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Antarrashtriya matribhasha diwas,Vishva pustak diwas,Skikshak Diwas 

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दिवस

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                                                     ‘अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’

अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी को मनाया जाता है यूनेस्को ने इसे स्वीकृति 17 नवंबर 1999 को   दी थी।इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व में भाषायी एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देना है। यूनस्को द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आंदोलन दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली थी, जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया गया था।

बांग्लादेश में इस दिन एक दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है। 2008 को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा वर्ष घोषित किया गया था, 2008 को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा वर्ष घोषित करके, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को दोहराया था।

 अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का उद्देश्य दुनिया भर की भाषाओं और संस्कृति के प्रति लोगों के दिलों में प्यार और सम्मान की भावना को जागृत करना है । इस दिन को मनाए जाने का उद्देश्य विश्व भर में भाषाई प्रचार-प्रसार करना है और दुनिया में विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति लोगों को जागरूक करना है।

 

                                              ‘विश्व पुस्तक दिवस ‘(23 अप्रैल)

प्रत्येक वर्ष 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाता है। इंसान के बचपन से, स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है लेकिन कंप्यूटर और इंटरनेट के प्रति बढ़ती दिलचस्पी के कारण पुस्तकों से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है। आज के युग में लोग नेट में फ़ँसते चले जा रहे हैं।

यही कारण है कि लोगों और किताबों के बीच की दूरी को पाटने के लिए यूनेस्को ने 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। यूनेस्को के निर्णय के बाद पूरे विश्व में इस दिन विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाता है। पहली बार विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल 1995 में मनाया गया था। इस अवसर पर प्रस्तुत है सफदर हाश्मी साहब की एक कविता-

किताबें करती हैं बाते

बीते जमाने की

दुनिया की, इंसानों की

आज की, कल की,

एक एक पल की,

खुशियों की, गमों की,

फूलों की, बमों की,

जीत की, हार की,

प्यार की, मार की,

क्या तुम नहीं सुनोगे ?

इन किताबों की बातें।

किताबें कुछ कहना चाहती हैं।

तुम्हारे पास रहना चाहती।

किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं।

किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं।

किताबों में झरने  गुनगुनाते हैं।

किताबें परियों के किस्से सुनाती हैं।

किताबों में रॉकेट का राज़ है।

किताबों में साइंस की आवाज़ है।

किताबों का  बहुत बड़ा संसार है।

किताबों में ज्ञान का भंडार है।

क्या तुम इस संसार में नहीं जाना चाहोगे?

किताबें कुछ कहना चाहती हैं।

तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

 

                                                           ‘शिक्षक दिवस’

गुरु और शिष्य के अटूट संबंध का द्योतक है शिक्षक दिवस

गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा ।

गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम: ।।

अर्थात गुरु ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु शिव के समान है, गुरु तो साक्षात् परब्रह्म है।

विश्व के कुछ देशों में शिक्षकों को विशेष सम्मान देने के लिए शिक्षक दिवस मनाया जाता है। कुछ देशों में इस दिन छुट्टी रहती है जबकि कुछ देशों इस दिन छुट्टी नहीं होती और शिक्षकों को विशेष सम्मान दिया जाता है।  

शिक्षक दिवस तथा गुरु शिष्य की बात हो और डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन् को याद न किया जाए ऐसा नहीं हो सकता। डॉक्टर राधाकृष्णन् भारत के राष्ट्रपति तो थे ही साथ ही एक सफल शिक्षक व लेखक भी थे। भारत में भूतू पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन् का जन्मदिन 5 सितंबर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों में अलग अलग तारीख पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

भारत में पहली बार शिक्षक दिवस 5 सितंबर 1962 में मनाया गया था। तब से हर वर्ष उनके जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे विद्या धन को सर्वोपरि मानते थे। विद्या धन के महत्त्व से संबंधित उनके जीवन की एक घटना इस समय मुझे याद आ रही है।

डॉक्टर राधाकृष्णन् जी के एक मित्र उनके घर आए और कहने लगे कृष्णन तुम्हारी तीव्र बुद्धिमता की मैं दाद देता हूँ पर बुद्धि के साथ अगर ईश्वर तुम्हें सुंदरता भी देता तो कितना अच्छा होता। राधाकृष्णन् समझ गए कि मित्र को अपनी सुंदरता पर घमंड हो गया है। उसे समझाने के उद्देश्य से कृष्णन् ने मित्र के लिए  चाँदी के जग से पानी निकालकर, चाँदी की कटोरी में पानी दिया। कटोरी बहुत ही सुन्दर थी परंतु पानी गर्म था, गर्मियों के दिनों में गर्म पानी, मित्र ने ठंडा पानी माँगा।

