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Laghu Kathayen ( laghukath Sangrah – Manjusha ) Part -1

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Manjusha

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You May Like –  laghu kathayen ( लघुकथा संग्रह नवधा से कुछ लघकथाएँ)                         

                                                               क्षमा

       शिष्य को स्वयं पर और अपने ज्ञान पर घमंड हो गया, शिष्य की उद्दंडता, असहिष्णुता से परेशान होकर गुरु ने शिष्य को सही मार्ग पर लाने का निश्चय किया। अगले दिन गुरु जी ने शिष्य को बुलाया और कहा ˝ मैं रामचरितमानस की चैपाई बोलता हूँ तुम लिखते जाओ। ˝ शिष्य ने गर्व से गर्दन ऊॅंची की और लेखनी लेकर लिखना आरंभ किया। गुरु ने जान बूझकर गलत चैपाई बोली और शिष्य ने गलत ही लिखी। गुरु ने गुस्से से शिष्य को डाँटा ˝ तुमने यह चैपाई गलत लिखी है, इतना काग़ज़ , परिश्रम और समय बरबाद कर दिया तुमने। ˝ बेचारे शिष्य को बहुत गुस्सा आया पर चुप रह गया।

गुरु जी ने पुनः बोलना आरंभ किया और दो चैपाई शुद्ध बोलने के बाद , तीसरी चैपाई पुनः अशुद्ध लिखवा दी और शिष्य को फिर से डाँटने लगे ˝ मूर्ख देखते भी नहीं हो, अशुद्ध चैपाई लिखकर समय बरबाद कर रहे हो। ˝ क्र्रुद्ध शिष्य ने संयम से काम लिया , गुरु के प्रति श्रद्धा ने उसे रोक लिया।

यही क्रम चलता रहा, गुरु जी गलत चैपाई बोलते, शिष्य गलत लिखता और गुरु जी शिष्य को बुरा भला कहते। शिष्य की सहनशीलता जवाब दे चुकी थी, क्रोध में भरकर बोला ˝ गुरु जी, मुझे आपसे कुछ नहीं सीखना। ˝

गुरु जी हॅंसकर बोले ˝  वत्स ईश्वर तो मनुष्य की सैंकड़ों भूल क्षमा करता है , तुम तो ज़रा से में ही खीझ गए। ˝

शिष्य ने वस्तु स्थिति समझी और गुरु के चरण पकड़कर प्रतिज्ञा की कि भविष्य में कभी भी घमंड नहीं करेगा और ना ही संयम खोकर क्रोधित होगा।

 

 

                                                              परिश्रम का फल

    सामने पड़ी खाली बंजर ज़मीन जैसे चुनौती दे रही थी ˝ है कोई माँ का लाल जो मुझे बंजर से ऊर्वर बनाने की क्षमता रखता है।˝ उस ज़मीन के आस- पास रहने वाले लोगों में से कोई चुनौती सुनता, कोई नहीं सुनता और कोई सुनकर भी अनसुनी कर देता लेकिन सामने के बड़े पीपल के पेड़ के नीचे बैठा बूढ़ा किसान दिन-रात यही सोचा करता कि अगर ज़मीन खेती के लायक हो जाए तो ना जाने कितनों का उदर पोषण होगा इससे।

  दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए, उसने घर वालों को आवाज़ लगाई। आवाज़ सुनकर उसके लड़के , पोते, बहुएँ घर के बाहर निकल आए और बोले ˝ कहिए बाबा ,क्या आज्ञा है ? ˝

वृद्ध ने कहा ˝देखो बच्चों सामने वाली यह बंजर ज़मीन अगर ऊर्वर हो जाए तो हम सबकी ज़िंदगी कितनी आसान हो जाएगी । एक, दो…….दिन……महीने…….वर्ष……ही क्यों ना लग जाएँ पर हम तब तक चैन नहीं लेंगे जब तक इस ज़मीन को ऊर्वर ना बना लें। ˝

बाबा की उत्साह भरी बातें सुनकर सबने एक स्वर में कहा ˝ हाँ ,हाँ बाबा हम सब मिलकर इस ज़मीन को अवश्य ही ऊर्वर बना सकते हैं। ˝

˝ तो फिर विलंब क्यों करते हो, चलो अभी जुट जाओ काम में ˝ वृद्ध ने सफलता की कामना करते हुए कहा।

सभी सदस्य फावड़ा, कुदाल, खुरपा, तसले और टोकरियाँ लेकर काम में जुट गए।

बंजर ज़मीन में पत्थर ही पत्थर भरे पड़े थे, सबने मिलकर चुन-चुनकर पत्थर निकाले तो पत्थरों का बड़ा पहाड़ खड़ा हो गया। सब निराश हो गए कि अब पत्थरों के इस पहाड़ को कहाँ डाला जाए।बच्चों को निराश देखकर, वृद्ध दौड़ा-दौड़ा आया और बोला ˝ थोड़ी सी मेहनत और करो, पास ही बहुत गहरी खाई है, खाई में तो ऐसे ऐसे कई पहाड़ समा जाएँगे।   ˝

परिवार के सभी सदस्य दुगुने उत्साह से कार्य में जुट गए और देखते ही देखते कुछ ही महीनों में बंजर ज़मीन पर हरी-भरी फसल लहलहाने लगी।

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                                                           अहंकार  

