Madhu kalash.

कुछ सीखें / खुद को खर्च करें / ताकि दुनिया आपको सर्च करे ।

Laghu katha Sangreh – Madhu Kalash Part – 2

1 min read
Madhu Kalash

Madhu Kalash

  

मधु कलश
Madhu Kalash

      

You May Like – विडियो – क़हानी पतंग

                                                          दृढ़ निश्चय

धरा पर आग लगी थी, आकाश में काली घटाएँ छाई हुईं थी, नीचे धरा की प्रचंड अग्नि को देख कर नन्हीं बूँद का हृदय विदीर्ण हो रहा था। दुखी हृदय से वह आकाश से उतरी और धरती की ओर चली , अग्नि की लपटें अट्टाहस लगाकर हॅंसी और बोलीं – नादान बूँद क्यों अपने अस्तित्व को नष्ट करने के लिए अग्रसर हो, अग्नि में भस्म होने के लिए दौड़ी चली आ रही हो?

             बॅूद भी अग्नि शांत करने का दुढ़ निश्चय मन में लिए, लक्ष्य की ओर बढ़ चुकी थीं। बॅूंदे अग्नि की विभत्सता देखकर मुस्कुराईं और शांत मन से अग्नि की लपटों में कूद पड़ीं। एक एक कर बूँदें , काले बादलों से झरतीं रहीं, बूँदों के झरने का ताँता नहीं टूटा, बारिश की झड़ी लग गई। बूँदें तब तक झरतीं रहीं तब तक अग्नि शांत नही हो गई, उसका नामो निशान तक नहीं मिट गया।

 

                                         सीख

 

                   धूल मिट्टी की आभा का नाम है और मिट्टी के साथ ही अच्छी भी लगती है। एक दिन ज़ोरों की आँधी चली और धरती की धूल आसमान पर छा गई। ज़मीन से उड़कर आसमान की ऊॅंचाई पर पहुँचकर धूल इतराने लगी, अपनी ऊॅंचाई पर बहुत घमंड होने लगा उसे। गर्व से इठलाकर वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकार सबको बताने लगी कि आज मेरे जितना ऊँचा कोई भी नहीं है, जल, थल, नभ और चारों दिशाओं में मैं ही मैं व्याप्त हूँ , सब मिलकर मेरी पूजा अर्चना करो।

    जल, थल और नभ सभी ने उसे समझाने का प्रयास किया कि इस प्रकार घमंड करना किसी को भी षोभा नहीं देता पर धूल कुटिलता से मुस्कुराई और सभी की बातों को अनसुना कर गर्व से इठलाती हुई आगे चल दी। बादल ने भी धूल की गर्वोक्ति सुनी, धूल की भूल पर थोड़ा सा अट्टाहस किया और अपनी धाराएँ खोल दीं। देखते ही देखते धूल का सारा दर्प चूर-चूर हो गया और आसमान पर छाई सारी धूल पानी के साथ उतर कर धरती पर पर आ गई। सारी दिशाएँ  साफ हो गईं, कहीं भी धूल का नामों निशान ना रहा।

   पानी के साथ बहती धूल से धरा ने मुस्कुराकर पूछा – रेणुके ! तुम्हें बहुत घमंड हो गया था अपनी क्षणिक ऊॅंचाई पर , अब तुम अपने सही स्थान पर पहुँच गई हो पुत्री। अपने उत्थान और पतन से तुमने क्या सीखा रेणुके ?

धूल अपनी गलती पर षर्मिंदगी से सिर झुकाकर धीमी आवाज़ में कहा- माता अपनी उन्नति औेर पतन से मुझे बहुत बड़ी सीख मिली है , क्षणिक उन्नति पाकर हमें गर्व नहीं करना चाहिए, गर्व करने वाले का पतन अवष्य होता है।

 

                          जैसी करनी वैसी भरनी

 

अपने चारों ओर लाल, पीले, हरे नीले, सफेद आदि सुंदर और आकर्षक रंगों को देख , काला रंग मन विदीर्ण हुआ जा रहा था। दुखी मन से ईश्वर की शरण में गया और बोला – हे भगवन् आपने सुंदर सुंदर आकर्षक रंग बनाए पर मेरे हिस्से में ही श्याम वर्ण क्यों ? मैंने कौन-सा गुनाह किया है भगवन कि आपने मुझे श्याम वर्ण दिया, मुझे सुंदर और आकर्षक क्यों नहीं बनाया ? यह सरासर अन्याय है। हर कोई मुझे देखकर मुँह मोड़ लेता है , कोई मुझे पसंद नहीं करता भगवन।

 विधाता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- वत्स मैनें संसार में किसी को कोई रंग प्रदान नहीं किया। सभी रंग सूर्य की किरणों में समाए हैं। जो वस्तु उन रंगों को खींचकर अपनें में जितना पचा लेती है और जिस क्षमता से उसे विकीर्ण करती है , वैसा ही रंग उसे प्राप्त हो जाता है। तुम सिर्फ़ लेना जानते हो ,तुम्हें देना नहीं आता। तुम सब रंगों को अपने भीतर भरते रहते हो, बाहर निकालने का नाम ही नहीं लेते। इस स्थिति में तो कालिमा ही तुम्हारे हिस्से आएगी। इसके लिए मुझे दोषी क्यों ठहरा रहे हो