कृष्णन् जी ने मिट्टी के मटके से ठंडा पानी निकालकर मित्र को दिया तो मित्र की प्यास बुझी। डॉक्टर राधाकृष्णन् ने मित्र को समझाया कि जिस प्रकार पानी के ठंडा होने का, बर्तन के सुंदर होने से कोई संबंध नहीं है। उसी प्रकार सुंदरता, कुरूपता का विद्या से कोई संबंध नहीं है ,विद्या सदैव सौंदर्य से श्रेष्ठ थी और रहेगी।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारा इतिहास जितना गौरवपूर्ण है भविष्य उतना ही उज्ज्वल है और इस उज्ज्वल भविष्य की बहुमूल्य स्रोत है हमारे विद्यार्थी और विद्यार्थियों को यह समझाना होगा कि शिक्षा के बिना नैतिक मूल्यों के बिना जीवन में व्याप्त चुनौतियों का सामना करना असंभव है। आप सभी विद्यार्थियों में असीम क्षमताएँ हैं।

आवश्यकता इस बात की है कि आप अपनी उन क्षमताओं को पहचानें और अपनी प्रतिभा दिखाने के अवसरों का लाभ उठाएँ। आप सभी दर्पण हैं, प्रतिबिंब हैं, अपने परिवार का, अपने शिक्षकों का, अपने विद्यालय का। आप सभी विद्यार्थियों को अपने भविष्य को सजाना है, सँवारना है और ले जाना है इस जग को एक सुनहरे पल की ओर। आप सभी को महान चेष्टाएँ करनी हैं, सुदृढ़ कदम उठाने हैं ताकि आप एक नई शताब्दी की ओर अग्रसर होने का साहस कर पाएँ।

विद्याधन अनमोल है, यह एक ऐसा धन है जिसे आप से कोई छीन नहीं सकता चुरा नहीं सकता। यह भी सच है कि गुरु की सहायता के बिना विद्या धन को प्राप्त नहीं किया जा सकता। गुरु तो ज्ञान रूपी अमृत की खान है शिक्षक और शिक्षा दोनों का महत्त्व आप विद्यार्थियों को समझना ही होगा।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

सीस दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान।।

ये सच है कि

क्षितिज है विशाल, कदम है कोमल

अभ्यास तो होना ही पड़ेगा

बाधाएँ हैं अनेक, राह है धूमिल

जीवन लक्ष्य तो भेदना ही पड़ेगा।

 

                                                           ‘बाल दिवस’

दुनियाभर में बाल दिवस अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन के अवसर पर 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि जवाहर लाल नेहरू जी को बच्चे बहुत पसंद थे और बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे इसलिए यह दिवस बच्चों को समर्पित भारत का एक राष्ट्रीय त्योहार है।

आज का सुविचार- प्रसन्नता और मुस्कुराहटों के फूल बिखेरने वाले व्यक्ति के लिए सफलता के द्वार सदैव खुले रहते हैं। प्रस्तुत है आज के इस विचार पर आधारित एक कविता, जिसके रचयिता हैं गोपालदास ‘नीरज’

मुस्कुराकर चल मुसाफिर

पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर

वह मुसाफिर क्या जिसे कुछ शूल ही पाठ के थक दें।

हौसला वह क्या जिसे कुछ मुश्किलें पीछे हटा दें।

ज़िंदगी की राह पर केवल वही पंथी सफल है

आंधियों में, बिजलियों में, जो रहे अविचल मुसाफिर

याद रख जो आंधियों के सामने भी मुस्कुराते

वे समय के पंथ पर पदचिन्ह अपने छोड़ जाते

चिन्नु वे जिनको ना धो सकते प्रलय तूफान घन भी

मूक रहकर जो सदा भूले हुओं को पथ बताते

किंतु जो मुश्किलें ही देखो पीछे लौट जाते

ज़िंदगी उनकी उन्हें भी भार ही केवल मुसाफिर

कौन तो पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर

   आज बाल दिवस के इस शुभ अवसर पर विद्यार्थियों के लिए हम सभी की ओर से शत -शत मंगल कामनाएँ। हम सभी चाहते है की आप सभी

उज्ज्वल इतने बनो ,जितना सूर्य का प्रकाश

कीर्ति को इतना विस्तृत करो ,जितना नीला आकाश

प्रसन्नचित इतने बनो ,जितना सावन हरा

सहन शील इतने बनो, जितनी यह धरा।

(विशेष सूचना –

विद्यालय में मनाए जाने वाले विभिन्न दिवसों पर दिए जाने वाले भाषणों से संबंधित विषय वस्तु (content) प्राप्त करने के लिए इसी पेज पर पुनः आएँ ।समय -समय पर , विभिन्न दिवसों से संबंधित विषय वस्तु इसी पेज पर जोड़ी जाएगी ।)                                                                                   

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