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स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त ) के शुभ अवसर पर भाषण

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15 अगस्त

15 अगस्त

 Independence day

 सागर की ज्वार तरंगों से

 बुझ सकती निश्चित प्यास नहीं

मरुथल की शुष्क हवाओं से

महका करता मधुमास नहीं

 पर्वत की उच्च शिराओं से

छू सकते हम आकाश नहीं

 बिन त्याग और बलिदानों के

 लिखा जाता इतिहास नहीं।

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सुप्रभात आज स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर परतंत्र भारत की एक सच्ची ऐतिहासिक घटना याद आ रही है पंजाब का एक किसान अपने तीन वर्षीय पुत्र के साथ खेत में पहुँचा, किसान बीज बोने  लगा और बालक खेलने लगा ।

कुछ समय बाद किसान ने देखा बालक टेढ़- मेढ़ी लकड़ियाँ इकट्ठी करके उन्हें मिट्टी में दबा रहा है। किसान ने पूछा बेटा यह क्या कर रहे हो? बालक ने जवाब दिया पिताजी यह मेरी बंदूकें हैं ,इन्हें मिट्टी में बो रहा हूँ। जब पेड़ उगेंगे , उन पर बहुत सारी बंदूकें लगेंगी और तब मैं ये बंदूकें लेकर अपने दोस्तों के साथ मिलकर भारत को आज़ाद करवाऊँगा।

मात्र तीन वर्ष की उम्र में बंदूकें बोने वाला यह बालक था भगत सिंह, जो बचपन में ही भारत की आज़ादी का स्वप्न देख रहा था युवा होने पर उनकी सोच नहीं बदली और वो सोचते रहे

कभी वह दिन भी आएगा की आज़ाद हम होंगें

ये अपनी ही ज़मीन होगी

ये अपना आसमान होगा

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे

हर बरस मेले

वतन पर मरने वालों का

यही बाक़ी निशां होगा

भगत सिंह का सपना पूरा हुआ आज भारत आजाद है पर आज़ाद  भारत को देखने के लिए भगत सिंह हमारे बीच नहीं हैं।

आज स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर मन कहता है

उनकी जय बोलूँ

जो चढ़ गए पुण्य की वेदी पर

लिए बिना गरदन का मोल।

वास्तव में राष्ट्र के प्रति ईमानदारी के लिए जरूरी है कि आज आज़ादी के इतने वर्षों बाद हम भारत, भारत की स्वतंत्रता और उन शहीदों को पुनः याद करे जिनके कारण हमें आज़ादी मिली, जिनके कारण हम स्वतंत्र भारत में साँसे ले रहे हैं।

          समय की शिला पर मधुर चित्र कितने ,

           किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए,

           किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी,

           किसी ने पढ़ा केवल दो बूँद पानी।

हिंदी (हिंदी दिवस पर भाषण), Hindi (Speech on Hindi Diwas )

 जी हाँ, भारत की स्वतंत्रता की कहानी तो आँसुओं से ही लिखी गई थी पर स्वतंत्र, खुशहाल भारत में जन्में हम भारतीय उन आँसुओं में से केवल दो बूँदों की कीमत ही समझ पाए हैं। उन आँसुओं की कीमत समझने के लिए दिलों में स्वदेश प्रेम होना अतिआवश्यक है।

