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kahani – Kuchh bandhan ese hote hain, क़हानी -कुछ बंधन ऐसे होते हैं

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बंधन

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 बंधन

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                                                                     “कुछ बंधन ऐसे होते हैं “

कुछ रिश्ते ऐसे भी होते है जो ईश्वर के बनाए हुए नहीं होते,कभी-कभी हम यूँ ही अनजाने बंधन में बंध जाते हैं। एक ऐसे बंधन में जिसमें बंधकर दिल को सुकून मिलता है। ऐसे ही अनजाने बंधन की क़हानी है ये।

यह एक सच्ची क़हानी है। क़हानी के पात्र इस क़हानी को सच के धरातल पर जी रहें हैं। इस कहानी में तीन सदस्य हैं माँ और दो बेटियाँ, तीनों के बीच ईश्वर का दिया, ईश्वर का बनाया कोई रिश्ता नहीं है फिर भी तीनों अटूट रिश्तों की डोर से , एक अनजाने बंधन में बंधे हैं। सच ही  है कि कुछ बंधन ऐसे होते हैं जो बिन बाँधे बन जाते हैं।

पलक की पायल की रुनझुन और हाथों के चूड़े की खनक पूरे घर में गूँज रही थी। मेहंदी लगी हथेलियों से उसने मेरी आँखें बंद की तो आँसू की दो बूंदें उसकी हथेलियों में आ गई।

“मम्मी रो रही हैं , आप ? आप रोएँगी तो मैं शादी कैंसिल कर दूँगी।”

“शादी कैंसिल नहीं हो सकती दीदी, मुझे अपना लहँगा पहन कर डाँस करना है और आपके जाने के बाद मम्मी की प्रिन्सेस बनकर रहना है, इकलौती प्रिन्सेस।”

“महक मैं मज़ाक के मूड में बिल्कुल नहीं हूँ तुम जाओ यहाँ से, मैं मम्मी के साथ थोड़ा टाइम अकेले में बिताना चाहती हूँ।” पलक मेरी गोद में सिर रखकर लेट गई।

“मम्मी आप उस दिन मुझे अनाथ आश्रम से ना लाती, मुझे गोद ना लेती तो आज मैं ना जाने कहाँ होती। मेरी जिंदगी ना जाने कैसी होती।”

“पलक तुम्हे मेरे पास आना ही था बेटा, तुम मेरी हो ।”

“माँ आपने सिर्फ़ महक को ही चुना था अपने लिए, उसे तो अपना ही लिया था आपने, पर मैं तो चिपककर यूँ ही आ गई। अगर उस दिन आप मुझे वहीं अनाथ आश्रम में छोड़ देती तो मेरा क्या होता वहाँ? मेरे गले में हाथ डालकर अचानक पलक सुबक-सुबक कर रोने लगी। माँ अगर मैं ना कहती तो आप मुझे वही अनाथ आश्रम में छोड़ आती ।”

“नहीं बेटा तुम दोनों मेरी जान हो, तुम हो तो मैं हूँ। तुम दोनों को मेरी ज़िंदगी में, मेरे घर आँगन में आना ही था।” “मम्मा आप माँ नहीं, भगवान हो मेरे लिए, आपने मेरी ज़िंदगी का रुख को बदल दिया।अनाथालय की वो काली लंबी रातें, मैं कभी नहीं भूल सकती। वो मोटी वाली आंटी का डंडा पटक-पटककर चिल्लाना और हम छोटे-छोटे बच्चों से ज़बरदस्ती बड़े-बड़े काम करवाना ।अगर मैं वहीं रहती तो आज ज़िंदा नहीं होती माँ, आपने मुझे जन्म नहीं दिया पर ये ज़िंदगी आप ही की दी हुई है, थैंक यू माँ मेरी माँ बनने के लिए। आपने मुझे सपने देखने का अधिकार दिया, मेरे सपनों को पूरा किया। छोटी-सी कमज़ोर पलक को, ऊँची उड़ान भरने के लिए मजबूत पंख दिए,इतने मजबूर कि अब मैं अकेले उड़ान भरने के लिए तैयार हूँ ।”

