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एक मीठी-सी याद – गुगलहर (संस्मरण) Guglehar

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गुगलहर

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गुगलहर

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                                                              गुगलहर

       चलती हुई ट्रेन में न जाने कितने मुसाफिरों से मिलते हैं और बिछड़ जाते हैं। कुछ को हम भूल जाते हैं और कुछ हमारे दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। कुछ स्टेशन्स पर ट्रेन कम समय के लिए ठहरती है और कुछ पर ज्यादा समय के लिए और कभी-कभी अनजाने अनचाहे स्टेशंस पर भी रुक जाती है ये ट्रेन। बनाई गई योजना के अनुसार नहीं चलती ज़िंदगी की ये ट्रेन। आज आप जो पढ़ने वाले हैं यह क़हानी नहीं है,यह है एक मीठी-सी याद, एक संस्मरण- गुग लहर। ये बात, ये याद 25 मई 2018 की है पर ऐसा लगता है जैसे अभी कल ही की बात है। हम भविष्य के लिए योजनाएँ  बनाते हैं पर योजना के अनुसार काम करने में सफलता मिले, ये जरूरी नहीं इसलिए मैं योजनाओं में विश्वास नहीं रखती, योजनाएँ बनाती ही नहीं और बिना कोई योजना बनाए बह जाती हूँ उस ओर जिस ओर जिंदगी बहाकर ले जाए। 25 मई 2018 शुक्रवार के दिन मैं बह निकली गुगलहर की ओर। गुगलहर हिमाचल का एक छोटा सा गाँव जहाँ ना घरों में ताले लगते हैं और ना दिलों में । मैं हैरान थीं यह देखकर कि रात में भी घर के दरवाज़े खोलकर ,बेफिक्र होकर सोते हैं सब। एक बंधी-बंधाई जिंदगी जीते हैं यहाँ के लोग। बंधन तोड़ने की, बंधन तोड़कर, रास्तों को मोड़कर, ज़िदगी का रुख बदलने की कोशिश भी नहीं करता कोई। गुगलहर में मिले मुझे अनेक नए रिश्ते- मामी जी,चाचा जी , चाची जी, ताई जी, पापा जी, मम्मी मुद्दत हो गई थी इन रिश्तों से मिले,पर जैसे सब खोए हुए मृत रिश्ते फिर से ज़िंदा होकर गुग लहर में मेरा ही इंतजार कर रहे थे। मुलाकात हुई ऋतु, नेहा, अनामिका, सिंम्मो, ममता और प्यारी सी मासूम सी पोड्डु से। रजनी की बहन की ससुराल पंडोग्गा भी गई। वहाँ मिली थोड़ी-सी समझदार, थोड़ी-सी तेज़ प्यारी-सी हिमांशी, उसकी दादी जी और दादा जी। रजनी का पुराना घर भी देखने गए या यूं कहें कि देखने नहीं, ढूँढने गए। वो घर जिसमें रजनी ने अपना बचपन बिताया था फिर जिंदगी आसान बनाने के लिए उसका सारा परिवार पहाड़ की चोटी पर बना अपना सुंदर आशियाना छोड़कर पहाड़ की तलहटी में आकर बस गया था पर रजनी उस सुंदर आशियाने को नहीं भूल पाई। वह मुझे और अपनी बेटी कनिका को अपनी यादों में बसा अपना सुंदर आशियाना, अपना बचपन का घर दिखाना चाहती थी ।काली लंबी सड़क से होते हुए कच्चा रास्ता पकड़ा हमने।पहाड़ी पर थोड़ा ऊपर चढ़ने पर मुलाकात हुई एक ऐसे परिवार से, जो पहाड़ी पर हरे भरे पेड़ों के बीच जंगल में रहने वाला इकलौता परिवार था। वहाँ चाय पी और ऊपर चल दिए, रजनी का पुराना घर भी देखने, देखने नहीं ढूँढने ।संकरी पगडंडी से होते हुए, झाड़ियों को चीरते हुए। दिल ही दिल में थोड़ा डरते हुए क्योंकि थोड़ी ही देर पहले रजनी ने बताया था कि इन रास्तों पर अक्सर जंगली जानवर भी आ जाते हैं। ज़रा-सी सरसराहट से रोंगटे खड़े हो जाते थे बार -बार लेकिन फिर भी उस डरावने रास्ते निकलते हुए ,उन यादों को हमेशा के लिए समेटने की इच्छा मन में लिए, जगह-जगह फोटो क्लिक करते हुए, पहुँच ही गए उस पहाड़ की चोटी पर। पर वहाँ चारों तरफ़ नज़र घुमाकर देखने पर भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। हम सभी निराश थे पर रजनी ने जैसे हार नहीं मानी थी वह अभी भी अपने बचपन की उन यादें को वहाँ की झाड़ियों और पेड़ों के बीच लगातार ढूँढ रही थी। चारों तरफ़ जंगली पेड़ों और झाड़ियों के अलावा कुछ नज़र नहीं आ रहा था पर जैसे हम सब रजनी की उम्मीद को ज़िंदा रखना चाहते थे। तीस -चालीस साल पहले रजनी का परिवार पहाड़ी के ऊपर वाला आशियाना छोड़कर, तलहटी में ज़ा बसा था।इतने सालों बाद यहाँ पहाड़ी पर उस आशियाने का कोई अवशेष मिलने की उम्मीद तो नहीं थी फिर भी हम सबने रजनी की उम्मीद को, उसके चेहरे की उस चमक को क़ायम रखते हुए अपने कदम आगे बढ़ाए। तभी रजनी ने ख़ुशी से खनकती, जोश भारी आवाज़ में सबको अपने पास बुलाया और एक पेड़ की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, ‘ये वही बेर का पेड़ है जिससे हम अक्सर बेर तोड़ा करते थे ।’ उस पेड़ पर आज भी बेर लगे हुए थे, रजनी का बचपन जैसे लौट आया था, उसने बेर तोड़ने शुरू कर दिए और कनिका को अपने पास बुलाकर अपने बचपन की,बेर के उस पेड़ से जुड़ी अपनी यादों की बातें बताने लगी। रजनी की बातें सुनकर ऐसा लगा जैसे वो पचास साल की रजनी  नहीं, दस-बारह साल की रजनी है और जैसे वह स्वयं को वहीं कहीं बेर के उस पेड़ के नीचे खेलते हुए देख है। उसकी  आँखों में ऐसी चमक थी जैसे वह अपनी यादों में सँजोए बचपन के वो अनमोल पल फिर से जी रही थी। अब   रजनी  के साथ -साथ हम सबकी उम्मीद भी बढ़ चुकी थी कि रजनी का बचपन का घर भी ज़रूर मिल जाएगा।