      वायु , अग्नि, नदी, सूर्य चारों को अपनी शक्ति पर अहंकार हो गया और चारो स्वयं को शक्तिशाली बताने लगे। चारों के बीच झगड़ा आरंभ हो गया। चारों ने निर्णय लिया कि जंगल में खड़े वृक्ष का जीवन समाप्त किया जाए। चारो वृक्ष के पास पहुँचे और उसे धमकाने लगे। हवा ने कहा मैं तुम्हें उखाड़ फेकूँगी, अग्नि ने धमकी दी मैं तुम्हे जला दूँगी,

नदी ने कहा मैं तुम्हें अपने जल के साथ बहा ले जाऊॅंगी, सूरज ने कहा मैं तुम्हे सुखा दूँगा। 

    वृक्ष बेचारा बहुत घबरा गया, तभी धरा ने कहा ˝ घबराओ मत पुत्र जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ कोई तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। ˝ और सचमुच धरती माँ की छत्र छाया में वृक्ष निरंतर बढ़ता रहा। वायु , अग्नि, नदी, सूर्य चारों उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए।

 

                                                    साथ और परित्याग 

ईश्वर  ने सृष्टि की रचना की, स्त्री को बनाया, साथ ही लज्जा और सुंदरता को भी पृथ्वी पर भेजा। सुंदरता चंचल थी , नादान भी थी और लज्जा विनम्र होने के साथ-साथ समझदार भी थी।

ईश्वर ने दोनो को समझाया ˝ तुम दोनों एक दूसरे की रक्षा करना, दोनों हमेशा साथ रहना। ˝

पर सुंदरता कहाँ सुनने वाली थी, लज्जा को हमेशा डाँटती और कहती ˝ मैं संसार में सुख भोगने आई हूँ और तुम हमेशा मेरा  रास्ता रोका करती हो, क्यों ?  ˝

˝बहन प्रभु ने मुझे तुम्हारी रक्षा के लिए भेजा है। ˝ लज्जा सिर झुकाकर हमेशा सुंदरता को याद दिलाती।

सुंदरता को  लज्जा की उपदेश भरी बातें कभी अच्छी ना लगती। वह अक्सर सुंदरता को झिड़कती रहती।

 ˝ मैं अपनी रक्षा स्वयं कर सकती हूँ, मुझे तुम्हारी ज़रुरत नहीं है। ˝ और ऐसी कड़वी बातें कहकर संदरता ने लज्जा को भगा दिया।

अब सुंदरता आज़ाद थी और  सुख पाने की यहाँ- वहाँ घूमती फिरती। इसी कारण उसकी शक्ति घटने लगी। अपना सारा सौंदर्य खोकर जब वह अस्तित्वहीन हो गई तब उसे अपनी भूल का अहसास हुआ, अंत में उसने लज्जा को दिल से अपनाया और तब से अब तक जब जब सुंदरता ,लज्जा का परित्याग कर स्वच्छंद विचरण करती है उसे पछताना पड़ता है।

 

                                                             कसौटी

राजा जयदेव सिंह ने अपने राज्य में एक विज्ञप्ति जारी करवाई जिसने पूरे राज्य में हलचल मचा दी। विज्ञप्ति कुछ इस प्रकार थी कि राज्य का कोई भी व्यक्ति , महल के मुख्य  द्वार पर अपनी  कोई भी असुंदर वस्तु देकर , मनचाही सुंदर वस्तु प्राप्त कर सकता है। शर्त यह है कि वह आस्तिक हो और ईश्वर की सत्ता में पूरा विश्वास रखता हो, इस बात की जाँच महल के द्वार पर ही कर ली जाएगी।

बस फिर क्या था लोग उन वस्तुओं की सूची बनाने लगे जो उन्हें असुंदर और अरुचिकर प्रतीत होती थीं।

निश्चित तिथि पर महल के द्वार पर लंबी-लंबी लाईनें लगने लगीं। लोग बैलगाड़ी, घोड़ों, गधों पर अपना अपना सामान लादे बेसब्री से अपना नंबर आने का इंतज़ार कर रहे थे। सभी के चेहरों पर गज़ब की चमक थी। इधर लोग अपना- अपना सामान बदलने में लगे थे , उधर राजा वेश बदलकर राज्य में देखने निकला कि कोई शेष तो नहीं रह गया।

तभी राजा ने देखा एक गरीब किसान आराम से अपनी मस्ती में आनंदपूर्वक अपनी चारपाई पर पड़ा है।

पास जाकर राजा ने उससे पूछा ˝ तात  तुमने राजा का आदेश नहीं सुना क्या ? तुम महल के द्वार पर क्यों नहीं गए, तुम्हारे पास भी जो कुरूप् और अरूचिकर वस्तुएँ हैं, उन्हें बदलकर सुंदर वस्तुएँ ले आते। जानते नहीं कि अच्छाई और सुंदरता की वृद्धि से सम्मान बढ़ता है। ˝

किसान बड़ी नम्रता से मुस्कुराकर बोला ˝ सुना तो था पर मुझे तो ईश्वर की बनाई इस सृष्टि  में कभी कुछ असुंदर लगा ही नहीं। सभी कुछ ईश्वर ने बनाया है, सबमें उसकी सत्ता व्याप्त है तो असुंदर के लिए स्थान ही कहाँ रह जाता है।मैं ईश्वर की बनाई किसी भी वस्तु को असुंदर कहने का साहस कैसे कर सकता हूँ । ˝

    बाद में पता चला कि राजा की उस कसौटी पर केवल वह गरीब किसान ही खरा उतरा और बाकि सबको निराश होकर खाली हाथ ही लौटना पड़ा, केवल वह किसान ही था विश्व विजयी सच्चा दार्शनिक , जो संसार की कुरुप से कुरुप वस्तु में भी सौंदर्य के दर्शन कर रहा था।

 

 

 

 

 

 

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