You May Like – Laghu katha Sangreh – Madhu Kalash Part – 1

 

                                                   सोच अपनी अपनी

एक शिष्य अपने गुरु के साथ, सायंकालीन सैर के लिए नदी के किनारे गया। डूबते हुए सूर्य को देख गुरु ने प्रणाम किया और विनम्रता भरे स्वर में प्रार्थना की कि हे सूर्य देव मेरा भी भला करो और मेरे साथ सारे संसार का भला करो। मुझे इतनी शक्ति, इतनी सामर्थ्य प्रदान करो कि मै इस संसार के काम आ सकूँ।

शिष्य अपने गुरु को प्रार्थना करते देख हॅंस रहा था , उसने मुस्कुराते हुए कहा,‘‘ गुरुदेव सूर्य तो स्वयं डूब रहा है, वह आपको शक्ति कहाँ से देगा।’’

गुरु ने शांत मुद्रा में जवाब दिया – वत्स सूरज डूब नहीं रहा, नई शक्ति लाने की तैयारी कर रहा है, कल सुबह एक नई ऊर्जा के साथ फिर सूर्योदय होगा।

 

                                                         मित्रता      

गृहणी ने दूध के पात्र को , जल के पात्र के पास रखा तो दूध के मन में जल से मित्रता करने का विचार आया। दूध ने जल से कहा ˝ बंधु मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूँ।˝

जल ने कहा ˝ भाई चाहता तो मैं भी हूँ पर विश्वास कैसे करुँ कि अग्नि परीक्षा के समय भी तुम मेरा साथ दोगे। ˝

˝विश्वास करो मित्र, मैं हमेशा तुम्हारा साथ दूँगा, अभी तक मेरा कोई मित्र नहीं है। अभी तक मेरा कोई मित्र नहीं है, तुम मेरी मित्रता स्वीकार करो, तुम मेरे एकमात्र मित्र होगे , मैं तुम्हारा साथ कैसे छोड़ सकता हूँ।˝

दोनों में मित्रता हुई, ऐसी मित्रता कि दोनों को अलग अलग करना भी असंभव है।

गृहणी आई उसने अग्नि प्रज्वलित की और दूध को चूल्हे पर चढ़ा दिया। पानी भाप बनकर उड़ने लगा, मित्र को अलग होते देख दूध ने उफ़ान मारा और बर्तन से बाहर निकलने को तैयार हो गया। गृहणी की नज़र पड़ी उसने जल्दी से आँच धीमी की और दूध पर जल के कुछ छींटे मारे, जल के छींटे पड़ते ही दूध शांत हो गया, मित्र को दिया वचन जो निभाना था उसे।

अग्नि नित्य परीक्षा लेकर पानी को जलाती है पर दूध मित्र की रक्षा के लिए अपने अपने अस्तित्व की चिंता ना करते हुए स्वयं जलने के लिए प्रस्तुत हो जाता है।

 

                                                                किस्मत

आम के पेड़ पर बैठी कोयल और चींटी में दोस्ती हो गई। चींटी स्वभाव से ही परिश्रमी और आत्मविश्वास से भरी , कोयल आलसी और आराम तलब , दोनों का विरोधी स्वभाव । पावस ऋतु आने वाली थी, समझदार चींटी आदतानुसार अपने घर में अन्न के दाने एकत्रित करने लगी। कोयल को समझाने के उद्देश्य से बोली, ” बहन पावस ऋतु आने वाली है, भविष्य की भी थोड़ी चिंता करो ।’’

”आनंद तो मैं अपनी किस्मत में लिखवाकर आई हूँ , तुम्हारी किस्मत में परिश्रम करना लिखा है सो तुम बोझ ढोती रहो ।’’ हॅंसकर , खिलखिलाकर कोयल बोली ।

कुछ दिन बीते और फिर हुआ पावस ऋतु का आगमन हुआ, झमाझम वर्षा हुई, चारों ओर पानी ही पानी था । चींटी अपने घर में आराम से बैठी, अपने जमा किए हुए अन्न का भेग करती हुई, बरसते पानी की बूँदों का पूरा आनंद ले रही थी और बाहर कोयल ठंड में सिकुड़ी हुई, भूख से पीड़ित चींटी के द्वार पर आकर बोली,” बहन कुछ खाने को दो ना ।’’

” क्यों भूखे रहना क्या तुम्हारी किस्मत में नहीं लिखा है।’’ चींटी ने मुस्कुराकर जवाब दिया ।

 

 

 

 1,650 total views,  2 views today

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright ©2022, All rights reserved. | Newsphere by AF themes.
error: Content is protected !!