गुगलहर

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इसी उम्मीद को मन में लिए थोड़ा और आगे बढ़े , बहुत ढूँढने पर मिली रजनी के पुराने घर की एक टूटी हुई छोटी-सी दीवार। लगा जैसे कोई गड़ा खजाना मिल गया, सबसे पहले रजनी ने ही उस दीवार को देखा और चहककर सबको बताया कि ये उसके बचपन के आशियाने की रसोई की दीवार है। वहाँ सिर्फ़ एक टूटी हुई दीवार ही थी पर हम सबने रजनी के मन की आँखों से उसके पूरे घर की सैर की, यहाँ आँगन था, यहाँ आम का पेड़ था,यहाँ पुदीना,मूली, गाजर उगाई जाती थी,यहाँ पर गाय बंधी रहती थी। रजनी सब कुछ ऐसे बता रही थी जैसे उसकी नज़रों के सामने कोई पिक्चर चल रही थी और हम सब भी रजनी के साथ उसके बचपन के वो पल जीने की, उन्हें महसूस करने की कोशिश कर रहे थे।कुछ समय वहाँ बिताने के बाद , मन में संतुष्टि, ख़ुशी और चेहरे पर नई चमक लिए, सब नीचे उतरे फिर उसी घर में पहुँचे जहाँ चाय पी थी। उन्होंने हमारे लिए खाना तैयार कर रखा था बहुत मना किया पर खाना सामने आया और मना करने के बावजूद भी ऐसे खाया जैसे बरसों के भूखे हों। खाना स्वादिष्ट था क्योंकि प्यार से भरा था। योजना नहीं थी पर पहुँच गई गुगलहर,कोई रिश्ता नहीं था कोई नाता नहीं था किसी से, पर उन पाँच दिनों में ना जाने कितने रिश्ते-नाते बँटोरकर  ले आई अपने साथ। बात जब वापस गुडगाँव आने की चली तो पापा ने कहा मैं छोड़ आऊँगा मधु को, अच्छा लगा सुनकर। लगा मेरे अपने पापा लौट आए हैं। पापा आज इस दुनिया में नहीं है पर हमेशा याद रहेगा पापा का, पापा की तरह हँस देना और शाम के समय उनके साथ ताश खेलना, मम्मी का चाय बनाकर पिलाना। गुगलहर में बिताए वो पाँच दिन हमेशा मेरी यादों में ताजा रहेंगे। ये थी एक मीठी-सी याद, मेरा एक संस्मरण। बातें भूल जाती है पर यादें हमेशा याद रहती है। मीठी यादों को समेट कर, सहेज कर हमेशा अपने पास, अपने साथ रखें। ये यादें जीवन के मुश्किल सफर को भी आसान बना देती है।  

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