बहुत देर तक हम दोनों एक दूसरे से चिपककर ऐसे बैठे रहे जैसे मन में कहीं कोई डर था कि एक दूसरे से अलग हुए तो बहुत दूर हो जाएँगे। थोड़ी देर बाद महसूस हुआ कि पलक मेरी गोद में सिर रखे-रखे सो गई है। उसका सिर सहलाते सहलाते मैं अतीत की गलियों में भटकने लगी। यादों की पोटली में से एक-एक कर भूली-बिसरी यादें सामने आने लगीं। मुझे जन्म देने वाले माँ बाप कौन हैं? मुझे आज तक नहीं पता चला। मुझे पालने वाली चंदा माँ ने मुझे मेरी पहचान दी। आज मैं जो हूँ और मैं, मेरा वजूद सिर्फ़ और सिर्फ़ चंदा माँ की वजह से है। कुछ समय तक तो मैं यही सोचती रही कि  मैं कौन हूँ, मेरा वजूद क्या है ,मेरे असली माँ बाबा कौन है, मैं आज़ाद मार्केट के चौराहे पर कैसे पहुँची? क्या मेरे माँ बाबा ने जानबूझकर मुझे चौराहे पर छोड़ दिया था? या गलती से मैं उनसे बिछड़ गई थी, अगर गलती से बिछड़ गई थी तो उन्होंने मुझे ढूँढा क्यों नहीं? चंदा मामा ने मुझे बताया की दिवाली से दो दिन पहले 19 नवंबर को मैं उन्हें आज़ाद मार्केट के चौराहे पर रोती हुई मिली थी। थाने जाकर रिपोर्ट लिखवाई, पुलिस ने छानबीन की, बहुत कोशिश की पता लगाने की पर पता नहीं चल पाया कि मैं चौराहे पर क्यों और कैसे पहुँची ? जब मुझे अनाथ आश्रम भेजने की बात चली तो मैं चंदा माँ का पल्लू पकड़कर उनसे लिपट गई। चंदा माँ बताती थी कि मैं कई महीनों तक उनका पल्लू पकड़े-पकड़े उनके पीछे-पीछे घूमती थी। शायद डरती थी कि मुझे छोड़कर कहीं चली ना जाएँ चंदा मामा। मेरी सही उम्र तो चंदा माँ को भी नहीं पता थी पर मैं इतनी बड़ी भी नहीं थी कि मुझे माँ-बाबा का नाम घर का पता या अपने बारे में कुछ पता हो। चंदा माँ बताती हैं कि बस मैं अपना नाम ही बता पाती थी ‘मिष्टी’। माँ का नाम ‘माँ’ और बाबा का नाम ‘बाबा’ बताती  थी मैं।    मेरी यादों की पोटली तो सिर्फ़ चंदा माँ की यादों से ही भरी हुई थी, उस पोटली में इतनी सारी यादें थीं कि छलक-छलक कर आए दिन बाहर आ जाती थीं। चंदा माँ, मेरी चंदा माँ, जो मेरी कुछ ना होते हुए भी मेरी सब कुछ थीं। जिन्होंने मुझे जन्म देने के अलावा सब कुछ दिया। मेरा रोम-रोम उनका ऋणी है। चंदा माँ अकेली रहती थीं, मैंने उनके बारे में कभी ज़्यादा जाना नहीं, जानना भी नहीं चाहा इसलिए कभी पूछा भी नहीं। मैं संतुष्ट थी कि वे सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी चंदा माँ हैं और उन्हीं के पदचिन्हों पर चलते हुए, मैंने भी अकेले ही ज़िंदगी जीने का निश्चय किया, शादी ना करने का फैसला कर लिया। मैं अपनी ज़िंदगी, पूरी आज़ादी से चंदा माँ की तरह अकेले ही जीना चाहती थी।  

(पलक के पायल की रुनझुन और हाथों के चूड़े की खनक पूरे घर में गूँज रही थी, पलक भावुक हो गई और अपने बचपन की अनाथ आश्रम की बातें याद करने लगी। पलक की बातें सुनकर निशा भी पलक, महक के बचपन की यादों में खो गई।)

