Laghukatha Sangreh – Udan , Part -2 लघुकथा संग्रह – उड़ान, भाग -2
1 min read
You May Like – क़हानी – परिश्रम का फल (विडीओ)
एक नई शुरूवात
पत्रकार नरेंद्र जी ने अपने पूरे कार्यकाल में पूरी मेहनत और लगन से काम किया, बहुत धन और मान सम्मान भी अर्जित किया। 65 की आयु में उन्होने रिटायर होने का सोचा। उनके रिटायरमेंट लेने की खबर सुनकर, अनेक टी. वी. चैनल और पत्र पत्रिकाओं के जर्नलिस्ट, उनका इंटरव्यू लेने पहुँच गए। इंटरव्यू के दौरान नरेंद्र जी के घनिष्ठ मित्र अरुण जी भी वहाँ उपस्थित थे। इंटरव्यू की समाप्ति के समय नरेंद्र जी ने मुस्कुरा कर कहा,˝ यह मेरा अंतिम साक्षात्कार है, मैं 65 का हो गया हूँ और रिटायर हो रहा हूँ ˝
˝ ओह यह तो बड़े दुख की बात है। मैं भी 65 का हो गया हूँ पर मैं तो अब अपना नया करियर आरंभ कर रहा हूँ। नया करियर आरंभ करने के लिए उम्र की कोई सीमा तो निर्धारित नहीं है। इन 65 सालों में तो मैंने अपने नए करियर की सिर्फ तैयारी की है।˝ साथ बैठे नरेंद्र जी के मित्र अरुण ने मुस्कुरा कर कहा।
क्षमा
एक कहावत है – मित्र की पहचान मुश्किल वक्त में ही होती है। विपिन अपने मित्र मृणाल से मिलने गया, मित्र बहुत ही मुश्किल वक्त से गुज़र रहा था। विपिन से मिलकर, मृणाल को थोड़ा सुकून मिला। दोनों शहर के कॉफी हाउस में गए। अपनी पुरानी यादें ताज़ा की, घर परिवार के बारे में, दुख सुख के बारे में बातें हुईं। बातों ही बातों में मृणाल ने बताया कि उसके बिज़नेस पार्टनर ने उसे धोखा दे दिया था, बिज़नेस डूब चुका था और मृणाल के सामने भीख माँगने की नौबत आ गई थी। आक्रोश में आकर मृणाल ने कहा , ˝ मित्र मैं तो अपने बिज़नेस पार्टनर से बहुत घृणा करता हूँ , मेरे मन में उसके प्रति ज़हर भरा है ।˝
अभी भी उसे अपने दिल में स्थान दे रखा है, उसके प्रति नफ़रत तुम्हें हमेशा उससे बाँधे रखेगी, समय बीतेगा पर तुम हमेशा इसी बुरे समय से बॅंधे रहोगे। उसे माफ़ कर दो और मुक्त हो जाओ इस बंधन से। अपने दुश्मन को माफ़ कर देने से मानसिक शांति मिलती है, स्वत्व के सर्वोत्कृष्ट स्तर की प्राप्ति होती है। घृणा और तनाव चिंता का कारण बनते हैं और चिंता व तनाव से काम करने क्षमता कम हो जाती है इसलिए अच्छा यही है कि तुम उसे माफ़ करके ज़िंदगी में आगे बढ़ों।˝ विपिन ने मृणाल को समझाते हुए नेक सलाह दी।
इच्छा शक्ति
पीटर इंग्लैंड से भारत आया तो था घूमने के लिए, भारत के बारे में बहुत सुना था उसने। घूमते-घूमते जब पीटर कष्मीर पहुँचा तो वह वहीं का होकर रह गया। इंग्लैंड से जो धन लाया था वह सब समाप्त हो चुका था क्योंकि उसने सोचा ही नहीं था कि वह इतना लंबा समय भारत में व्यतीत करेगा।
इस बीच उसने हिंदी बोलनी भी सीख ली थी और रोज़मर्रा की ज़रुरतों को पूरा करने के लिए वह अमरनाथ जाने वाले तीर्थयात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचने में मदद करने लगा जिससे उसे अपने जीवन यापन हेतु प्र्याप्त धन मिल जाता था।
