Pathit Gadyansh, Path-Gol, Class 6,Malhar,NCERT
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पठित गद्यांश
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1 .खेल के मैदान में धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक की घटनाएँ होती रहती हैं। खेल में तो यह सब चलता ही है। जिन दिनों हम खेला करते थे, उन दिनों भी यह सब चलता था। सन् 1933 की बात है। उन दिनों में, मैं पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करता था। एक दिन ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ के बीच मुकाबला हो रहा था। ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी मुझसे गेंद छीनने की कोशिश करते, लेकिन उनकी हर कोशिश बेकार जाती। इतने में एक खिलाड़ी ने गुस्से में आकर हॉकी स्टिक मेरे सिर पर दे मारी। मुझे मैदान से बाहर ले जाया गया।
प्रश्न 1 – खेल में कौन सी घटनाएँ आम हैं?
(क) मार-पीट
(ख) धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक
(ग) निचा दिखाना
(घ) बदला लेना
प्रश्न 2 – प्रस्तुत गद्यांश में कौन अपनी आत्मकथा बता रहा है?
(क) मेजर कुलदीप
(ख) मिल्खा सिंह
(ग) मेजर ध्यानचंद
(घ) सूबेदार मेजर तिवारी
प्रश्न 3 – मेजर ध्यानचंद किस खेल को खेलते थे?
(क) क्रिकट
(ख) फुटबॉल
(ग) कबड्ड़ी
(घ) हॉकी
प्रश्न 4 – विरोधी टीम के खिलाड़ी ने गुस्से में क्या किया?
(क) मेजर ध्यानचंद को सर पर स्टिक मार दी
(ख) मेजर ध्यानचंद को पैर पर स्टिक मार दी
(ग) मेजर ध्यानचंद को पीठ पर स्टिक मार दी
(घ) मेजर ध्यानचंद को स्टिक मार दी
प्रश्न 5 – मेजर ध्यानचंद किस टीम की ओर से खेलते थे?
(क) पंजाब रेंजिमेंट की ओर से
(ख) जाट रेजिमेंट की ओर से
(ग) सैपर्स एंड माइनर्स की ओर से
(घ) सिख रेजिमेंट की ओर से
उत्तर 5– (क) पंजाब रेंजिमेंट की ओर से
उत्तर –
उत्तर 1– (ख) धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक
उत्तर 2– (ग) मेजर ध्यानचंद
उत्तर 3– (घ) हॉकी
उत्तर 4– (क) मेजर ध्यानचंद को सर पर स्टिक मार दी
उत्तर 5– (क) पंजाब रेंजिमेंट की ओर से
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2 .थोड़ी देर बाद मैं पट्टी बाँधकर फिर मैदान में आ पहुँचा। आते ही मैंने उस खिलाड़ी की पीठ पर हाथ रखकर कहा, “तुम चिंता मत करो, इसका बदला मैं जरूर लूँगा।” मेरे इतना कहते ही वह खिलाड़ी घबरा गया। अब हर समय मुझे ही देखता रहता कि मैं कब उसके सिर पर हॉकी स्टिक मारने वाला हूँ। मैंने एक के बाद एक झटपट छह गोल कर दिए। खेल खत्म होने के बाद मैंने फिर उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाई और कहा, “दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं। मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता।” वह खिलाड़ी सचमुच बड़ा शर्मिदा हुआ। तो देखा आपने मेरा बदला लेने का ढंग? सच मानो, बुरा काम करने वाला आदमी हर समय इस बात से डरता रहता है उसके साथ भी बुराई की जाएगी। आज मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं और मुझसे मेरी सफलता का राज जानना चाहते हैं। मेरे पास सफलता का कोई गुरु-मंत्र तो है नहीं। हर किसी से यही कहता कि लगन, साधना और खेल भावना ही सफलता के सबसे बड़े मंत्र हैं।
प्रश्न 1 – मेजर ध्यानचंद ने अपना बदला कैसे लिया?
(क) खिलाड़ी को वापिस स्टिक से मार कर
(ख) खिलाड़ी को मैदान से बाहर करके
(ग) खेल में एक के बाद एक छः गोल करके
(घ) खेल को बीच में ही रुकवा कर
प्रश्न 2 – मेजर ध्यानचंद पट्टी बाँधकर मैदान पर क्यों आया?
(क) मेजर ध्यानचंद के सिर पर विपक्षी टीम के एक खिलाड़ी ने हॉकी की स्टिक मार दी थी
(ख) मेजर ध्यानचंद मैदान में गिरकर घायल हो गया था
(ग) मेजर ध्यानचंद के सिर में बहुत दर्द था
(घ) मेजर ध्यानचंद सबसे अलग दिखना चाहते थे
प्रश्न 3 – मैदान में पहुँचते ही मेज़र ध्यानचंद ने उस खिलाड़ी को क्या कहा जिसने उन्हें हॉकी की छड़ी से मारा था?
(क) वह चिंता न करे
(ख) वह चिंता न करे, वह उसका बदला जरूर लेंगें
(ग) वह उसका बदला जरूर लेंगें
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 4 – मेजर ध्यानचंद ने अपना बदला कैसे लिया?
(क) खिलाड़ी को वापिस स्टिक से मार कर
(ख) खिलाड़ी को मैदान से बाहर करके
(ग) खेल में एक के बाद एक छः गोल करके
(घ) खेल को बीच में ही रुकवा कर
प्रश्न 5 – मेज़र ध्यानचंद अपनी सफलता का क्या रहस्य बताते थे?