मुझे ऑफिस के काम से चंडीगढ़ जाना पड़ा जहाँ अपनी दोस्त अनुपमा के यहाँ रही। अनुपमा के घर के पास ही एक अनाथ आश्रम था, जहाँ मेरे जीवन का नया अध्याय आरंभ होने का इंतजार कर रहा था। कोई योजना नहीं थी सोचा भी नहीं था पर परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनीं कि मुझे अनाथ आश्रम में जाने का मौका मिला और वहाँ मैं मिली छोटे-बड़े प्यारे- प्यारे बहुत सारे बच्चो से। छह महीने की एक प्यारी-सी बच्ची भी थी वहाँ, जो लगातार रोए जा रही थी, पूछने पर पता चला कि उसे कई दिनों से बुखार था। अनाथ आश्रम में सबसे छोटी थी वह। मैंने गौर किया तो पाया कि लड़के तो तीन ही थे बाकी सब लड़कियाँ ही थीं। वहाँ तीन-चार घंटे बिताए उन बच्चों के साथ, बहुत सारी बातें की, कहानियाँ सुनी और सुनाई। जब घर लौटने का समय आया तो मन ही नहीं कर रहा था वापस जाने का, पैर ही नहीं उठा रहे थे घर की ओर। घर वापस आकर देर रात तक सोचती रही अनाथ आश्रम के बच्चों के बारे में, उस छोटी बच्ची के बारे में जो बीमार थी और लगातार रोए जा रही थी। मैं तो वापस आ गई थी पर कहीं कुछ था, जो लगातार अपनी ओर खींच रहा था। सारी रात सो नहीं पाई, लग रहा था कि अनाथ आश्रम में मेरा कुछ छूट गया है। बच्चे तो बहुत सारे थे अनाथ आश्रम में पर वो छोटी बच्ची उसे मैं भूल ही नहीं पा रही थी ,जैसे वो चिपक कर मेरे साथ आ गई थी। रात में मेरे साथ मेरे बिस्तर में मेरी चादर में मेरे साथ ही सोई।बहुत कोशिश की भूल जाऊँ पर कहीं कुछ था जो मुझे बाँधे हुए था। आँखें बंद करती तो उस बच्ची का चेहरा मेरे सामने आ जाता। अगले दिन मुझे चंडीगढ़ से वापस आना था पर नहीं आ पाई। अनुपमा से अपने मन की बात कही कि मैं छोटी बच्ची गोद लेना चाहती हूँ। अनुपमा ने मुझे भरोसा दिलाया कि जल्दी ही सारी फॉर्मैलिटीज पूरी कर दी जाएगी और बच्ची मेरी गोद में होगी।अगले दिन फिर से अपनी बेटी से मिलने का मन किया, अपनी खुशी अनाथालय के उन मासूम बच्चों के साथ बाँटना चाहती थी इसलिए मार्केट गई , बच्चों के लिए बहुत सारे खिलौने, खाने-पीने की चीजें खरीदी। शाम को अनाथ आश्रम पहुँची, बेटी का नाम मैं सोच चुकी थी महक। महक को गोद में लिया सब बच्चों के साथ बातें की, उन्हें कहानियाँ सुनाई सब बच्चे मेरे साथ घुल मिल गए थे। हँस बोल रहे थे पर एक लड़की उन सबसे दूर खड़ी मुझे एकटक देख रही थी, मैंने अपने पास बुलाने की बात करने की बहुत कोशिश की। पर वो मेरे पास आई ही नहीं, दीवार से चिपकी खड़ी घंटों से मुझे देख रही थी और उसके इस तरह देखने से मुझे बेचैनी होने लगी थी अजीब-सा आकर्षण था उस लड़की में पाँच-छह साल की रही होगी शायद। बड़ी बड़ी आँखें, गेहुँआ रंग, उसकी चुप्पी में बहुत कुछ छिपा था, बहुत कुछ छिपाए थी वह अपने अंदर। अनाथ आश्रम के सभी बच्चे घुलमिल गए थे ।दीदी, आंटी, मौसी, मैम सबने एक रिश्ता बना लिया था मुझसे। सब मेरे आस-पास थे पर वो लड़की दूर खड़ी मुझे देख रही थी। बहुत बुलाया उसे, खिलौने, चॉकलेट बहुत सारी चीजों का लालच भी दिया पर वो मेरे पास नहीं आई। रात होने को थी मुझे घर वापस जाना था और जाने से पहले मैं उस लड़की से मिलकर बात करना चाहती थी। अंत में मैं ही उसके पास गई, मेरे पास जाते ही वह दो कदम पीछे हट गई । मैंने अपना हाथ उसकी और बढ़ाया पर उसने अपने दोनों हाथ पीछे बाँध लिए। मैंने चॉकलेट उसकी और बढ़ाई तो उसने धीरे से कहा,’नहीं चाहिए।’ इन दो दिनों में पहली बार सुनी थी उसकी आवाज़, बहुत मीठी आवाज थी उसकी।

