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Laghukatha Sangreh – Sanchyan

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Sanchyan

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You May Like – क़हानी – परिश्रम का फल (विडीओ)                                                                 

                                                          विनम्रता

आकाश को अपने ऊपर घमंड हो गया । उपेक्षा वृत्ति से धरा की ओर देखा और व्यंग्यपूर्वक
बोला, ‘‘ आजकल बहुत लहलहा रही हो, अपने ऐश्वर्य पर फूली नहीं समा रही हो तुम, पर यह मत भूलना कि तुम्हारा ऐश्वर्य मेरी ही कृपा का फल है।

मेरे ही प्रकाश, मेरी पवन और मेरे दिए अनगिनत पदार्थों के कारण ही तुम इतनी खुशहाल हो ।’’
‘‘ आप ही मुझमें रचे बसे हैं, आपके कारण ही मरा अस्तित्व है, तो मुझसे , मेरी खुशहाली और ऐश्वर्य से इतनी घृणा क्यों तात ?’’
पृथ्वी की विनम्रता देख , आकाश नतमस्तक हो गया ।

           

                                                                    घमंड

साकेत के पुत्र संकेत ने बहुत उन्नति की, बहुत धन कमाया । संकेत का नाम ,देश के पाँच सबसे अमीर व्यक्तियों में गिना जाने लगा था । साकेत काक अपने पुत्र पर ,उसकी मेहनत पर बहुत फख्र था, पर अंदर ही अंदर उसे यह बात खाए जा रही थी कि साकेत अपनी धन, संपत्ति, शोहरत पर बहुत अहंकार करने लगा था । साकेत चाहता था कि इतनी दौलत, शोहरत के बावज़ूद उसके पुत्र के पाँव ज़मीन पर ही टिके रहें । इसी उद्देश्य से एक दिन उसने संकेत से कहा ,” बेटा अगर तुम किसी दिन समुद्री यात्रा करते समय समुद्र में फँस जाओ , प्यास से व्याकुल हो और तुम्हारे पास पीने के लिए पानी ना हो और पानी देने वाला तुमसे तुम्हारी आधी ज़मीन ज़ायदाद, धन दौलत माँगे तो तुम अपनी आधी ज़मीन ज़ायदाद, धन दौलत उसे दोगे या नहीं ।

”अवश्य दूँगा’’ संकेत ने जवाब दिया ।
” अगर तुम बीमार पड़ जाओ, पानी पीकर तुम्हारा पेट फूल जाए, पेट में ज़ोरों का दर्द शुरू हो जाए और डाॅक्टर बाकी बची हुई धन दौलत माँगे, तो दोगे ?
” ज़रूर दूँगा ।’’ संकेत ने उत्तर दिया ।
” ऐसी क्षणिक धन दौलत पर घमंड क्यों करते हो बेटा ? जो एक गिलास पानी के लिए और दवाई के लिए बिक जाए । ’’ साकेत ने अपने बेटे संकेत को समझाते हुए कहा ।

                   

                                                               कल्याणकारी जीवन

नासमझ बालक ने अपनी छाया देखी और छाया को पकड़ने के हठ और मोह ने उसे घेर लिया । मोह वश बालक दौड़ने लगा, अपनी ही परछाई को पकड़ने के लए, छाया आगे आगे और बालक पीछे पीछे । बाबा ने बालक को अंधाधुंध परछाई के पीछे भागते देखा तो रोक कर उसे समझाया कि यह परछाई भ्रम है, माया है, आज तक इसे कोई नहीं पकड़ पाया । इस माया के पीछे मत दौड़ो । यह अज्ञान रूपी अंधकार है, इसके पीछे दौड़ना छोड़ो और प्रकाश की ओर जाओ । कल्याणकारी जीवन की ओर प्रस्थान करो ।
बालक ने बाबा की बात मानी और लौट गया प्रकाश की ओर । ज्यों ज्यों वह प्रकाश पुंज की के निक्ट चलता जाता , उसकी छाया उसके पीछे पीछे आती जाती । छाया को पीछे आता देख, बालक मुस्कुराकर प्रकाश पुंज की ओर दौड़ने लगा ,छाया भी उसके पीछे पीछे उतनी ही तेजी से दौड़ने लगी और प्रकाश के साथ वह भी उसमें समा गई ।

 

                                                                 सच्चा आग्रह

अद्धृत बहुत ही परिश्रमी, ईश्वर भक्त, उदार और शालीन व्यक्ति था । अपनी अभूतपूर्व मेहमान नवाज़ी के लिए वह आस-पास के सभी राज्यों में बहुत प्रसिद्ध था । एक रात उसके यहाॅं मेहमान आए पर उस समय, उसकी पत्नी मायके गई हुई थी। घर में ऐसा कुछ भी ना था जो मेहमान के सामने परोसा जा सके । बहुत सोच विचार करने के बाद उसने पड़ोसी का द्वार खटखटाया लेकिन पड़ोसी नींद में था, रात के बारह बज रहे थे। पड़ोसी ने पलंग पर पड़े पड़े कहा, ” अरे भई, आधी रात के समय परेशान मत करो, मैं नहीं उठ सकता ।’’
परंतु अदधृत को तो मेहमाननवाज़ी की फिक्र थी सो बोला,” मैं तुम्हें चैन से सोने लहीं दूॅंगा, मेरे अतिथियों के खाने के लिए तुम्हें कुछ ना कुछ तो देना ही पडे़गा। ’’
अंत में परेशान होकर अदधृत की हठ और उसके आग्रह के सामने पड़ोसी को झुकना ही पड़ा और उसने द्वार खोल दिए।
इसी प्रकार यदि सच्चे आग्रह से किसी भी काम को करने का दृढ़ निश्चय किया जाए तो उसमें सफलता अवश्य मिलेगी।

