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Class 7, हिंदी, मल्हार, कविता – माँ कह एक कहानी , शब्दार्थ व व्याख्या

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कविता

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कविता माँ  कह एक कहानी

Kavita
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माँ कह एक कहानी।‘

बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?

‘कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी

कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?

मां कह एक कहानी।‘

‘तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,

तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।‘

 

शब्दार्थ –

चेटी- दासी / सेविका ।                                      हठी – ज़िद्दी ।
मानधन – प्रतिष्ठा ही जिसका धन हो ।                  उपवन – बाग ।
तात- पिता ।                                                     भ्रमण – घूमना ।  

व्याख्या-
इस पद्यांश में बालक राहुल अपनी माँ से एक कहानी सुनाने की ज़िद करते हैं और माँ पुत्र को कहानी सुना रही हैं।  राहुल अपनी माँ यशोधरा से एक कहानी सुनाने के लिए कहते हैं। पारिवार में प्रायः नानी – दादी को ही कहानी सुनाते देखा जाता है इसलिए यशोधरा परिहास में कहती हैं कि क्या तुमने मुझे अपनी नानी समझा है जो मैं तुम्हें कहानी सुनाऊँ। इस बात पर दुलारपूर्वक हठ करते हुए राहुल कहता है कि तुम नानी नहीं हो लेकिन मेरी नानी की बेटी हो । अधिक कष्ट न करो, लेटे ही लेटे मुझे कहानी सुना दो। हाँ, वही राजा या रानी की कोई भी कहानी सुनाओ माँ ।

तब यशोधरा राहुल को उसके पिता के जीवन की एक घटना सुनाते हुए कहती हैं कि हे मेरे हठी सुपुत्र ! सुनो, यह उस समय की घटना है जब तुम्हारे पिता प्रात:काल उपवन में भ्रमण कर रहे थे।

 

 

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‘जहाँ  सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।‘

‘वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,

हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।‘

‘लहराता था पानी, हाँ – हाँ यही कहानी।‘

‘गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से,

गिरा बिद्ध होकर खग शर से,

 

 

शब्दार्थ –

सुरभि – सुगंध ।                                        वर्ण- रंग।
हिम-बिंदु – ओस के कण ।                        झिले – झिलमिलाते ।
खग – पक्षी ।                                           बिद्ध – बिंधा या छेदा हुआ।
खर-शर- तेज़ धार वाला बाण ।

 

व्याख्या-

प्रस्तुत पंक्तियों में उपवन के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए एक घायल हंस के गिरने का करुण वर्णन किया गया है। यशोधरा अपने पुत्र से कहती हैं कि जिस उपवन में प्रातःकाल तुम्हारे पिता भ्रमण कर रहे थे वहाँ हर जगह पर फूलों की सुगंध फैली हुई थी। बालक उत्साहित होकर कहता है, हाँ माँ, यही कहानी मुझे सुनाओ।

यशोधरा कहानी को आगे बढ़ाती हुई कहती हैं कि वहाँ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे और उन पर ओस की बूँदें झिलमिला रही थीं। हवा के मंद-मंद झोंके बह रहे थे और उपवन के सरोवर में पानी लहरा रहा था। बालक पुनः उल्लासित होकर कह उठता है, हाँ माँ, यही कहानी मुझे सुननी थी। माँ आगे कहती हैं कि पक्षी उपवन में कल-कल के स्वर में आनंदित होकर गाते थे। तभी अचानक ऊपर से एक घायल हंस तड़पता हुआ नीचे गिरा जिसका शरीर तेज़ धारवाले बाण से बिंधा हुआ था। वह खून से लथपथ था।

 

हुई पक्षी की हानि।‘

‘हुई पक्षी की हानि? करुणा भरी कहानी!’

‘चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म-सा उसने पाया,

इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।

‘लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।

 

शब्दार्थ –

पक्ष – पंख।                                       करुणा-भरी – दुखभरी ।
आखेटक – शिकारी ।                        सिद्धि – सफलता ।

व्याख्या –
इन पंक्तियों में सिद्धार्थ द्वारा घायल हंस को उठाने तथा आखेटक के आने का वर्णन है।पक्षी को तीर लगा था और वह तड़प रहा था। यह बालक करुणा से भर उठता है और कहता है- हाँ माँ, यह बहुत ही करुणाभरी कहानी है।

माता ने आगे कहा- तुम्हारे पिता अचानक सामने गिरे हुए घायल पक्षी को देखकर चौंक उठे। उन्होंने तुरंत ही उसे उठाकर प्यार से अपनी गोद में रख लिया और सहलाने लगे। पक्षी ने स्वयं को सुरक्षित हाथों में पाकर ऐसा महसूस किया कि जैसे उसे नया जन्म मिल गया हो। तभी वहाँ पर उस पक्षी पर तीर चलाने वाला शिकारी आया और पक्षी की यह कहते हुए माँग करने लगा कि मैंने ही इसे लक्ष्य (निशाना) करके तीर चलाया था। मेरा तीर अपने लक्ष्य को सिद्ध करता हुआ सफल हुआ है। आखेटक को अपने लक्ष्य पर बहुत घमंड था। यह कहानी कोमल और कठोर भावनाओं से भरी है।

 

‘माँगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,

तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।

‘हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।

‘हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,

गई बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।

‘सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।

 