‘अरे तुम तो बोलती भी हो, और आवाज़  भी बहुत मीठी है।’ मैंने मुस्कुराकर कहा।

‘दीदी ये गाती भी बहुत अच्छा है’ पास खड़ा एक बच्चा बोला।

‘हम ही नहीं सुनाओगी गाना’

‘नहीं’

‘अच्छा ये गुड़िया देखो कितनी सुंदर है, बिल्कुल तुम्हारी तरह ये मैं तुम्हारे लिए ही लाई हूँ’ मैंने गुड़िया उसकी तरफ़  बढ़ाई’

‘नहीं चाहिए’

मैं परेशान थी कि चॉकलेट, खिलौनों का भी लालच नहीं है इसे, ‘फिर क्या चाहिए तुम्हें बेटा’

‘आप’ हमारे बीच सन्नाटा था मैं समझ ही नहीं पा रही थी क्या जवाब दूँ उसका?

‘मुझे आप चाहिए, मेरी मम्मी बनेंगी आप’

उसके सवाल ने मुझे झकझोर दिया और पता नहीं क्यों कैसे खुदबखुद मेरे मुँह से निकला ‘हाँ बेटा’ वो अनजान लड़की जो दो दिन से मेरे पास भी नहीं आई थी, अचानक मेरे गले में बाहें डालकर झूल गई और मुझे भी उसका इस तरह झूल जाना बुरा नहीं लगा। मुझे छोड़ ही नहीं रही थी, मैंने उसे भरोसा दिलवाया कि कल फिर आऊँगी मिलने ।

मेरी उँगली पकड़कर बाहर तक छोड़ने आई वो, मुझे खींचकर नीचे बैठने का इशारा किया। मैं नीचे बैठी तो प्यार से मेरे गालों पर किस करते हुए गुड नाइट कहकर बोली, ‘मम्मा मैं इंतज़ार करूँगी सुबह का, आप आएँगी ना।

‘हाँ बेटा मुझे तो आना ही है मेरी दो-दो बेटियाँ जो है यहाँ ,मुझे तो आना ही होगा।‘ उसके सिर पर हाथ फेरा उसे प्यार किया और भारी कदमों से घर वापस चली आई, रात भर सोचती रही कि कौन होंगे वो माँ बाप जो अपने दिल के टुकड़ों को ऐसे लावारिस छोड़ देते हैं ।