 

                                                                      किस्मत

आम के पेड़ पर बैठी कोयल और चींटीे में दोस्ती हो गई। चींटी स्वभाव से ही परिश्रमी और आत्मविश्वास से भरी , कोयल आलसी और आराम तलब , दोनों का विरोधी स्वभाव । पावस ऋतु आने वाली थी, समझदार चींटी आदतानुसार अपने घर में अन्न के दाने एकत्रित करने लगी। कोयल को समझाने के उद्देश्य से बोली, ” बहन पावस ऋतु आने वाली है, भविष्य की भी थेड़ी चिंता करो ।’’
”आनंद तो मैं अपनी किस्मत में लिखवाकर आई हूँ , तुम्हारी किस्मत में परिश्रम करना लिखा है सो तुम बोझ ढोती रहो ।’’ हॅंसकर , खिलखिलाकर कोयल बोली ।
कुछ दिन बीते और फिर हुआ पावस ऋतु का आगमन हुआ, झमाझम वर्षा हुई, चारों ओर पानी ही पानी था । चींटी अपने घर में आराम से बैठी, अपने जमा किए हुए अन्न का भेग करती हुई, बरसते पानी की बूॅंदों का पूरा आनंद ले रही थी और बाहर कोयल ठंड में सिकुड़ी हुई, भूख से पीड़ित चींटी के द्वार पर आकर बोली,” बहन कुछ खाने को दो ना ।’’
” क्यों भूखे रहना क्या तुम्हारी किस्मत में नहीं लिखा है।’’ चींटी ने मुस्कुराकर जवाब दिया ।

 

                                                                  वास्तविक निर्माण

गुलाब के पौधे पर खिला सुंदर फूल अपने सौंदर्य पर इतरा रहा था ।
मन ही मन अपने साथ लगे काँटों से बहुत घृणा थी उसे । एक दिन जब उसकी सहनशीलता जवाब दे गई तो उसने घृणा पूर्वक , काॅंटे की ओर देखा और बोला, ”तुम्हारा यह नुकीला, लंबा और भद्दा षरीर मेरे साथ बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। मुझे देखो मेरी कोमल , गुलाबी पंखुड़ियाँ कितनी सुंदर हैं। अपनी मनमोहक सुगंध और सुंदरता के कारण ही मैं महापुरुशों और देवी, देवताओं के गले का हार बनता हूँ। काँटे ने गंभीरता पूर्वक मुस्कुराकर उत्तर दिया, ” यह सब तो ठीक है मित्र, ईष्वर ने जिसे जैसा बनाया है, जैसा रूप दिया है, उसे उसी रूप में जीना है परंतु यह भी सच है कि जिस जीवन में फूल ही फूल हैं, सुख ही सुख है, वह जीवन नीरस हो जाता है, उसका विकास रुक जाता है, उसमें निष्क्रियता आ जाती है। जीवन का वास्तविक निर्माण काँटों, कठिनाईयों के बीच ही होता है। जिस जीवन में काँटे, कठिनाईयाॅं नहीं , वह जीवन जीवन नहीं।

                                                                      सच्चा मोती

एक यात्री सच्चे मोतियों की चाह में समुद्री यात्रा पर निकला पवरंतु मीलों लंबी यात्रा करने पर भी उसके हाथ कुछ ना लगा। जो धन उसके पास था वह भी समुद्री यात्रा के दौरान समाप्त हो गया। यात्रा के अंतिम पड़ावप र उसने कुछ गोताखोरों को देखा, जो एक ही गोते में ढेरों मोती समेटकर बाहर आ रहे थे।
उत्सुकतावष उसने एक गोताखोर से पूछ ही लिया ˝ बंधु मैं हज़ारों मील लंबी यात्रा कर चुका हूॅं पर मुझे अभी तक एक भी मोती नहीं मिला, तुमने मोतियों के ढेर एक ही दिन में कैसे प्राप्त कर लिए ? ˝
गोताखोर ने पुनः डुबकी लगाने से पूर्व मुस्कुराकर कहा ˝ मैं जीवन को संकट में डालकर
गहराई में जाकर, परिश्रम करके , समुद्र के गर्भ से ये मोती ढूॅंढ ढूॅंढकर एकत्रित करके लाता हूॅं। तुम्हारी तरह जहाज पर बैठकर सिर्फ यात्रा नहीं करता रहता। ˝

May You Like –Udan , Laghu katha Sangreh – Part 1

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