जुम्मे का दिन था, पीटर नियमानुसार यात्रियों को गंतव्य तक ले जा रहा था कि लुटेरों ने हमला कर दिया। कुछ यात्री घायल हुए, कुछ मारे गए, कुछ को लूट लिया गया। तफशीष हुई, पेशियाँ हुई, तारीखें लगीं और इन सबमें पीटर को दोषी करार दिया गया। पीटर को कैद खाने में डाल दिया गया। जेलर की बेटी अफ़षा , अक्सर अपने अब्बू से मिलने आया करती थी, एक दिन उसकी नज़र पीटर पर पड़ी और पहली ही नज़र में वह पीटर को दिल दे बैठी।
धीरे-धीरे अफषा का , अब्बू के पास आना बढ़ने लगा। प्यार के वश में ,एक रात अफ़षा ने पीटर को जेल से निकालने का पूरा इंतज़ाम कर दिया, पर्याप्त धन की और पीटर के इंग्लैंड जाने की पूरी व्यवस्था कर दी। पीटर तो चला गया पर अफ़षा उसे भूल ना पाई और एक दिन अब्बू का घर छोड़कर भाग गई और अपने प्यार की तलाश में इंग्लैंड पहुँच गई परंतु अफ़षा को तो अंग्रेज़ी का एक शब्द भी नहीं आता था।
पीटर के घर और शहर का भी पता नहीं था उसे, उसे याद था तो सिर्फ पीटर। उसने अपने अब्बू से सीखा था कि दृढ़ इच्छा शक्ति से अप्राप्य की भी प्राप्ति हो जाती है, दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर आप असंभव को भी संभव कर सकते हो।
उसके अब्बू कहा करते थे, ˝ अगर सफलता प्राप्त करनी है तो दृढ़ इच्छाशक्ति, धैर्य को अपना अंतरंग मित्र बनाओ, अनुभव को अपना परामर्शदाता, सतर्कता, दूरदर्षिता को अपना बड़ा भाई मानों और आषा को अपना संरक्षक दूत मानों, अगले ही क्षण सफलता तुम्हारे कदमों में होगी। ˝
अब्बू की कही बातें सोच सोचकर अफ़षा का होसला बढ़ा, दृढ़ इच्छा शक्ति और दृढ़ हुई। लंदन की सड़कों पर अफषा पीटर, पीटर चिल्लाती हुई घूमने लगी, इसी तरह घूमते घूमते कई महीने गुज़र गए पर कोई परिणाम ना निकला। उसे भी हठ थी पीटर तक पहुँचने की।
उसकी इच्छा शक्ति पहले की अपेक्षा और अधिक प्रबल हो चुकी थी। धीरे-धीरे यह बात पूरे लंदन शहर में फैल गई कि एक लड़की शहर की सड़कों पर पीटर-पीटर चिल्लाती घूम रही है और होते-होते यह बात पीटर के कानों तक भी पहुँच ही गई। अफ़षा का प्यार पीटर के दिल को छू गया और वह स्वयं अफ़षा को ढूँढता हुआ उसके पास पहुँच गया।
विनम्रता
सेठ रणजीत अपनी विनम्रता, उदारता, शालीनता, दान और मेहमाननवाज़ी के लिए दूर दूर तक प्रसिद्ध थे। वे कभी भी लोगों के बीच भेद भाव नहीं करते थे। एक बार वे अपने मित्र माणिक के साथ भ्रमण के लिए निकले, राह चलते उन्हें एक तुच्छ भिखारी मिला उसने आदरपूर्वक सेठ जी का अभिवादन किया और सेठजी ने आादतानुसार अपनी कीमती मखमली षाल उस भिखारी को दे दी। मित्र से चुप ना रहा गया बोला, ˝ आपने अपनी कीमती षाल उस गॅंवार, असभ्य, तुच्छ भिखारी को क्यों दे दी ? ˝
˝ विनम्रता से दिलों पर राज किया जा सकता है और विनम्रता वहीं फलती फूलती है जहाँ उदारता होती है। उदारता और विनम्रता सज्जनता की कसौटी हैं, मैं नहीं चाहता कि कोई और मुझसे ज़्यादा विनम्र, उदार और शालीन हो। ˝ सेठ रणजीत सिंह ने मुस्कुराकर जवाब दिया।
May You Like –Udan , Laghu katha Sangreh – Part 1
4,057 total views, 17 views today