पलक और महक को अडॉप्ट करना मेरे जीवन का लक्ष्य बन गया था। अडॉप्शन में काफ़ी समय लगा, काफ़ी परेशानियाँ भी आईं। सबसे बड़ी परेशानी तो यही थी कि मैं गुड़गाँव में रहती थी। चंडीगढ़ तो मैं ऑफिस के काम से गयी थी। पलक और महक को मैं जल्दी से जल्दी अपने घर लाना चाहती थी तो चंडीगढ़ के मेयर से मिली और उनकी मदद से दोनों बच्चियाँ आसानी से मेरी गोद में आ गईँ। सोचा ही नहीं था कि मेरा घर-आँगन भी बच्चों की किलकारी, हँसी और खिलखिलाहट से कभी महकेगा। पलक बहुत ही समझदार थी उसके आने से ऐसा लगा ही नहीं कि उसे मैंने अडॉप्ट किया है। मैं कभी उदास होती और अपनी उदासी छिपाने की कोशिश करती तो मेरी परेशानी को भाँपकर, मुस्कुराकर कहती, ‘मम्मा परेशानी छुपाने की कोशिश मत कीजिए ,बताइए ना क्यों परेशान हैं आप? मैं जानती हूँ मैं आपकी परेशानी कम नहीं कर पाऊँगी, पर कह देने से मन का बोझ हल्का हो जाता है।’ समय जैसे पंख लगाकर उड़ रहा था पता ही नहीं चला कि हमारे माँ-बेटी के रिश्ते ने कब दोस्ती का रूप ले लिया। पलक और महक दोनों गुड़गाँव के एक नामी स्कूल में जाने लगीं। दोस्त रिश्तेदार कहते तुम बहुत लकी हो और मैं मुस्कुराकर कहती लकी तो मैं हूँ कि  पलक और महक जैसी बेटियाँ मेरे घर-आँगन में, मेरे जीवन में आईँ। पलक की आवाज़ जितनी मीठी है, बाते उससे भी ज्यादा मीठी करती है। सिंगर बनकर मेरा नाम रोशन करना चाहती है, बड़े मंच पर जाकर सारी दुनिया को बताना चाहती है कि वो अडॉप्टेड है, अडॉपटेड होने से कुछ नहीं होता। रिश्ते दिल से बनते हैं, ईश्वर के दिए रिश्तों की दुनिया से आगे भी एक खास दुनिया है, जिसमें कुछ बंधन ऐसे भी होते हैं जो बिन बाँधे बंध जाते हैं। मेरे और पलक के पदचिन्हों पर चलकर महक भी अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती है। मेरी ही तरह कहानियाँ लिखती हैं, आर. जे.  बनना चाहती हैं और अपनी मीठी आवाज़ में दुनिया को बताना चाहती है कि महत्त्व रिश्तों का नहीं, दिलों के बंधन का है। प्यार रिश्तों से नहीं होता ,रिश्ते प्यार से बनते हैं, जिन रिश्तों के होते हुए भी प्यार ना हो वे रिश्ते बेमानी हैं और रिश्ते ना होते हुए भी प्यार हो तो जीवन सार्थक हो जाता है इसलिए रिश्तों में प्यार ना ढूँढे और जहाँ प्यार हो वहीं  रिश्ते बना लिए जाएँ तो अच्छा है। वह दिन मैं कभी नहीं भूल सकती जब मैंने पहली बार अनाथ आश्रम में पलक को देखा था ,उसे चॉकलेट, खिलौने देने चाहे थे पर उसने नहीं लिए, गुड़िया भी दी पर उसने मना कर दिया, क्या चाहिए तुम्हें? जब मैंने उससे पूछा तो उसने प्यार से कहा, ‘आप, आप चाहिए मुझे, मेरी मम्मी बनेंगी आप’ उसके ये शब्द आज भी कानों में गूँज रहे हैं। बिना सोचे समझे अनजाने में ही हामी भर दी थी मैंने। कभी-कभी सोचती हूँ अगर मैं चंडीगढ़ ना गई होती तो, अगर दोनों को अडॉप्ट ना करती तो, अगर पलक, महक मेरी जिंदगी में ना आती तो ,सोचकर मन अंदर तक सिहर उठता है पर अगले ही पल महसूस होता है, नहीं-नहीं पलक, महक को मेरे घर आँगन में आना ही था। ईश्वर ने उन्हें मेरे लिए, सिर्फ मेरे लिए ही भेजा है दुनिया में ।पलक और महक ने मेरे निरर्थक से जीवन को सार्थकता दी। आज पलक की शादी है पूरा घर पलक  और महक की खुशबू से महक रहा है। घर के हर कोने में दोनों की हँसी, गुस्सा, मुस्कुराहटें बिखरी पड़ी है। पलक का जीवन साथी सिंगर है, मेरी परछाई मेरी पलक, कल अपनी एक अलग पहचान लेकर दुनिया के सामने आएगी।

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