।लेखक के अनुसार जिस तरह बचपन में पढ़ी गई कहानियों में राजा के प्राण, उसके शरीर में नहीं बल्कि तोते में रहते थे, उसी तरह लेखक को भी लगता था कि उसके प्राण तो शरीर से निकलकर उसकी जमा की हुई हज़ारों पुस्तकों में बसे हुए हैं ।
इन किताबों के बीच लेखक अपने आपको अकेला महसूस नहीं करता था उसे किताबों को देखकर संतोष होता था।
स्वमूल्यांकन हेतु प्रश्न
प्रश्न 1- पाठ के आधार पर लेखक के प्रारंभिक जीवन का वर्णन कीजिए।
प्रश्न 2- लेखक की लाइब्रेरी में किन लेखकों की पुस्तकें थीं?
प्रश्न 3- लेखक के मन में यह विचार क्यों आया कि उन्हें पुस्तकों वाले कमरे में रखा जाए?
प्रश्न 4- अपनी एकत्र की पुस्तकों में लेखक को कौन -सी पुस्तक सर्वप्रिय थी और क्यों?
प्रश्न 5- लेखक ने फ़िल्म न देखकर पुस्तक क्यों ख़रीदी?
प्रश्न 6- मराठी के प्रसिद्ध कवि ने भारती को क्या कहा ?
प्रश्न 7- लेखक के बाल्यकाल में कौन -सा आंदोलन चल रहा था?
प्रश्न 8- ‘पुस्तकें लेखक को समृद्ध बनाती हैं’। इस कथन की समीक्षा करते हुए बताइए कि लेखक को पुस्तक संग्रह करने की आदत कैसे पड़ी?
प्रश्न 9- क्या पुस्तकें वास्तव में हमारे लिए एक नई दुनिया का द्वार खोलती हैं? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 10- प्रस्तुत पाठ के माध्यम से लेखक ने विद्यार्थियों को क्या प्रेरणा दी है ?
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