वास्तव में देश प्रेम की भावना बचपन से ही मिलनी चाहिए। राष्ट्रीय कर्त्तव्य  की कोई निर्धारित उम्र नहीं होती। बचपन में ही राष्ट्रहित के संस्कार विकसित कर दिए जाएँ तो यह राष्ट्र के लिए सबसे बड़ी पूँजी होगी और इस पूँजी के बल पर कोई भी राष्ट्र पूर्ण आत्मसम्मान के साथ विकास कर सकता है। अतीत के कपाट खोलकर देखें तो ज्ञात होगा कि भारत का स्वतंत्रता आंदोलन छात्रों के बिना अधूरा था। अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन में स्कूलों और का कालेजों के छात्रों ने भाग लिया तभी देश आज़ाद हुआ। सन् 1942 में अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक ऐसा अभूतपूर्व उदाहरण सामने आया जिसे देखकर , सुनकर संपूर्ण विश्व रोमांचित हो उठा। सन् 1942 में पटना विधान परिषद् पर झंडा फहराने के उद्देश्य से, जनसमूह में से एक नवयुवक तिरंगा लेकर आगे बढ़ा, उसके आगे बढ़ते ही अंग्रेज़ी पुलिस ने गोली चला दीं। एक अन्य नवयुवक सामने आया और गिरते हुए युवक के हाथ से तिरंगा लेकर आगे बढ़ा, गोलियाँ चलती रहीं , युवक शहीद होते रहे पर उन्होंने तिरंगे को पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया। अंत में सातवें युवक ने पटना विधान परिषद पर झंडा फहरा ही दिया। 

         ऐसा क्या था तीन रंग के उस कपड़े में कि सात नवयुवकों ने अपनी जान गवाँ दी, सिर्फ इसलिए कि तिरंगा ज़मीन पर ना गिरे। हम सबने स्वतंत्र भारत में जन्म लिया इसलिए हमारे लिए यह समझना मुश्किल है कि राष्ट्रीय ध्वज की कोई आवाज़ नहीं थी पर बिना आवाज़ के भी हमारे प्यारे तिरंगे ने आज़ादी की आवाज़ को बुलंद रखा। आज स्वतंत्र भारत के नागरिक होने के नाते हमारे लिए इतना समझना काफ़ी है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है और इसी ध्वज के सम्मान में हमारा स्वयं का सम्मान निहित है। ज़रूरी नहीं कि अपनी मातृभूमि के लिए जान देकर ही उसके प्रति आदर और प्याार के भाव प्रकट किए जाएँ। माँ, जो हमें देती है या दे सकती है ,उसका कर्ज़ हम आजीवन नहीं चुका सकते पर अपने मन के भावों को प्रकट करने के लिए हम माँ के गले में बाँहें डाल देते हैं या उसके काम में ज़रा सा हाथ बॅंटा देते हैं तो उसके आशीर्वादों की बरसात शुरू हो जाती है। बस प्यार के यही भाव यदि हम देश के प्रति मन में रखें तो हमारा भारतीय होना सार्थक है। विश्व के किसी भी देश में ओलंपिक खेलों का आयोजन हो , भारतीय खिलाड़ी उसमें भाग ले रहें हों और मन ईश्वर से उनके जीतने की दुआ करे। किसी खिलाड़ी को स्वर्ण पदक मिले और राष्ट्रगान के साथ भारतीय तिरंगा सबसे ऊपर लहराए, यह दृश्य देखकर मन रोमांचित हो उठे और गर्व से कहे , ˝मैं भी भारतीय हॅू।˝ यही देश प्रेम है। क्रिकेट के मैदान में भारतीय टीम उतरे और मन खुदबखुद उनके जीतने की प्रार्थना करे, टीम के जीतने पर आपको महसूस हो कि आप जीत गए तो समझिए कि आपका भारतीय होना सार्थक है और जो भारत की स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए उनका शहीद होना भी सार्थक है। आज हम स्वतंत्र भारत में आज़ादी की साँसे ले रहे हैं, अपनी मातृभूमि के साथ-साथ , राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे पर भी हमें गर्व है। हम भाग्यशाली हैं कि हमने स्वतंत्र धराशिरोमणि भूमि पर जन्म लिया। हम भारतीय हैं और हम सब चाहेंगे कि –

                भारत की इस साँवर भूमि पर,

                सोना, चाँदी बरसे,

                ऐसा दीपक जले कि जिससे,

                स्वर्ग धरा को तरसे।

 

 

 

       

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