शब्दार्थ –

आहत – घायल ।                                      रक्षी – रक्षा करने वाला ।
खगभक्षी – पक्षी को मारनेवाला ।             हठ – ज़िद ।
ठानी – निश्चय कर लेना।                          सदय – दयावान।
उभय – दोनों।                                            आग्रही – आग्रह करने वाला।
व्यापक – फैला हुआ।

 

व्याख्या-

प्रस्तुत पंक्तियाँ आखेटक द्वारा सिद्धार्थ के हाथों से घायल पक्षी को लेने की चेष्टा में करुणा और क्रूरता के बीच के संघर्ष को व्यक्त करती हैं। आखेटक ने घायल पक्षी पर अधिकार जताना चाहा क्योंकि उसने तीर मारकर वह पक्षी गिराया था, किंतु तुम्हारे पिता उस पक्षी के रक्षक बन गए। उन्होंने उस पक्षी को देने से इनकार कर दिया। तब, पक्षी को मारने वाला हठ करने लगा। राहुल उत्सुक होकर बोला- उसने हठ किया? माँ कहानी को आगे बढ़ाते हुए पुत्र को बताती हैं कि विवाद बढ़ा और तत्पश्चात दयालु और निर्दयी के मध्य कहा-सुनी होने लगी। दोनों ही अपने-अपने विषय पर तर्क कर रहे थे। तब राज्य के न्यायालय तक बात जा पहुँची और सभी लोगों को पता चल गया और यह बात (कहानी) चारों ओर फैल गई।

 

‘राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?

कह दे निर्भय जय हो जिसका, सुन लूं तेरी बानी’

‘माँ  मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।

‘कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?

रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।

‘न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी।

 

शब्दार्थ –

निर्णय- फ़ैसला ।                                               निर्भय – बिना डरे ।
बानी – बात, आवाज़, विचार।                              उबारे – बचाना।

निरपराध – जिसने कोई अपराध न किया हो।          गुनी – समझी              
रक्षक – रक्षा करने वाला ।                                   भक्षक – मारने / खाने वाला ।
 

 

व्याख्या-

प्रस्तुत पंक्तियों में माँ अपने पुत्र के विचार जानना चाहती है कि न्याय किसके पक्ष में होना चाहिए।यशोधरा, पुत्र राहुल से कहती हैं कि तुम फ़ैसला करो कि न्याय किसकी तरफ़ होना चाहिए। तुम निर्भय होकर अपने मन की बात कहो कि किसकी विजय होनी चाहिए। तुम्हारा हृदय क्या कहता है? मैं तुम्हारा निर्णय तुम्हारी वाणी से सुनना चाहती हूँ 

राहुल कहता है-माँ, मैं क्या कहूँ? मैं तो इसे एक कहानी के रूप में सुन रहा हूँ। किंतु इतना ज़रूर कहूँगा कि यदि कोई किसी को अकारण, बिना किसी अपराध के मारता है तो क्या किसी दूसरे को उसकी रक्षा नहीं करनी चाहिए। मारने वाले से रक्षा करने वाला बड़ा होता है। न्याय सदैव दया का पक्षधर होता है । पुत्र की बात सुनकर माँ कहती हैं, मुझे पता चल गया है कि यह कहानी तुम्हें अच्छी प्रकार से समझ में आ गई है और तुम इस कहानी के मूल्यों को भली-भाँति जीवन में उतारोगे।

 

 

माँ, कह एक कहानी कविता का सारांश   

‘माँ, कह एक कहानी’ कविता में सिद्धार्थ के पुत्र राहुल और उनकी पत्नी यशोधरा का पारस्परिक वार्तालाप है। बालक राहुल अपनी माँ से कहानी सुनाने की ज़िद करता है । माँ यशोधरा कहती हैं कि मैं तुम्हारी नानी नहीं हूँ जो तुम्हें कहानी सुनाऊँ। इस पर राहुल माँ से दुलारपूर्वक कहता है कि तुम नानी नहीं लेकिन मेरी नानी की बेटी तो हो । लेटे ही लेटे मुझे कहानी सुना दो, चाहे राजा की हो या रानी की। तब माँ उसे कहानी सुनाना प्रारंभ करती हैं। वे उसे सिद्धार्थ (राहुल के पिता) की कहानी सुनाती हैं कि एक दिन उपवन में टहलते समय एक हंस किसी शिकारी के तीर से घायल होकर उनके सामने आ गिरा।

घायल हंस को देखकर वे दुखी हो गए । उन्होंने तुरंत उस हंस को बचाने का उपाय किया। तभी शिकारी वहाँ आकर उनसे हंस माँगने लगा। तुम्हारे पिता जी हंस को बचाना चाहते थे और शिकारी हंस को मारना चाहता था। दोनों अपनी ज़िद पर अड़े हुए थे। बात न्यायालय तक पहुँच गई। फिर यशोधरा राहुल से पूछती हैं कि अब वही निर्णय ले कि न्याय किसका पक्ष लेता है। तब राहुल कहता है कि मारने वाले से रक्षा करने वाला ही बड़ा है। न्याय दया का ही पक्ष लेता है। तब यशोधरा प्रसन्न हो जाती हैं कि उनके पुत्र ने कहानी को ठीक से सुना और समझा है। इस प्रकार यह कविता सिद्धार्थ द्वारा एक हंस को बचाने के लिए करुणा और हिंसा के बीच उत्पन्न संघर्ष के माध्यम से ‘दया ही सर्वोपरि गुण है’ सिखाती है।

 

 

 

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