(क) किसी काम में पूरी तरह से ध्यान लगाना
(ख) खेल को खेल भावना से खेलना
(ग) कठिन परिश्रम करना
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर –
उत्तर 1– (ग) खेल में एक के बाद एक छः गोल करके
उत्तर 2– (क) मेजर ध्यानचंद के सिर पर विपक्षी टीम के एक खिलाड़ी ने हॉकी की स्टिक मार दी थी
उत्तर 3– (ख) वह चिंता न करे, वह उसका बदला जरूर लेंगें
उत्तर 4– (ग) खेल में एक के बाद एक छः गोल करके
उत्तर 5– (घ) उपरोक्त सभी
3 .मेरा जन्म सन् 1904 में प्रयाग में एक साधारण परिवार में हुआ। बाद में हम झाँसी आकर बस गए। 16 साल की उम्र में मैं ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गया। मेरी रेजिमेंट का हॉकी खेल में काफी नाम था। पर खेल में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। उस समय हमारी रेजिमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी थे। वे बार-बार मुझे हॉकी खेलने के लिए कहते। हमारी छावनी में हॉकी खेलने का कोई निश्चित समय नहीं था। सैनिक जब चाहे मैदान में पहुँच जाते और अभ्यास शुरू कर देते। उस समय तक मैं एक नौसिखिया खिलाड़ी था।
प्रश्न 1 – मेजर ध्यानचंद का जन्म किस सन् में हुआ ?
(क) 1904
(ख) 1905
(ग) 1906
(घ) 1907
प्रश्न 2 – मेजर ध्यानचंद की किसमें दिलचस्पी नहीं थी?
(क) नौकरी करने में
(ख) सिपाही बनाने में
(ग) खेल खेलने में
(घ) फुटबॉल खेलने में
प्रश्न 3 – मेजर ध्यानचंद कितने साल की उम्र में ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में सिपाही के रूप में भर्ती हुए?
(क) 15 साल की
(ख) 16 साल की
(ग) 17 साल की
(घ) 18 साल की
प्रश्न 4 – ध्यानचंद की रेजिमेंट के सूबेदार मेजर कौन थे?
(क) मेजर तिवारी
(ख) मेजर त्रिपाठी
(ग) मेजर रविदास
(घ) मेजर गुप्ता
प्रश्न 5 – प्रारंभ में ध्यानचंद कैसे खिलाड़ी थे?
(क) अवल
(ख) कुशल
(ग) जोशीला
(घ) नौसिखिया
उत्तर –
उत्तर 1– (क) 1904
उत्तर 2– (ग) खेल खेलने में
उत्तर 3– (ख) 16 साल की
उत्तर 4 – (क) मेजर तिवारी
उत्तर 5– (घ) नौसिखिया
4 .जैसे-जैसे मेरे खेल में निखार आता गया, वैसे-वैसे मुझे तरक्की भी मिलती गई। सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक में मुझे कप्तान बनाया गया। उस समय मैं सेना में लांस नायक था। बर्लिन ओलंपिक में लोग मेरे हॉकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझे ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुरू कर दिया। इसका यह मतलब नहीं कि सारे गोल मैं ही करता था। मेरी तो हमेशा यह कोशिश रहती कि मैं गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दूँ ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। अपनी इसी खेल भावना के कारण मैंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया। बर्लिन ओलंपिक में हमें स्वर्ण पदक मिला। खेलते समय मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखता था हार या जीत मेरी नहीं, बल्कि पूरे देश की है।
प्रश्न 1 – बर्लिन ओलंपिक कब हुए?
(क) 1935 में
(ख) 1936 में
(ग) 1938 में
(घ) 1940 में
प्रश्न 2 – बर्लिन ओलंपिक में कौन-सा पदक मिला ?
(क) रजत पदक
(ख) कांस्य पदक
(ग) स्वर्ण पदक
(घ) कोई नहीं
प्रश्न 3 – बर्लिन ओलंपिक में लोगों ने ध्यानचंद की हॉकी खेलने के ढंग से प्रभावित होकर क्या नाम दिया?
(क) ‘हॉकी का जादूगर’
(ख) ‘हॉकी का मसीहा’
(ग) ‘हॉकी का कप्तान’
(घ) ‘खेल का जादूगर’
प्रश्न 4 – ध्यानचंद ने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल कैसे जीत लिया?
(क) करुणा दिखाने के कारण
(ख) त्याग भावना के कारण
(ग) दयालु होने के कारण
(घ) खेल भावना के कारण
प्रश्न 5 – खेलते समय ध्यानचंद हमेशा किस बात का ध्यान रखते थे?
(क) हार या जीत उनकी नहीं, बल्कि पूरे देश की है
(ख) हार या जीत केवल उनकी है
(ग) हार या जीत केवल उनकी और उनकी टीम की है
(घ) हार या जीत कोई मायने नहीं रखती
उत्तर –
उत्तर 1– (ख) 1936 में
उत्तर 2– (ग) स्वर्ण पदक
उत्तर 3– (क) ‘हॉकी का जादूगर’
उत्तर 4– (घ) खेल भावना के कारण
उत्तर 5 – (क) हार या जीत उनकी नहीं, बल्कि पूरे देश की है
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